India News (इंडिया न्यूज), MP Kartikeya Sharma: इंडिया न्यूज के एडिटर इन चीफ राणा यशवंत ने अपने शो ‘बातों बातों में’ राज्यसभा सासंद कार्तिकेय शर्मा से कई मुद्दों पर बात की। जिसमें यूसीसी समेत कई विषयों पर चर्चा की है। इस इंटरव्यू के दौरान राणा यशवंत ने मुस्लिम महिलाओं से जुड़े विषयों पर सवाल पूछे। जिसमें उन्होंने पूछा कि, अभी भी शाह बानो के मामले का जिक्र होता है। महिलाओं के लिए हालात बदले नहीं हैं। तलाक अपने तरीके से ही होता है। चार महिलाओं से निकाह की प्रथा भी जारी है। कहा ये जा रहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार यूसीसी ला रही है, मुस्लिम महिलाओं के बेहतरी के लिए ये बात आप मानते हैं?
सांसद कार्तिकेय शर्मा ने कहा कि ‘मैं ऐसा मानता हूं की UCC आ रहा है ताकि शाह बानो जैसा केस दोबारा ना हो। जो संवैधानिक पीठ थी, उसने देश के संविधान के मुताबिक फैसला दिया…महज 72 रुपए सालाना देना है। संवैधानिक पीठ ने कानून का इंटरप्रिटेशन करके बताया जो हमारी हाईएस्ट बॉडी है, इसके बाद फाइनल फैसला होता है। कांग्रेस सरकार ने उस फैसले को उलटने का काम किया…ऐसा दोबारा ना हो कभी आगे जाकर कि जो हमारी मुस्लिम बहने हैं उनको ऐसा समय ना देखना पड़े इसलिए UCC जरूरी है।’
सवाल- सैम पित्रोदा का एक बयान है कि दक्षिण भारत के लोग अफ्रीका के लोगों की तरह दिखते हैं। पूर्वोत्तर के लोग चीनियों की तरह दिखते हैं। उत्तर भारत के लोग कहीं और की तरह दिखते हैं। प्रधानमंत्री ने इस पर बहुत ऐतराज जताया है। उन्होंने रैलियों में कहा है कि अभी तक मुझे गालियां दी जा रही थीं तो मैं सह रहा था अब मेरे देश के लोगों को नस्लभेदी टिप्पणियां करके गालियां दी जा रही हैं और वो साहब दे रहे हैं जो शहजादे के गुरु हैं।
सांसद कार्तिकेय शर्मा का जवाब- जो लोग ये बात कह रहे हैं, मैं मानता हूं कि ये बहुत ही संकीर्ण मानसिकता है। वो ना तो भारत को समझते हैं, ना तो सनातन को समझते हैं। शायद दुनिया भारत और सनातन को इन लोगों से बेहतर तरीके से समझ रही है। विडंबना तो ये है कि जब भी भारत के गौरव की बात आती है तो जब तक भारत की बात पश्चिम नहीं करता तब तक हमारे लोग उसको नहीं मानते, ये वाकई अपने आप में एक विडंबना है। मैं आपको एक उदाहरण देता हूं कि जब प्रोफेसर मैक्स मूलर और थॉमस एडिसन ने पहला सॉउंड रिकॉर्ड करना था।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में तो उन्होंने ये फैसला किया कि वो ऋग्वेद की जो सबसे पहले ऋचा है, उसका प्रोफेसर मैक्स मूलर ने अपनी आवाज में रिकॉर्ड किया क्योंकि उनका ये मानना था कि जो दुनिया का सबसे पुराना ग्रंथ है, पहली आवाज उसी ग्रंथ की रिकॉर्ड होनी चाहिए, ये उसका महत्व है और ऐसी बातें हजारों मील दूर अमेरिका में या किसी दूसरे देश में बैठकर करना बहुत आसान है। ना तो आप लोगों की भावना समझते हैं, ना ही उनके बीच जाते हैं। क्योंकि भारतीय होने का जो एहसास है, जो गर्व है वो महसूस करने के लिए आपको भारत का हिस्स बनना पड़ेगा।
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सवाल- आप इंग्लैंड से पढ़े हैं आप वहां लंबे समय तक रहे और आप अभी भी बाहर जाते रहते हैं। आप हिंदुस्तानी के तौर पर ये बताएं कि जब पहले और पीएम मोदी के 10 साल होने के बाद बाहर जाने का अनुभव में कितना फर्क महसूस होता है?
सांसद कार्तिकेय शर्मा का जवाब- बहुत फर्क महसूस होता है। मैं आपको बताना चाहता हूं कि जब में एक स्टूडेंट था और मैं पढ़ता था इंग्लैंड में उस दौरान जब हम लोग अपना नीला पासपोर्ट लेकर जाते थे तो हमें, पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन को एक ही श्रेणी में देखा जाता था। आज जब अपना पासपोर्ट लेकर जाते हैं तो एक भारतीय नागरिक को बहुत की रिस्पेक्ट के नजरिए से देखा जाता है। नजरिया शायद देश के कुछ लोगों का अपने ही नागरिकों के बारे में उतना अच्छा नहीं है, जितना दुनिया का हमारे बारे में बदलकर हो गया है।
सवाल- हार्वड के स्टूडेंट्स आपके पास आते हैं और इंटरैक्ट करते हैं तो वो आपसे क्या जानते हैं? आप क्या बताते हैं उनको?
सांसद कार्तिकेय शर्मा का जवाब- इंग्लिश के बहुत पुरानी कहावत है ‘नथिंग सक्सीड लाइक सक्सेस’ तो MIT और हार्वड के बच्चे पिछले 2 साल से अलग-अलग बैचेज आकर मिलते हैं, जिनमें PHD और मास्चर्स के स्टूडेंट्स होते हैं तो उनकी जिज्ञासा भारत के ट्रांस्फॉर्मेशन और भारत में पिछले 10 सालों में आए बदलावों को लेकर होती है और सवाल इसी पर केंद्रित होते हैं। उदाहरण के तौर पर मेरे पास MIT के स्टूटेंड्स आए और मैंने उनसे डिजिटल बैंकिंग सिस्टम की बात की, यूपीआई की बात की।
मैंने उनको बताया कि हम दुनिया के सबसे बड़े बैंकिंग सिस्टम बने हैं, उसका क्या महत्व है, ग्रोइंग इकॉनमी के लिए और ये किस तरह का योगदान दे रहा है तो उनमें से एक बच्चे ने बाहर जाते ही UPI एप डाउनलोड किया और रेहड़ी वाले से सॉफ्टी खरीदी और उसका वीडियो भी बनाकर अपलोड किया और मुझे भेजा भी।
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मुझे बहुत अच्छा लगा ये देखकर कि लोग हमसें कुछ सीखना चाह रहे हैं। हजारों साल के बाद आज दुनिया हमें एक अलग दृष्टिकोण से देख रही है। मैं एक और उदाहरण देता हूं जो सबसे कॉमन सवाल है स्टूडेंट्स पूछते हैं, भारत दुनिया का सबसे युवा देश है…लगभग 65 प्रतिशत आबादी 35 साल से कम उम्र की है। भारत के ज्यादातर युवा, भारत के प्रधानमंत्री जो कि 70 साल के हैं उनके प्रति ज्यादा क्यों खिंचते हैं, उनका झुकाव उनके प्रति क्यों है? बजाए ऑपोजीशन लीडर के जो उनकी उम्र के बहुत पास हैं। मेरा ये मानना है कि लोकतंत्र के अंदर सक्सेस सबसे बड़ा पुल फैक्टर है।
एक सक्सेस स्टोरी है चायवाले से लेकर देश के प्रधानमंत्री बनने तक और प्रधानमंत्री बनने से लेकर दुनिया के टॉप लीडर्स के बीच काबिज होने तक… ये रिस्पेक्ट ऐसे ही नहीं मिलती, ये रिस्पेक्ट सिर्फ देश के प्रधानमंत्री होने औदे से कहीं ज्यादा है। इससे पहले भी भारत के कई प्रधानमंत्रियों को इज्जत मिली है लेकिन दुनिया ने पीएम मोदी को बदलाव के एक एजेंट के तौर पर देखा है। विडंबना ये है कि दुनिया को दिख रहा लेकिन विपक्षी पार्टियों को ये बदलाव नहीं दिख रहा है।
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