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Shivdarshan Malik Set An Example : हरियाणा के डॉक्टर ने गोबर से बना दिया घर, गर्मी में पंखे की भी जरूरत नहीं

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Shivdarshan Malik Set An Example:
पहले के समय में गोबर का इस्तेमाल पेड़ों में डालने वाली खाद, किसी भी अनुष्ठान में होने वाले हवन-यज्ञ में किया जाता था। पर जैसे-जैसे समय बदलता गया लोग गोबर का इस्तेमाल-गमला, लक्ष्मी-गणेश, कलमदान, कूड़ादान, मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती, जैव रसायनों का निर्माण, मोमबत्ती एवं अगरबत्ती स्टैण्ड व पुरस्कार में दी जाने वाली ट्रॉफियों का निर्माण आदि में होने लगा। वहीं हरियाणा के डॉक्टर शिवदर्शन मलिक ने गोबर का घर तक बना डाला। अब सवाल ये उठता है कि गोबर से कैसे घर बन सकता है जिसमें न तो ईंटें लगी है न सीमेंट। इसके निर्माण में बालू या सरिया का भी इस्तेमाल नहीं हुआ है। इस घर में एसी की भी जरूरत नहीं है। तो चलिए जानते हैं कैसे तैयार हुआ गोबर से घर।

गर्मी से टूटी नींद तो बुना सपना (Shivdarshan Malik Set An Example)

यह कहानी है हरियाणा जिला रोहतक के गांव मदीना में रहने वाले डॉक्टर शिवदर्शन मलिक की। जो पिछले कई सालों से गोबर से ईंटें और प्लास्टर बना रहे हैं। गोबर की ईंटों को उन्होंने ”गौक्रीट” नाम दिया है और प्लास्टर को वैदिक प्लास्टर। डाक्टर शिवदर्शन मलिक ने केमिस्ट्री से पीएचडी की। पढ़ाई के बाद उन्होंने बतौर प्रोफेसर नौकरी भी की। मलिक कहते हैं कि गर्मी के दिन थे और एक रात अचानक उनके घर पर लाइट चली गई। वह रात को 3 बजे परेशान होकर उठ गए।

उन्होंने सोचा कि आखिर बचपन में जब वह गांव के घर में रहते थे तो वहां गर्मी क्यों नहीं लगती थी और अब अपने घर में इतनी गर्मी क्यों लगती है। इस सवाल से उन्हें समझ आया कि गड़बड़ी घर में है। गड़बड़ घर को बनाने वाले मटेरियल में है। कहते हैं इसी दौरान उन्होंने गाय के गोबर से वैदिक घर बनाने का तरीका निकाला और 2000 में आईआईटी दिल्ली के साथ मिलकर एक प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया। इसके तहत उन्होंने गाय के गोबर और एग्री वेस्ट के लाभ जाने।

अमेरिका और इंग्लैंड में इको फ्रेंडली घर देखा तो आया आइडिया?

इसके बाद वे आईआईटी दिल्ली के एक प्रोजेक्ट वेस्ट टू हेल्थ के साथ जुड़ गए। कुछ साल उन्होंने यहां काम किया। फिर 2004 में उन्होंने वर्ल्ड बैंक और एक साल बाद यानी 2005 में यूएनडीपी के एक प्रोजेक्ट के साथ रिन्युएबल एनर्जी को लेकर काम किया। इस दौरान शिव दर्शन को अमेरिका और इंग्लैंड जाने का मौका मिला। वहां उन्होंने देखा कि पढ़े-लिखे और आर्थिक रूप से सम्पन्न लोग सीमेंट और कंक्रीट से बने घरों की बजाय इको फ्रेंडली घरों में रहना ज्यादा पसंद करते हैं। क्योंकि ये घर सर्दियों में अंदर से गर्म रहते हैं। ये लोग भांग के पत्तों में चूना मिलाकर हैमक्रिट तैयार करना संभव है। इसी से उन्हें गाय के गोबर से प्लास्टर बनाने का ख्याला आया और उन्होंने इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया। अंतत: गाय के गोबर में ग्वारगम, जिप्सम, चिकनी मिट्टी, और नींबू पाउडर का इस्तेमाल कर वो वैदिक प्लास्टर तैयार करने में सफल रहे।

घर बनाने में वैदिक प्लास्टर का किया इस्तेमाल  (Shivdarshan Malik Set An Example)

आगे अपना घर बनाने में वैदिक प्लास्टर का इस्तेमाल किया और खास तरह का घर तैयार कर दिया। उनके द्वारा बनाया गया घर सीमेंट के घर की तुलना में न सिर्फ सस्ता है। बल्कि गर्मियों में अंदर से ठंडा भी रहता है। दूर-दूर से अब लोग डॉक्टर शिवदर्शन मलिक के घर को देखने आते हैं। विदेशों तक उनके काम की चर्चा होती है।

बिजनेस नहीं, सबको सिखाने की चाहत : मलिक

डॉक्टर शिव दर्शन मलिक बताते हैं कि वह अपने काम को बिजनेस नहीं बनाना चाहते है। उनका कहना है कि अगर दिल्ली में बैठा कोई आदमी मुझसे गौक्रीट या वैदिक प्लास्टर लेगा तो यहां से उसे भेजने में बहुत सारा पैसा लगेगा। ट्रांसपोर्टेशन में डीजल और पेट्रोल भी खर्च होगा। फिर भला इससे पर्यावरण का क्या फायदा। इसलिए वह इसे डायरेक्ट लोगों को न भेजकर उन्हें इसे बनाने की ट्रेनिंग देते हैं। ट्रेनिंग की एक छोटी सी फीस है और 4 दिन का कोर्स है। अब तक लगभग 150 लोग सीखकर जा चुके हैं। पंजाब, तमिलनाडु, जयपुर, अजमेर, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में लोगों ने इस तकनीक से घर बनाएं हैं।

गोबर के घर की खासियत क्या?  (What is the specialty of cow dung house?)

  • वैदिक प्लास्टर और गौक्रीट से आप पूरी तरह आॅर्गेनिक घर बना सकते हैं. हालांकि जब भी कोई यह सुनता है कि घर को बनाने में गोबर का इस्तेमाल हो रहा है तो मन में एक शंका आती है कि गोबर तो जल भी जाएगा और गल भी जाएगा। बता दें कि गौक्रीट या वैदिक प्लास्टर का जब आप इस्तेमाल करते हैं तो इसमें गोबर होने के बावजूद यह न तो जलता है और न ही गलता है।
  • सिर्फ यही नहीं डॉक्टर मलिक दावा करते हैं वैदिक प्लास्टर से रेडिएशन का खतरा भी न के बराबर हो जाता है। उन्होंने अपना पूरा दफ्तर गौक्रीट और वैदिक प्लास्टर से तैयार किया है। उनका कहना है कि जिस घर में वैदिक प्लास्टर का इस्तेमाल होता है उसका तापमान गर्मी में बाहर के तापमान से 7 डिग्री तक कम रहता है। वह भी बिना पंखा, एसी के।
  • इस तरह के प्लास्टर से बने मकानों में नमी हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी। इसमें तराई की झंझट नहीं रहती। घर प्रदूषण से मुक्त होते हैं। यह ईंट, पत्थर किसी भी दीवार पर सीधा अन्दर और बाहर लगाया जा सकता है। एक वर्ग फुट एरिया में इसकी लागत 20 से 22 रुपए आती है। डाक्टर मलिक का कहना है, “ये मकान हमारे सेहत के लिहाज से उपयोगी होते हैं। मकान से हानिकारक कीटाणु और जीवाणु भाग जाते हैं। अच्छी सेहत के साथ ही सकारत्मक ऊर्जा भी मिलती हैं, ये ध्वनिरोधक व अग्निरोधक होते हैं
  • उनका कहना है “इस मकान के जितने फायदे बताए कम हैं, इस तरह के मकान के बाद बने फर्श से गर्मियों में नंगे पैर घर में ही टहलने से पैरों को ठंडक मिलती है। हमारे शरीर के अनुसार तापमान मिलता है। बिजली की बचत होती है, शहरों में गांव जैसी कच्ची मिट्टी के पुराने घर इस गाय के प्लास्टर से बनना सम्भव है।
  • उन्होंने बताया, “हमारे देश में प्रतिदिन 30 लाख टन गोबर निकलता है। जिसका सही तरह से उपयोग न होने से ज्यादातर बर्वाद होता है। देसी गाय के गोबर में जिप्सम, ग्वारगम, चिकनी मिट्टी, नीबूं पाउडर आदि मिलाकर इसका वैदिक प्लास्टर बनाते हैं जो अग्निरोधक और उष्मा रोधी होता है। इससे सस्ते और इको फ्रेंडली मकान बनते हैं, इसकी मांग आॅनलाइन होती है। हिमाचल से लेकर कर्नाटक तक, गुजरात से पश्चिमी बंगाल तक वैदिक प्लास्टर से 300 से ज्यादा मकान बन चुके हैं।”

Shivdarshan Malik Set An Example

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Suman Tiwari

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