संजय और राजीव के रिश्ते
विनोद मेहता की किताब में उल्लेख है कि संजय और उनके बड़े भाई राजीव गांधी के रिश्ते समय के साथ तनावपूर्ण होते गए थे। दोनों भाइयों के बीच मतभेद बढ़ने लगे थे, और उनकी पत्नियों के रिश्ते भी अच्छे नहीं थे। ये तनाव 1977 में कांग्रेस की हार और मोरारजी देसाई की सरकार के सत्ता में आने के बाद और भी बढ़ गए। इस दौरान इंदिरा गांधी और संजय गांधी पर अदालत में कई कानूनी लड़ाइयाँ लड़ी जा रही थीं, जिससे पारिवारिक माहौल भी प्रभावित हुआ था।
परिवार के अंदर और बाहर: संजय और सोनिया का विवाद
संजय गांधी का परिवार के भीतर का माहौल भी बेहद विवादास्पद था। एक दिलचस्प घटना का जिक्र किया गया है जब सोनिया गांधी ने संजय के लिए अंडे बनाये थे, लेकिन संजय को वे पसंद नहीं आए। इस पर वह इतने गुस्से में आ गए कि उन्होंने अपनी प्लेट तक फेंक दी। यह घटना संजय के स्वभाव को दर्शाती है, जिसमें वह अपनी इच्छाओं और आदतों पर बहुत जोर देते थे। जब यह घटना हुई, तो इंदिरा गांधी, जो हमेशा संजय के प्रति सुरक्षात्मक रहती थीं, ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की।
राजीव गांधी और संजय गांधी: रिश्तों का तनाव
संजय गांधी को इंदिरा गांधी के घर में अधिक महत्व दिया जाता था। उनके आसपास के लोग हमेशा उनकी हाँ में हाँ मिलाने वाले होते थे। बहुत कम मौके होते थे जब किसी व्यक्ति में संजय के सामने अपना अलग दृष्टिकोण रखने का साहस होता था। हालांकि, राजीव गांधी ही वह एकमात्र व्यक्ति थे, जो कभी-कभी संजय को टोक पाते थे। एक बार संजय ने विमानन के तकनीकी मुद्दे पर राजीव से बहस की, जो लंबे समय से पायलट थे। इस बहस के दौरान राजीव ने व्यंग्य करते हुए पूछा था, “संजय, तुम कब से उड़ान भर रहे हो?”
इंदिरा गांधी की संजय के प्रति चिंता
इंदिरा गांधी अपने छोटे बेटे संजय को लेकर बेहद चिंतित रहती थीं। 1977 में कांग्रेस की हार के बाद और फिर 1980 में सत्ता में वापसी के बाद इंदिरा और संजय के रिश्ते और भी गहरे हो गए थे। चुनाव हारने के बाद, इंदिरा गांधी ने संजय की आलोचना करने से इनकार किया और उनके द्वारा किए गए कार्यक्रमों का बचाव किया। एक किस्से के अनुसार, 1977 में जब गांधी परिवार ने साधारण दाल-रोटी का भोजन किया, इंदिरा ने देखा कि संजय दाल और चपाती खा रहे थे, लेकिन उन्हें यह याद आया कि संजय को करेले की सब्जी पसंद नहीं है। इंदिरा ने गुस्से में रसोइए से कहा, “क्या तुम्हें नहीं पता कि संजय करेले नहीं खाता?” और रसोइए को अपनी गलती स्वीकार करने पर मजबूर किया। इस घटना से यह साफ होता है कि इंदिरा अपने बेटे के प्रति कितनी सुरक्षात्मक थीं।
मेनका गांधी और संजय: संघर्ष की शुरुआत
संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी, जो बाद में भारतीय राजनीति में एक प्रमुख नेता बनीं, और इंदिरा गांधी के बीच भी मतभेद रहे। मेनका को इंदिरा गांधी की कुछ नीतियों से असहमतियां थीं और उनका रवैया भी विरोधाभासी था। यही कारण था कि मेनका को आधी रात को प्रधानमंत्री आवास से बाहर निकाल दिया गया। इस घटना ने संजय और मेनका के रिश्ते को और भी तनावपूर्ण बना दिया। अगर संजय जीवित रहते तो क्या स्थिति होती? क्या मेनका गांधी की भूमिका संजय के बाद बढ़ती? क्या राजीव गांधी भारतीय राजनीति में वही भूमिका निभाते जो उन्होंने निभाई, या फिर संजय गांधी ने उनकी जगह ली होती? ये सवाल हमेशा अनुत्तरित रहेंगे।
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अगर संजय जीवित रहते?
किताब में यह सवाल उठाया गया है कि अगर संजय गांधी की मृत्यु नहीं होती, तो भारतीय राजनीति की दिशा क्या होती? क्या वह राजनीति में राजीव गांधी से पहले अपनी पहचान बनाते? क्या संजय गांधी वंशवाद की राजनीति को और भी मजबूती से बढ़ाते और क्या मेनका गांधी राजनीति में उसी स्थान पर होतीं, जो बाद में सोनिया गांधी को मिला? ये प्रश्न आज भी एक दिलचस्प बहस का विषय बने हुए हैं।
संजय गांधी का जीवन भारतीय राजनीति की एक कठिन और जटिल कहानी है। उनका व्यक्तिगत जीवन, उनका परिवार, और उनकी राजनीति में भूमिका हमेशा चर्चा का विषय रही है। विनोद मेहता की किताब “द संजय स्टोरी” संजय गांधी के जीवन के इन पहलुओं को उजागर करती है, जो भारतीय राजनीति के एक अहम हिस्से को समझने में मदद करती है। संजय गांधी के योगदान और विवादों के बीच उनके जीवन ने भारतीय राजनीति में एक गहरी छाप छोड़ी, जो आज भी लोगों के दिमाग में ताजा है।