India News (इंडिया न्यूज), Russian Army: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस दौरे पर रूसी सेना में भर्ती होने के लिए गुमराह किए गए भारतीयों का मुद्दा उठाया था। जिसके एक दिन बाद मास्को ने कहा कि भर्ती पूरी तरह से व्यावसायिक कारणों से की गई थी और वे रूसी सेना में भारतीयों को नहीं चाहते थे। समाचार एजेंसी पीटीआई ने एक रूसी राजनयिक के हवाले से कहा कि वे पूरी तरह से व्यावसायिक कारणों से वहां हैं और हम उन्हें भर्ती नहीं करना चाहते थे। दरअसल, कई भारतीयों को आकर्षक नौकरियों का वादा करके रूस लाया गया और वे यूक्रेन के खिलाफ लड़ने के लिए रूसी सेना में शामिल हो गए। फरवरी 2022 में युद्ध शुरू होने के बाद से अब तक कम से कम चार भारतीय नागरिक युद्ध में मारे गए हैं।
पीएम मोदी ने उठाया था यह मुद्दा
बता दें कि, पीएम मोदी ने मास्को की अपनी दो दिवसीय यात्रा के दौरान राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ अनौपचारिक वार्ता के दौरान इस मुद्दे को उठाया था। उच्च स्तरीय वार्ता के बाद मास्को ने सहायक कर्मचारियों के रूप में रूसी सेना में भर्ती किए गए सभी भारतीयों को छुट्टी देने और उनकी वापसी की सुविधा देने पर सहमति व्यक्त की। रूस के प्रभारी रोमन बाबुश्किन ने कहा कि मॉस्को ने कभी नहीं सोचा था कि भारतीय उसकी सेना का हिस्सा बनेंगे और संघर्ष के व्यापक संदर्भ में उनकी संख्या नगण्य है। उन्होंने आगे कहा कि स्पष्ट रूप से, हम कभी नहीं चाहते थे कि भारतीय रूसी सेना में हों। रूसी अधिकारियों की ओर से कभी भी ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई ।
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पैसों के लिए भारतीय हुए भर्ती
रूसी राजनयिक ने दावा किया कि अधिकांश भारतीयों को एक वाणिज्यिक ढांचे के तहत भर्ती किया गया था क्योंकि वे वित्तीय अवसरों की तलाश में थे। उन्होंने कहा कि भारतीयों की संख्या चाहे 50, 60 या 100 हो, बड़े संघर्ष के संदर्भ में नगण्य है। लेकिन वे विशुद्ध रूप से वाणिज्यिक कारणों से वहां हैं, और हमने उन्हें भर्ती करने की कोशिश नहीं की। बाबुश्किन ने कहा कि सहायक कर्मचारियों के रूप में काम करने वाले अधिकांश भारतीय पर्यटक वीजा पर रूस में प्रवेश करने के बाद उचित वीजा के बिना अवैध रूप से ऐसा करते हैं। वहीं मारे गए लोगों के परिवारों के लिए मुआवजे और रूसी नागरिकता के बारे में पूछे जाने पर, बाबुश्किन ने कहा कि यह वैसे भी अनुबंध संबंधी दायित्वों के अनुसार होना चाहिए।
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