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याद कीजिए 11 सितंबर 1965 को, जब सेना की चार हार्स ने कर लिया था फिलोरा पर कब्जा

रणबांकुरे शहीदों सैल्यूट, जिन्होंने दुनिया में देश का मान बढ़ाया
राज चौधरी, पठानकोट:
गौरवमयी अतीत को याद कर आज भी सीना चौड़ा हो जाता है। आपको याद है 11 सितंबर, 1965 का वह दिन, जब चार हार्स भारतीय सेना ने फिलोरा पर कब्जा कर लिया था। 56 साल पहले भारत-पाक युद्ध में फिलोरा की लड़ाई में शहीद हुए जवानों को नमन कीजिए। 11 सितंबर, 1965 के दौरान, उप महाद्वीप के दो नवगठित देश सन 1947 में अपनी स्थापना के बाद 18 वर्षों में दूसरी बार युद्ध लड़े। फिलोरा की ऐतिहासिक लड़ाई में सियालकोट सेक्टर में भारतीय 1 आर्मड डिवीजन के अंदर 4 हार्स टैंक रेजिमेंट थी,जिसने दुश्मन के पेटनटैंकों से बिना डरे पाकिस्तानी आर्म डफार्मेशन के 79 टैंकों और 17 आरसीएल बंदू को नष्ट किया था। दुश्मन के गढ़ों को तोड़ते हुए और फिलोरा पर कब्जा करने का रास्ता साफ करने के बाद रेजिमेंट ने दुश्मन के आवागमन को बंद कर दिया था, जिससे पाकिस्तानियों में दहशत फैल गई थी। इसके बाद भारतीय पैदल सेना ब्रिगेड द्वारा आसानी से फिलोरा पर कब्जा कर लिया गया।
बड़ी संख्या में घायलों के अतिरिक्त 4 हार्स ने इस युद्ध के दौरान कई जवानों और अपने दो बेहतरीन अधिकारियों को खो दिया। राष्ट्र के लिए अपनी निरंतर सेवा  मे ंरेजिमेंट को युद्ध फिलोरा और थिएटर पंजाब 1965 से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त रेजिमेंट ने कई व्यक्तिगत विशिष्टताएं अर्जित की जिन में दो महावीर चक्र, दो विशिष्ट सेवा पदक, छह सेना पदक,15 उल्लेखित प्रेषण और वीरता के लिए कई प्रशंसा पत्र शामिल है।
फिलोरा की लड़ाई,जो कि 11 सितंबर, 1965 को लड़ी गयी थी, यह लड़ाई रेजिमेंट के इतिहास में गर्व का स्थान लेगी। क्योंकि यह पहली बार था जब 4 हार्स पूरे भारतीय अधिकारियों के अधीन पूरी तरह भारतीय यूनिट के रूप में युद्ध में उतरे तथा स्वतंत्र भारत के सम्मान के लिए लड़ रहे थे। सन 1857 में रेजिमेंट की स्थापना से रेजिमेंट के पास वीरता, प्रतिकूल परिस्थितियों में दृढ़ता और युद्ध मे हुए जन हानि को सहने की क्षमता और अभी भी एक लड़ाकू यूनिट के रूप में कार्य करने की उत्कृष्ट क्षमता का एक उदाहरण है। इन क्षमताओं ने इसे अफ्रीका, मध्य पूर्व और फ्रांस सहित दुनिया भर में 23 युद्ध सम्मान जिताए हंै। 1971 के भारत पाक युद्ध के दौरान, 4 हार्स ने एक बार फिर से सियाल कोट सेक्टर से आगे बढकर ठाकुर वाड़ी, चक्र और दरम्यान, घमरोला की लड़ाई में 32 पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट कर दिया और बसंतर नदी के पार अपनी वीरता का परिचय देते हुए पाकिस्तान के पश्चिमी सेक्टर की और आगे बढ़ी। रेजिमेंट को एक महावीर चक्र, 3 वीर चक्र और कई अन्य वीरता पुरस्कारों के अलाबा युद्ध स मान बसंतर और थिएटर सम्मान पंजाब 1771 से सम्मानित किया गया।
इसके पीछे 164 वर्षो के गौरवशाली इतिहास के साथ, 4 हार्स अभी भी युद्ध की तैयारी और सैनिक कौशल के मानकों को बनाए रखती है। इसे भारतीय सेना के इतिहास में एक मात्र रेजिमेंट होने का अनूठा गौरव प्राप्त है, जिसमे एक साथ दो सेना कमांडर हैं लेफ्टिनेंट जनरल आरएम बोहरा, एमवीसी, एवीएसएम,जो पूर्व सेना कमांडर के रूप में सेवानिवृत्त हुए और लेफ्टिनेंट जनरल गुरिन्दरसिंह, पीवीएसएम, एवीएसएम, जिन्होंने उत्तरी सेना की कमांड संभाली।
फिलोरा की लड़ाई की 56वीं वर्षगांठ के अवसर पर रेजिमेंट के सेवारत और सेवानिवृत्त कि अपने नायकों का सम्मान करने और अपनी रेजिमेंट के गौरवशाली विरासतों को तथा रेजिमेंटल आदर्श वाकया शहीदों के पुकार तैयार बर तैयार को और भी शाक्तिशाली बनाने के लिए एकत्रित हुए हैं।

दूसरा पहलू युद्ध के दौरान कई असाधारण क्षणों का लेखा जोखा

जब रेजिमेंटल मुख्यालय ट्रूप द्वारा दुश्मन के एक स्क्वाड्रन पर हमला किया गया था, तब 4 हार्स कमांडेंट लेफ्टिनेंट कर्नल एमएम बक्शी के टैंक द्वारा तीन पाकिस्तानी टैंकों को बर्बाद किया गया। सामने से नेतृत्व की इस परंपरा को ध्यान में रखते हुए, रेजिमेंट का पहला टैंक जिसे पाकिस्तानियों द्वारा हिट किया गया था, वह कमांडेंट का टैंक था। हालांकि वे बच गए और दूसरे टैंक से आगे बढ़ना जारी रखा।
एक पाकिस्तानी इन्फेंट्रीमेन जब 4 हॉर्स के एक सेंचुरियन टैंक को गलती से अपना समझ कर मदद मांगने के लिए उस पर चढ़ा तो बुर्ज सेनिकल ने वाले एक भयानक सिख जेसीओ को देख कर डर गया। पाकिस्तानी टैंक से कूद गया और भारतीयों सैनिकों के सामने अपने पैरों की तरफ देखने लगा। जब गनर से पूछा गया की तुमने अपनी मशीन गन से उस पाकिस्तानी को गोली मार कर खत्म क्यों नही किया,तो गनर ने तिरस्कार के साथ जवाब दिया,कि यह ऐसे इंसान को गोली मारने के लिए नही है जो युद्ध के मैदान में खो गया हो।
नकशों की कमी के चलते 4 हॉर्स के सैनिकों ने दुश्मन की एक मैपों की लोरी पर हमला कर कब्जा कर लिया तथा दुश्मन के उन्ही मैपों के द्वारा ही आगे बढ़ना जारी रखा जो कि वह मैप हमारे मैपों की बजह ज्यादा अपडेट थे। एक सुबह जब दो अधिकारी तो पखाने की गोला बारी से हैरान होकर अपने आपको राहत देने के लिए अपने टैंकों से उतर कर गन्ने के खेत में चले जाते है। तभी एक अधिकारी के पैरों क ेबीच से गोली के एक छररे का एक टुकड़ा इतना करीब से गुजरा की वे उसकी हवा को महसूस कर सकते थे। उनके फटे हुए पेन्ट शेष युद्ध के लिए उनके भागने की याद दिलाते है।
जब बी स्क्वाड्रन 19 सितम्बर को भीषण लड़ाई के बाद सीमा पर थक गया, तो उनके पास युद्ध के दौरान इस्तेमाल किए गए14 टैंकों में से केवल दो टैंक बचे थे,सीनियर जेसीओ एक 28 साल के अनुभवी व्यक्ति,उन्होंने अपने आंसुओं के साथ युद्ध मे स्क्वाड्रन के बचे अवशेषों को ढूंढा और एक मात्र जीवित बचे अधिकारी के पास गए और पूछा। अगले इंटर स्क्वाड्रन हॉकी चैंपियनशिप में क्या करने वाली है 4 हार्स-सन 1857 में रेजिमेंट की स्थापना के समय से रेजिमेंट के पास वीरता, प्रतिकूल परिस्थितियों में दृढ़ता और युद्ध में हुए जन हानि को सहने की क्षमता रखता है और अभी भी एक लड़ाकू यूनिट की तरह कार्य करता है। इन क्षमताओं ने यह पूरे विश्व में 23 युद्ध समान दिलाए है।
India News Editor

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