इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Russia Ukraine War Crisis Updates: रूस और यूक्रेन का युद्ध आज दूसरे दिन भी जारी है। कब तक यह युद्ध समाप्त होगा, कुछ कहा भी नहीं जा सकता है। वहीं दूसरी तरफ चीन की ओर से ताईवान पर लड़ाकू विमान भेजे गए हैं। सूत्रों के मुताबिक बीते कल चीन के लगभग नौ लड़ाकू विमान ताईवान की तरफ देखे गए हैं। बताया जा रहा है कि चीन के लड़ाकू विमानों ने ताईवान पर 12 बार एक माह के अंदर घुसपैठी की है। बता दें कि रूस और यूक्रेन का युद्ध किसी के लिए भी सही नहीं हो सकता। इस युद्ध का असर हर देश पर पड़ सकता है। तो चलिए जानते हैं कि यूक्रेन पर हमले के बाद ताइवान और चीन मामला उठने का कारण क्या है। (china, Taiwan, Russia Ukraine Conflict)
ताईवान और चीन को लेकर क्या हो रहीं चर्चाएं?
- अभी हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन चीन गए थे। इस दौरान पुतिन ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मिलकर 5,300 से ज्यादा शब्दों का एक जॉइंट स्टेटमेंट जारी किया था जिस पर पूरी दुनिया हैरान रह गई। इस जॉइंट स्टेटमेंट में रूस ने ताईवान के मामले में चीन का समर्थन किया है। उसके अलावा यूक्रेन-रूस जंग शुरू होने के बाद कम्युनिस्ट पार्टी आफ चीन (सीसीपी) की ओर से मीडिया के लिए सेंसरशिप जारी की गई है।
- इस सेंसरशिप निदेर्शों को गलती से चीनी मीडिया ने सोशल मीडिया पर जाहिर कर दिया। इसमें रूस के साथ भावनात्मक और नैतिक सपोर्ट बनाए रखने की बात कही गई है। साथ ही ताईवान पर कब्जे की मंशा भी जाहिर की गई है। यही वजह है कि यूक्रेन पर रूस के हमला के बाद अब ताईवान पर चीन के कब्जा करने की मंशा को लेकर चर्चाएं तेज हो गई है।
चीन और रूस का एक साथ आने का कारण क्या? ( What is the reason for China and Russia coming together)
- चीन की लड़ाई अमेरिका से है और अब रूस की भी लड़ाई अमेरिका से है। ऐसे में चीन और रूस का साथ आना स्वाभाविक है। बीते दिनों जॉइंट स्टेटमेंट में दोनों देशों ने दो मुख्य बातों पर जोर दिया है। पहली बात यूक्रेन के मामले में चीन रूस को मदद करके यूरोप में अमेरिका की स्थिति को कमजोर करेगा।
- दूसरी, इसी तरह साउथ चाइना सी से अमेरिका को बाहर करने के लिए रूस चीन का साथ देगा। इन बातों के जरिए रूस और चीन ने दुनिया को साफ संकेत दिया है कि वह अपने पड़ोस में दखल बर्दाश्त नहीं करेंगे।
रूस को चीन का साथ क्यों जरूरी? ( Russia Ukraine War Crisis Updates)
चीन और रूस की विस्तारवादी नीति का अमेरिका विरोध करता है। इनमें साउथ चाइना सी, ताईवान और यूक्रेन का मामला शामिल है। रूस अपने कुल एक्सपोर्ट का 14.3 फीसदी सामान चीन में बेचता है। यही वजह है कि अमेरिका और यूरोप से टकराने के लिए रूस को चीन का साथ जरूरी है। रूस और चीन दोनों ही देशों की विदेश नीति यूरोप और अमेरिका के खिलाफ है। दोनों देशों के साथ आने की एक वजह यह भी है।
चीन ताईवान की लड़ाई की कहानी? ( The story of China and Taiwan)
- चीन और ताईवान की लड़ाई 1949 में शुरू हुई थी। इसके पहले दोनों देश एक ही थे। दरअसल, 1949 में कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग के नेतृत्व में चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी की सरकार के खिलाफ गृहयुद्ध छेड़ा गया। इसमें माओत्से तुंग और उनके समर्थकों की जीत हुई। इसके बाद चियांग काई शेक अपने समर्थकों के साथ समुद्र पार कर ताईवान नाम के टापू पर पहुंच गए।
- कम्युनिस्टों के पास सेना लेकर समुद्र पार करने के लिए साधन नहीं थे, इसलिए वे ताइवान नहीं गए। इसके बाद चीन में माओत्से तुंग ने सरकार बना ली। वहीं, ताईवान में चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी की सरकार बनी।
चीन और ताईवान का आफिशियल नाम क्या है? ( Russia Ukraine War Crisis Updates)
असली लड़ाई इसके बाद शुरू हुई, जब माओ ने कहा कि पूरे चीन में जीत उनकी हुई है तो ताइवान पर उनका अधिकार है। वहीं, कॉमिंगतांग का कहना था कि बेशक चीन के कुछ हिस्सों में उनकी हार हुई है, मगर वे ही चीन का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसी वजह से ताईवान ने अपना आॅफिशियल नाम रिपब्लिक आॅफ चाइना रखा है, जबकि अभी के चीन का नाम पीपुल्स रिपब्लिक आॅफ चाइना है। 1950 के बाद से ही चीन, ताइवान को अपने देश में मिलाना चाहता है।
क्यों चीन के लिए खास है ताईवान? (Why Taiwan is special to China)
- हांगकांग और वियतनाम के बाद अब चीन की विस्तारवादी नीति के तहत निगाहें ताइवान की ओर हैं। इसकी मुख्य वजहें हैं। ताईवान अंतरराष्ट्रीय सेमी-कंडक्टर व्यवसाय का प्रमुख केंद्र है। ऐसे में चीन के लिए बिजनेस के लिहाज से ताईवान बेहद खास है। चीन का दावा है कि ताईवान हमेशा से ही उसका हिस्सा रहा है। ऐसे में चीन ताईवान पर कब्जा कर अपना पुराना गौरव लौटाना चाहता है।
- साउथ चाइना सी में किसी भी देश को अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए ताईवान को अपने कंट्रोल में रखना बेहद जरूरी है। ताईवान में अमेरिकी सैनिकों का अड्डा है। चीन एशिया से अमेरिकी सेना को बाहर करने के लिए ताईवान पर कब्जा करना चाहता है।
कैसे चीन के लिए ताईवान कब्जाना होगा आसान?
- बताया जाता है कि चीन के लिए सैन्य ताकत के बल पर ताईवान को अपने देश में मिलाना मुश्किल हो सकता है, लेकिन कई कारण हैं जो चीन को आसानी से ताईवान से जोड़ सकती हैं। जैसे-पीपुल टु पीपुल कॉन्टैक्ट दोनों देशों की राजनीतिक दूरियों को खत्म कर सकता है। इससे चीन और ताईवान करीब आ सकते हैं। दोनों जगहों के नागरिकों की संस्कृति, भाषा इतिहास एक हैं। ऐसे में राजनीतिक दूरियां खत्म होने पर दोनों का करीब आना आसान हो सकता है।
- ताईवान की सरकार और लोगों को जब लगेगा कि पश्चिम या अमेरिका ने उन्हें अकेले छोड़ दिया है। हालांकि, इसकी संभावना अभी कम नजर आती है। इकोनॉमिकली जब ताइवान और चीन के संबंध अच्छे होंगे तो नजदीकियां बढ़ सकती हैं। इस समय अमेरिका या नाटो के लिए एक साथ यूरोप और एशिया में दो गंभीर मुद्दों को एक साथ सुलझाना मुश्किल हो सकता है। इससे विश्व युद्ध जैसी स्थिति बन सकती है।
क्यों चीन के लिए ताईवान, यूक्रेन जितना आसान नहीं है? ( Russia Ukraine War Crisis Updates)
- चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पिछले साल अक्टूबर में घोषणा की थी कि ताइवान के साथ देश के मिलने का सपना जल्द पूरा होगा। इसके बाद से ही चीन अक्सर क्यों को डराने के लिए अपने फाइटर जेट उसकी सीमा में उड़ाता रहता है। 22 जनवरी 2022 को क्यों की सीमा में चीन के रिकॉर्ड 32 फाइटर एयरक्राफ्ट ने उड़ान भरी थी।
- इन एयरक्राफ्ट को अपनी सीमा से बाहर खदेड़ने के लिए ताईवान ने पिछले दो साल में 7.46 हजार करोड़ रुपए खर्च किए हैं। चीन भले ही ताईवान को डरा रहा हो, लेकिन ड्रैगन इस बात को अच्छी तरह से जानता है कि उसके लिए ताईवान पर कब्जा करना आसान नहीं है।
- चीन के लिए ताइवान, यूक्रेन नहीं है। इससे समझा जा सकता है कि 1979 में अमेरिकी कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पास करके ताइवान को आर्थिक और सैन्य स्तर पर मदद करने की घोषणा की थी। तब से आज तक अमेरिका ताईवान को मदद कर रहा है। ऐसे में अमेरिका आसानी से ताईवान को अपने हाथ से जाने नहीं देगा।
- नाटो के साथ जुड़ने पर यूक्रेन का पक्ष अभी तक साफ नहीं रहा है। वहीं, ताईवान 1950 के बाद से ही सीधे अमेरिका से जुड़ा है। ताईवान पर कब्जा करने के लिए चीन को सिर्फ अमेरिका नहीं, जापान से भी दो-दो हाथ करने पड़ सकते हैं। ऐसा चीन के लिए आसान नहीं होगा।
- इंडो पैसिफिक क्षेत्र के देश आने वाले समय में दुनिया की कुल जीडीपी में 50 फीसदी से अधिक योगदान देंगे। ऐसे में यहां अमेरिका अपनी स्थिति कमजोर नहीं होने देना चाहेगा। साउथ चाइना सी से होकर तीन लाख करोड़ का सामान हर साल एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट होता है। ऐसे में यहां चीन को टक्कर देने के लिए अमेरिका हर हाल में ताइवान को बचाएगा।
चीन से लड़ने में कैसे ताईवान को मदद कर रहा अमेरिका?
- ताईवान ने समुद्री सतह से आसमान या पानी के अंदर मार करने वाली 46 एमके-48 मिसाइल (टॉरपीडो) अमेरिका से 2017 में खरीदी। एक टॉरपीडो की कीमत 74.65 करोड़ रुपए है, लेकिन ताईवान ने अमेरिका से ये 40.31 लाख रुपए में खरीदा था। इसका मतलब यह हुआ कि अमेरिका ताईवान को काफी कम कीमत पर हथियार मुहैया कराता है। 20 मई 2016 को साई इंग वेन ताइवान की राष्ट्रपति बनीं। 20 जनवरी 2017 को डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने। इसके बाद दोनों देशों के बीच कई हथियार सौदे हुए।
ताईवान किन देशों में सबसे ज्यादा सामान एक्सपोर्ट व इम्पोर्ट करता है?
- एक्सपोर्ट वाले देश: ताईवान जापान 6.9 फीसदी, चीन 28.8 फीसदी, अमेरिका 11.8 फीसदी, हांककांग 12. 4 फीसदी, सिंगापुर 5.2 फीसदी और अन्य 34. 9 फीसदी समाना एक्सपोर्ट करता है।
- इम्पोर्ट वाले देश: जर्मनी 3.5 फीसदी, अमेरिका 12.1 फीसदी, साउथ कोरिया 6.8 फीसदी, चीन 18.8 फीसदी, जापान 15.4 फीसदी और अन्य 43.4 फीसदी समाना इम्पोर्ट करता है।
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