अभिषेक जोशी, उदयपुर:
Russia Hand Over Body of Hitendra Garasiya: भारतीय मूल के रहने वाले हितेंद्र गरासिया (Hitendra Garasiya) का 17 जुलाई 2021 को रूस में निधन हो गया था। इसके बाद 3 दिसम्बर 2021 को उन्हें चुपके से दफना दिया गया। हितेंद्र की मौत की खबर सुनते ही उनके पैतृक गांव गोड़वा का माहौल गमगीन हो गया। परिजनों ने शव को भारत लाकर हिन्दू रीति रिवाज (Hindu customs) से अंतिम संस्कार (Funeral) करने के लिए छह महीने की लड़ाई लड़ी और अब करीब 200 दिन के लंबे संघर्ष के बाद शुक्रवार को हितेंद्र का शव रूस के मॉस्को में कब्र से बाहर निकाल लिया गया है।
परिजनों की इस लड़ाई में शामिल कांग्रेस नेता चर्मेश शर्मा को दूतावास से मिली जानकारी के अनुसार हितेंद्र की दिवंगत देह सोमवार सुबह नई दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पहुंच सकती है।
हितेंद्र गरासिया की देह को रूस से भारत लाने के लिए परिजन छह महीने से जंतर – मंतर के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे। लंबे संघर्ष के बाद इस मामले में पिछले शुक्रवार को ही कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर हितेंद्र की देह को सम्मानजनक अंतिम संस्कार के लिए परिवार के पास भारत लाने की मांग उठाई थी। वहीं मानवीय संवेदना को महसूस करते हुए बूंदी के कांग्रेस नेता चर्मेश शर्मा भी इस मुहिम का हिस्सा बने। शुक्रवार को भी परिजनों ने जंतर – मंतर पर प्रदर्शन करते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष के नाम ज्ञापन सौंपा था।
हितेंद्र की देह को रूस से भारत लाने की लगातार मुहिम चला रहे बूंदी के कांग्रेस नेता चर्मेश शर्मा को शुक्रवार को जंतर – मंतर पर प्रदर्शन के दौरान ही भारतीय दूतावास की ओर से सूचना दी गई और उन्हें बताया गया कि हितेंद्र कि देह को कब्र से बाहर निकाल दिया गया है। भारतीय दूतावास के अधिकारी इस मामले में गुरुवार रात से ही शर्मा से लगातार संपर्क बनाए हुए थे।
भारतीय दूतावास जी शर्मा को मिली जानकारी के अनुसार हितेंद्र की दिवंगत देह सोमवार सुबह नई दिल्ली इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पहुंच सकती है। देह को पहुंचाने के लिए मोर्टल अधिकारी की नियुक्ति कर दी गई है। भारत सरकार के अधिकारी, गरासिया के शव को नई दिल्ली तक पहुंचाएंगे और वहां से राजस्थान सरकार के अधिकारियों को सुपुर्द किया जाएगा। बात दें कि 17 जुलाई 2021 को रूस में गरासिया की मृत्यु हुई थी। उसके बाद 3 दिसंबर 2021 को उन्हें चुपके से दफना दिया गया। लेकिन परिजनों के लंबे संघर्ष के बाद शव को कब्र से बाहर निकाला है और अब गरासिया के पैतृक गांव में हिंदू रीति – रिवाज से अंतिम संस्कार किया जाएगा।
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