India News (इंडिया न्यूज़),(देवेंद्र जायसवाल) Shivling: जिले में एक ऐसा अति प्राचीन शिव मंदिर है जहां 24 घण्टे 12 महीने स्वमेव जलाभिषेक होता है। खण्डवा जिले के छैगांवमाखन ब्लॉक के देवझिरी में एक ऐसा प्राकृतिक स्थान है जहां लागातार गोमुख पत्थर से पानी सीधे शिवलिंग पर गिरता है। यह सिलसिला अनवरत सैंकड़ो साल से चला आ रहा है। यह एक तीर्थ स्थान होने के साथ-साथ एक पर्यटन स्थल भी है। यहां पर भूतेश्वर महादेव मंदिर है। देवझिरी ग्राम खंडवा जिले से 25 किलोमीटर दूर एवं भोजा खेड़ी से 3 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां का नजारा प्राकृतिक एवं भव्य है।

  • सैंकड़ो वर्ष से अज्ञात स्थान से निकल रही है भुजलधारा
  • किसान भी ले जाते हैं यहां का जल
  • प्राकृतिक कुंड को देवस्थान होने से मिला देवझिरी नाम

इस प्राकृतिक स्थल देव झिरी नाम से ही प्रतीत होता है। यहां पर पानी की अचल धारा जो कि शिवलिंग का जलाभिषेक निरंतर लगातार करती रहती है। शिवलिंग के पीछे एक प्राकृतिक कुंड हे जो कि इस देवझिरी का उद्गम स्थल है, यह धारा कभी रुकती नहीं कहा जाता है कि कैसा भी मौसम हो कितना भी अकाल पड़ जाए लेकिन यह धारा बिना रुके शिवलिंग का अभिषेक करती रहती है।।

अकाल के समय मिलता था यहां से पानी

शहर से 15 किलोमीटर दूर स्थित देवझिरी देव स्थान प्राकृतिक जल स्रोत के महत्व को लोगों तक पहुंचा रहा है। आस्था का केंद्र होने के साथ ही यह ग्रामीणों के लिए मीठे पानी का जरिया है। आसपास काम करने वाले किसान पूरे वर्ष यहां से पीने का पानी लेकर जाते हैं। ग्रामीणों की मानें तो लगभग 70 साल पहले अकाल के समय यहीं से आसपास के पांच गांव पीने के पानी के लिए इसी पर निर्भर थे, जो धारा आज भी बह रही है। इस वर्ष विश्व जल दिवस की थीम पानी का महत्व रख गई है। जिसे देवझिरी सालों से सार्थक करता आ रहा है।

लगभग सौ फीट नीचे है यह स्थान

इंदौर-इच्छापुर हाइवे पर भोजाखेड़ी से दो किलोमीटर दूर तीन पहाड़ों की तराई में लगभग सौ फीट नीचे यह स्थान हैं। तराई में कई प्रकार के पेड़-पौधों के बीच शिवलिंग पर यह प्राकृतिक जल धारा सालों से प्रवाहित हो रही है। पूरे जिले में इस तरह का अन्य कोई स्थान नहीं है। बरूड़ व भोजाखेड़ी के ग्रामीण इस स्थान को कई सालों से जानते थे। गर्मी या पूरे वर्ष कभी भी खेतों में काम करते समय पानी की प्यास लगने व व्यवस्था नहीं होने पर यहां से पानी लेकर जाते थे। 1997 में यहां भागवत कथा हुई उसके बाद से अन्य लोगों के बीच भी इसका महत्व बढ़ा। अब हर विशेषकर सोमवार को यहां आकर भगवान के दर्शन व स्नान भी करते लोग करते हैं। ग्रामीणों के अनुसार कभी भी उन्होंने इस जलधारा को सूखते हुए नहीं देखा। गर्मी में पानी थोड़ा कम हो जाता है लेकिन सतत बहते रहता है।

75 साल पहले 1956 में पड़ा था अकाल

यहां के ग्रामीण बताते है कि करीब 85 साल पहले यहां अकाल पड़ा था। ग्रामीण जयदेव यादव व रघुराज सिंह चौहान ने बताया कि 1956 के आसपास अकाल पड़ा था। तब इस जल जल स्रोत से बरूड़, भोजाखेड़ी व अन्य कुछ गांव के लोग पानी लेकर जाते थे। पहले झिरी से भगवान के ऊपर जल गिरने के बाद नाले में बहता था। यहीं से ग्रामीण इसे पीने के लिए लेकर जाते थे। अब इस पानी के लिए और भी कुंड बनाए गए हैं।

अब पेड़-पौधे भी हो रहे है सिंचित

इस प्राकृतिक स्थल के आसपास पहाड़ों के पास पेड़ हैं। यहां एक कदम के पेड़ के नीचे शिवलिंग स्थापित है। इसके पीछे पहाड़ी की तलहटी से यह जलधारा निकली है। अहम बात यह कि गर्मी के समय पहाड़ी के ऊपर खेत व अन्य पेड़-पौधे सूखने की कगार पर आ जाते हैं, लेकिन इस जलधारा के कारण तराई में लगभग एक किलोमीटर तक हरियाली है। पास ही लगभग 100 से अधिक आम के पेड़ भी हैं। इसके अलावा जामून, बांस, बिल्व पत्र, बरगद, नीम सहित अन्य पेड़ भी हैं।

पूजारी ने कही ये बात

पूजारी राधेश्याम यादव ने बताया कि देवझिरी मैं यहां पर 30 साल से पूजन कर रहा रहा हूं। कभी न रुकने वाली जलधारा इसी तरह प्रवाहित हो रही है। ग्रामीणों के लिए देवझिरी जल स्रोत का महत्व हमेशा से रहा है। हमारे बुजुर्ग बताते है कि अकाल के समय यहीं से पीने के पानी की पूर्ति हुई। आज भी गर्मी में लोग पानी लेने आते है।

जानें इतिहासकारों का क्या है मानना

साहित्कार व इतिहासकार डा. श्रीराम परिहार ने बताया कि इस प्राकृतिक स्थल की सार्थकता तभी है जब प्राकृतिक जलस्रोत को हम पूरी तरह सुरक्षित रख सकें। उसे प्रदूषण व अतिक्रमण से मुक्त रखें। जहां भी ऐसे जल स्रोत हैं उनके आसपास पौध रोपण बड़ी संख्या में होना चाहिए, वहीं उससे आधे या एक किलोमीटर दूर इस पानी के उपयोग के लिए व्यवस्था हो। इसके पास निर्माण भी नहीं करना चाहिए।