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Subhas Chandra Bose Statue at India Gate: इंडिया गेट पर लगेगी नेताजी शुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा, जानिए इसके पीछे की कहानी

Subhas Chandra Bose Statue at India Gate

इंडिया न्यूज़, नई दिल्‍ली:
Subhas Chandra Bose Statue at India Gate: राजधानी दिल्ली के इंडिया गेट (India Gate) पर 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) की प्रतिमा लगाई जाएगी, जिसकी घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने की है। इस घोषणा के बाद एक बार फिर से सोशल मीडिया पर ये चर्चा शुरू हो गई है कि क्या जवाहरलाल नेहरू नहीं बल्कि सुभाष चंद्र बोस देश के पहले प्रधानमंत्री थे? 1947 से पहले ही आखिर कैसे सुभाष चन्द्र बोस नेताजी ने कर दिया था भारत की पहली आजाद सरकार का गठन? क्या नेताजी देश के पहले प्रधानमंत्री थे? चलिए जानते हैं ऐसी ही कई सवालों के जवाब।

नेताजी ने बनाई थी आजाद हिंद की पहली सरकार

बात 21 अक्टूबर 1943 की है जब भारत की पहली स्वतंत्र अस्थाई सरकार का गठन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने किया था, जिसका नाम आजाद हिंद सरकार (Aazaad Hind Sarakaar) रखा था। नेताजी ने इस सरकार का गठन दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सिंगापुर में किया था और इस सरकार को आजाद भारत की पहली ‘अर्जी हुकुमत-ए-आजाद हिंद’ (Arjee Hukumat-e-Azad Hind) का नाम दिया था। इसे निर्वासित सरकार (Government in exile) भी कहा जाता है।

नेताजी ने निर्वासित सरकार (Government in exile) का गठन करते ही भारत को अंग्रेजों के शासन से मुक्त कराने के लिए सशस्त्र संघर्ष की शुरुआत की थी। बोस को यकीन था कि यह सशस्त्र संघर्ष ही देशवासियों को आजादी हासिल करने में मदद करेगा। जापान (Japan) ने अंडमान-निकोबार द्वीप को भी नेताजी की आजाद हिंद सरकार को सौंप दिया था।

बोस थे अस्थाई सरकार के प्रधानमंत्री

निर्वासित या (Government in exile) सरकार में नेताजी Head of state और प्रधानमंत्री थे। वहीं कैप्टन लक्ष्मी सहगल (Captain Laxmi Sehgal) के हाथों में महिला संगठन की कमान थी। इस सरकार में एस.ए अय्यर (S.A. Iyer) प्रचार विंग संभालते थे। रास बिहारी बोस (Rash Behari Bose) को नेताजी का प्रधान सलाहकार बनाया गया था। आजाद हिंद सरकार के पास अपना बैंक, करेंसी, सिविल कोड और स्टैंप भी थे। देश की पहली महिला रेजिमेंट-रानी झांसी रेजिमेंट (Rani Jhansi Regiment) का भी गठन बोस ने आजाद हिंद फौज (Azad Hind Fauj) में किया था।

धुरी राष्ट्रों ने दी थी नेताजी की सरकार को मान्यता

नेताजी द्वारा गठित देश की पहली आजाद हिन्द सरकार को उस समय धुरी राष्ट्रों के गुट में शामिल जर्मनी(Germany), जापान(Japan), इटली(Italy), क्रोएशिया(Croatia), थाईलैंड(Thailand), बर्मा(Burma), मंचूरिया(Manchuria), फिलीपींस (Philippines) समेत 8 देशों ने मान्यता दी थी और उसका समर्थन किया था। जर्मनी ने भी नेताजी की अस्थाई सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसमें जापानी सेना ने भी अहम रोल निभाया था। इस सरकार के गठन के लिए नेताजी ने सिंगापुर (Singapore) को चुना था क्यूंकि उस समय सिंगापुर में जापान का कब्जा था। जापान उस समय अंग्रेजों के खिलाफ दूसरे विश्व युद्ध (second world war) के लिए बने जर्मनी के नेतृत्व वाले धुरी राष्ट्रों का सदस्य था।

क्या होती है ‘गवर्नमेंट इन एग्जाइल’ या निर्वासित सरकार’

ऐसा राजनीतिक दल है जो किसी देश की वैध सरकार होने का दावा करती है, लेकिन वह किसी अन्य देश में रहने की वजह से सरकार की कानूनी शक्तियों का प्रयोग करने में असमर्थ होती है। आमतौर पर निर्वासित सरकारों ‘गवर्नमेंट इन एग्जाइल’ की योजना एक दिन अपने मूल देश लौटने और औपचारिक सत्ता हासिल करने की होती है।

नेताजी द्वारा आजाद हिंद सरकार के गठन से भी पहले निर्वासित सरकारों का चलन रहा है और अब भी दुनिया में कई निर्वासित सरकारें काम कर रही हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण तिब्बत है, जहां दलाई लामा (Dalai Lama) द्वारा 1959 में गठित तिब्बत (Tibet) की निर्वासित सरकार भारत की राजनीतिक शरण में रह रही है, क्योंकि तिब्बत पर चीन (China) ने कब्जा जमा रखा है।

नेताजी थे देश के पहले प्रधानमंत्री

सुभाष चंद्र बोस ही देश के पहले प्रधानमंत्री थे। उनके प्रपोत्र ने 2017 में कहा था कि नेताजी आजाद हिंद फौज के प्रमुख थे और उन्होंने अंडमान-निकोबार द्वीप में भारत का झंडा लहराया था। देशवासियों को स्वतंत्रता संग्राम के असली तथ्यों की जानकारी देने के लिए आजादी की लड़ाई का इतिहास दोबारा लिखा जाना चाहिए।

आजादी की लड़ाई में नेताजी की भूमिका अहम

आजादी की लड़ाई में सुभाष चन्द्र बोस नेताजी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिसमे वह कई बार जेल गए थे। अंग्रेजों ने 1940 में नेताजी को कलकत्ता में उनके घर पर नजरबंद कर दिया था। इतने सख्त पहरे के बावजूद वे 26 जनवरी 1941 को कैद से भाग निकले और काबुल और मास्को होते हुए अप्रैल में हिटलर (Hitler) के शासन वाले जर्मनी (Germany) पहुंच गए।

1943 में नेताजी जापान पहुंचे। जापान के साउथ ईस्ट एशिया पर हमले के बाद जुलाई 1943 में नेताजी ने आजाद हिंद फौज की कमान संभाली थी। नेताजी ने 21 अक्टूबर 1943 को भारत की पहली स्वतंत्र अस्थाई सरकार के गठन का ऐलान कर दिया था। 1944 में आजाद हिंद फौज के सैनिकों को संबोधित करते हुए नेताजी ने प्रसिद्ध नारा दिया था, ”तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।”

अंग्रेजों के खिलाफ खोला मोर्चा

1943 में देश की पहली निर्वासित सरकार के गठन के बाद आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए रंगून की ओर बढ़ी और वहां से 18 मार्च 1944 को भारत में दाखिल हुई। आजाद हिंद फौज ने कोहिमा और इम्फाल में अंग्रेजों से लोहा लिया। हालांकि जापान की वायुसेना की मदद न मिल पाने से आजाद हिंद फौज को वहां हार झेलनी पड़ी। दूसरे विश्व युद्ध में जापान के आत्मसमर्पण और 18 अगस्त 1945 को विमान दुर्घटना में नेताजी की मौत के बाद आजाद हिंद फौज का सफर थम सा गया।

देश की आजादी में आजाद हिंद फौज अहम योगदान

ब्रिटिश पीएम क्लेमेंट एटली ने माना था कि भारत की आजादी की प्रमुख वजहों में सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज की गतिविधियां भी थीं, जिसने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य हिला कर रख दिया I

क्यों जवाहर लाल नेहरू हैं देश के पहले प्रधानमंत्री?

आजादी से पहले 29 अप्रैल 1946 को हुए कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के समर्थन से जवाहल लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) को कांग्रेस (Congress) अध्यक्ष चुना गया। उस समय भारत आजादी की चौखट पर खड़ा था और आजाद भारत की पहली अंतरिम सरकार के प्रमुख के रूप में उस समय की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष को ही देश का प्रधानमंत्री बनाया जाना था। जवाहर लाल नेहरू 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के बाद गठित पहली अंतरिम सरकार के प्रमुख यानी प्रधानमंत्री बने।

उन्होंने 15 अगस्त 1947 को सम्प्रभुत्व भारत के पहले प्रधानमंत्री के तौर पर लाल किले (Red Fort) पर तिरंगा फहराया था यानी आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। नेहरू 1951, 1957 और 1962 में चुनाव जीतते हुए 17 साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे। उनकी पद पर रहते हुए ही 27 मई 1964 को दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी।

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