इंडिया न्यूज, बालाघाट (Sandhya Parihar): भारतीय नौसेना के बेड़े में पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर ‘आईएनएस विक्रांत’ शामिल हो गया है। आत्मनिर्भर भारत की पहचान, आईएनएस विक्रांत भारत में बना अब तक का सबसे बड़ा युद्धपोत है। इस कारण पूरा हिन्दुस्तान गर्व महसूस कर रहा है। वहीं मध्यप्रदेश का जिला बालाघाट भी स्वयं को बेहद गौरवान्वित महसूस कर रहा है।
हो भी क्यों न, भारत के सबसे बड़े स्वदेशी युद्धपोत को बनाने में बालाघाट की एक बेटी ने मुख्य भूमिका जो निभाई है। यहां के विवेकानंद कॉलेज से कम्प्यूटर साइंस में एमएससी करने वाली संध्या ने आईएनएस विक्रांत के निर्माण में जो योगदान दिया है उससे न केवल बालाघाट बल्कि पूरा मध्यप्रदेश फूला नहीं समा रहा है। जानकारी के मुताबिक संध्या परिहार ने प्रशिक्षण के दौरान बतौर ट्रेनी विशाखापट्टनम में आईएनएस के निर्माण के दौरान 3 साल डीआरडीओ के वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में आईएनएस विक्रांत के निर्माण में सहयोग किया।
संध्या ने साल 2012 से 2014 तक बतौर ट्रेनी डीआरडीओ वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में आईएनएस विक्रांत के निर्माण में कार्य किया। इसके बाद संध्या परिहार ने कृषि मंत्रालय के आईसीआर में भी अपनी सेवाएं दी हैं। संध्या परिहार ने बताया कि यहां डीआरडीओ के वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में हमारी 9 लोगों की टीम थी। इनमें वह अकेली युवती थी। हालांकि संध्या ने बताया कि आईएनएस विक्रांत के निर्माण में उनका योगदान काफी छोटा रहा है। लेकिन ये उनका बड़प्पन ही है क्योंकि आईएनएस विक्रांत के निर्माण में कोई भी भूमिका छोटी नहीं हो सकती।
बता दें कि संध्या इस समय दिल्ली में रह रही हैं। उनके पति साउथ अफ्रीका में एनआरआई हैं। बालाघाट में संध्या की माता और छोटी बहन निवास करती हैं। संध्या की छोटी बहन विद्या वकील हैं।
आईएनएस विक्रांत समुद्र में काफी शक्तिशाली है। जहां इसकी अधिकतम स्पीड 28 नॉट्स तक है। करीब 51 किमी प्रतिघंटा। इसकी सामान्य गति 18 नॉट्स यानी 33 किमी प्रतिघंटा तक है। यह एयरक्राफ्ट कैरियर एक बार में 7500 नॉटिकल मील यानी 13,000+ किलोमीटर की दूरी तय कर सकता है। ऐसे में आईएनएस विक्रांत के निर्माण में लगी टीम के हर सदस्य का कार्य काफी अहम है। फिर चाहे वह वैज्ञानिक हों या फिर प्रशिक्षु।
गौरतलब है कि आईएनएस विक्रांत के निर्माण के लिए जरूरी युद्धपोत स्तर की स्टील को स्टील अथॉरिटी आॅफ इंडिया से तैयार करवाया गया है। इस स्टील को तैयार करने में भारतीय नौसेना और रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला की भी मदद ली गई। बताया गया है कि रअकछ के पास अब युद्धपोत स्तर की स्टील बनाने की जो क्षमता है, वह आगे देश में काफी मदद करेगी।
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