सिद्धू को लेकर विवाद खत्म होता नहीं दिखता
अजीत मेंदोला, नई दिल्ली:
प्रभारी हरीश रावत की नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा कांग्रेस के लिये मुसीबत बन सकती है। रावत के बयान पर विपक्ष तो सवाल उठा ही रहा है, पार्टी के वरिष्ठ नेता और पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्य्क्ष सुनील जाखड़ ने एतराज जता संकेत दे दिए हैं कि पार्टी के भीतर भी आने वाले दिनों में घमासान बढ़ेगा। क्योंकि पंजाब कांग्रेस में असल झगड़ा ही नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को लेकर ही था। गत रविवार को जिस नाटकीय ढंग से चरणजीत सिंह चन्नी के नाम की घोषणा हुई उससे भी अंदरखाने आने वाले दिनों में खींचतान बढ़ सकती है।
क्योंकि पार्टी ने पहले सुखजिंदर सिंह रंधावा का नाम तय कर लिया था, लेकिन सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के विरोध के चलते उनका नाम कट गया। हालांकि उनको उप मुख्यमन्त्री बना खुश करने की कोशिश की गई है, लेकिन कहीं ना कहीं उनके मन मे निराशा का भाव पैदा हो गया होगा। रावत का बयान भी कई नेताओं के मन मे निराशा का भाव पैदा करने वाला माना जा रहा है। हरीश रावत का बयान ऐसे समय पर आया जब कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दलित कार्ड खेला था।
पंजाब में दलितों की आबादी 32 प्रतिशत बताई जाती है। जो लगभग 60 सीटों पर असर डालते हैं। जानकार भी मान रहे थे कि कांग्रेस ने अगर ढंग से राजनीति कर इन 30 -40 सीटे भी मैनेज कर ली तो लड़ाई दिलचस्प हो जायेगी। लेकिन हरीश रावत के बाद पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने भी सिद्धू को चुनावी चेहरा बता एक तरह से यह संकेत दिया है कि पार्टी चुनाव बाद सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को ही मुख्यमंत्री बना सकती।
Impact on Dalit voters by forwarding Navjot Singh Sidhu Name
कांग्रेस नेताओं के इन बयानों को लेकर अकाली दल ने राजनीति शुरू कर दी। अकाली दल के प्रवक्ता मनजिंदर सिंह सिरसा ने रावत के बयान को दलितों का अपमान बताया। यही नही उन्होंने कहा दलित सीएम का अपमान किया है। जाखड़ ने भी एक तरह से यही इशारा किया। विपक्ष को यह बड़ा मुद्दा मिल गया है। कांग्रेस का संकट यह हो गया है कि दलित मुख्यमन्त्री बना जट सिखों को साधना आसान नहीं है। ऐसे में जट सिखों को साधने के लिये सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) का नाम आगे करती है तो दलित वोटर पर असर पड़ेगा।
पूर्व मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह जो अभी अपने पत्ते नही खोल रहे हैं। उनको भी यह बड़ा मुद्दा मिल गया है। यही नहीं सिद्धू के नाम को आगे करने का असर पंजाब के सांसदों पर भी पड़ेगा। हालांकि चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने का कोई विरोध नही करेगा, लेकिन सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को लेकर वह कोई मौका नही छोड़ेंगे। क्योकि अधिकांश सांसदों ने सिद्धू को अध्य्क्ष बनाने की खुलकर खिलाफत की थी। उस समय विरोध करने वाले सांसद अमरेंद्र सिंह के साथ खड़े थे। सांसदों की भी विरोध की अपनी वजह थी। अधिकांश सिद्धू के नेतृत्व से सहमत नही थे।
आलाकमान ने सीधे सिद्धू को प्रदेश का असल कप्तान बना दिया। हालांकि मुख्यमन्त्री चन्नी हैं। लेकिन कल से लेकर आज तक सिद्धू जिस तरह से फ्रंट में दिखे यह साफ हो गया कि अब पंजाब कांग्रेस में वही होगा जो वह चाहेगे। इससे कई नेताओं की राजनीति गड़बड़ाएगी। जो संकेत मिल रहे हैं अभी तुरन्त नहीं लेकिन चुनाव करीब आते ही पंजाब में कांग्रेस टूटेगी। जो पंजाब के साथ केंद्र की कांग्रेस की राजनीति पर भी असर डालेगा। अंसन्तुष्ट माने जाने कांग्रेसी टूट वाली कांग्रेस के साथ जुड़ सकते हैं।
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