राजद्रोह मामले मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की गई। सुप्रीम कोर्ट ने अब देशद्रोह कानून पर पुनर्विचार करने के लिए केंद्र सरकार को हिदायत देते हुए एक दिन का और समय दिया है। कोर्ट ने लंबित केसों और भविष्य के मामलों को सरकार कैसे संभालेगी, इस पर अपना पक्ष रखने के लिए केंद्र सरकार को बुधवार सुबह तक का समय दिया गया है।
इंडिया न्यूज, नई दिल्ली। राजद्रोह मामले मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की गई। इससे पहले केंद्र सरकार ने इस मामले पर सुनवाई टालने की सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी। वहीं याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने इसका विरोध किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अब देशद्रोह कानून पर पुनर्विचार करने के लिए केंद्र सरकार को हिदायत देते हुए एक दिन का और समय दिया है। कोर्ट ने लंबित केसों और भविष्य के मामलों को सरकार कैसे संभालेगी, इस पर अपना पक्ष रखने के लिए केंद्र सरकार को बुधवार सुबह तक का समय दिया गया है।
बता दें कि इससे पहले सरकार की ओर से देशद्रोह मामले में अपना विचार बदलने पर सफाई दी गई। सालिसिटर जनरल तुषार मेहता बोले कि राष्ट्रहित और देश की एकता अखंडता को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय कार्यपालिका ने यह नया निर्णय लिया है।
हालांकि इससे दंड का प्रावधान नहीं हटाया जाएगा। कोई नहीं कह सकता कि देश के खिलाफ काम करने वाले को दंडित ना किया जाए। सरकार इसमें और सुधार का प्रावधान कर रही है लिहाजा कोर्ट अभी सुनवाई टाल दे।
याचिकाकर्ताओ की ओर से कपिल सिब्बल ने आपत्ति जताते हुए कहा कि सरकार इसकी आड़ ले रही है, जबकि हमने तो आईपीसी के प्रावधान 124अ को ही चुनौती दी है। नया संशोधित कानून जो आएगा सो आएगा, हमने तो मौजूदा प्रावधान को चुनौती दी है।
केंद्र सरकार से सीजेआई ने कहा कि हमारे नोटिस को भी करीब नौ महीने हो गए हैं। अब भी आपको वक्त चाहिए। आखिर कितना वक्त लेंगे आप।
सालिसिटर जनरल ने कहा कि हमने कानूनी आधार पर अपनी बात हलफनामे के जरिए कोर्ट के सामने रख दी है, लेकिन कानून में संशोधन के लिए कितना वक्त लगेगा इस बारे में अभी कोई वादा या भरोसा नहीं दिया जा सकता। इस पर सीजेआई ने सालिसिटर जनरल से पूछा कि आज अटार्नी जनरल कोर्ट में क्यों नहीं हैं। सालिसिटर जनरल ने कहा कि उनकी तबीयत खराब है।
वहीं याचिकाकर्ताओ ने कोर्ट से कहा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट कानून की वैधता के मसले को आगे विचार के लिए बड़ी बेंच को भेजता है तो कोर्ट इस बीच कानून के अमल पर रोक लगा दे। 1962 में केदारनाथ सिंह बनाम बिहार सरकार मामले में 5 जजों की संविधानपीठ ने कानून की वैधता को बरकरार रखा था।
वहीं कोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट केदारनाथ सिंह फैसले पर पुर्नविचार की जरूरत समझते हुए इसे 5 या उससे ज्यादा जजों की बेंच को भेजता है तो कोर्ट को इस कानून के अमल पर रोक लगा देना चाहिए। अभी तीन जजों की बेंच राजद्रोह कानून की वैधता पर सुनवाई कर रही है।
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