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CAA पर SC का बड़ा फैसला, सुप्रीम कोर्ट में 10 बड़ी बातें पर हुई सुनवाई

Rajesh kumar • LAST UPDATED : March 20, 2024, 1:27 am IST

India News(इंडिया न्यूज),Citizenship Amendment Act: नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर फिलहाल कोई रोक नहीं है। याचिकाकर्ताओं की पुरजोर मांग के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सीएए के क्रियान्वयन पर अंतरिम रोक का आदेश नहीं दिया। कोर्ट ने रोक लगाने की मांग वाली अर्जियों पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और केंद्र से तीन हफ्ते के भीतर 8 अप्रैल तक जवाब दाखिल करने को कहा है। कोर्ट 9 अप्रैल को मामले की दोबारा सुनवाई करेगी।

सुप्रीम कोर्ट में 10 बड़ी बातें पर हुई सुनवाई

1. सीएए कानून में पड़ोसी राज्यों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर प्रताड़ित अल्पसंख्यकों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। सीएए कानून 2019 में पारित हो गया था, लेकिन इसके नियमों को अंतिम रूप दिया गया और इसके कार्यान्वयन की अधिसूचना 11 मार्च को जारी की गई।

2. इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) और डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर CAA के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग की है। इसके अलावा एआईएमआईएम और अन्य ने भी सीएए पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। इन अंतरिम याचिकाओं के अलावा सुप्रीम कोर्ट में कुल 237 याचिकाएं लंबित हैं जिनमें सीएए को चुनौती दी गई है।

3. मंगलवार को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच के सामने हुई सुनवाई में याचिकाकर्ताओं कपिल सिब्बल, इंद्रा जयसिंह, निज़ाम पाशा के वकीलों ने सीएए के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग की। IUML की ओर से पेश हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर कोर्ट ने इस पर रोक नहीं लगाई तो मामला महत्वहीन हो जाएगा।

4. उन्होंने कहा कि कानून लागू करने की अधिसूचना चार साल तीन महीने बाद जारी की गई है। जब इतने समय तक कानून लागू नहीं था तो अब जल्दी क्या है? इन दलीलों पर कोर्ट ने कहा कि वह नोटिस जारी कर रहा है और केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि आप याचिकाओं पर कब तक जवाब देंगे। मेहता ने चार हफ्ते का समय मांगा, लेकिन सिब्बल ने इसका विरोध किया और कहा कि यह बहुत ज्यादा समय है।

5. मेहता ने कहा कि कुल 237 याचिकाएं लंबित हैं, सभी का जवाब देना होगा। इसके अलावा कई स्टे एप्लीकेशन भी हैं इसलिए इसमें समय लगेगा। पीठ ने उनसे कहा कि वह पहले तीन सप्ताह के भीतर अंतरिम रोक पर अपना जवाब दाखिल करें। कोर्ट ने केंद्र से 8 अप्रैल तक जवाब देने को कहा है और पक्षकारों के वकीलों से 2 अप्रैल तक अपनी दलीलों का पांच पेज का संक्षिप्त नोट दाखिल करने को भी कहा है। साथ ही वकील कनु अग्रवाल और अंकित यादव को नोडल वकील नियुक्त किया गया है।

6. सुनवाई के दौरान सीएए का लाभ लेने के बाद नागरिकता पाने का इंतजार कर रहे व्यक्ति की ओर से वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने कहा कि उनका मुवक्किल 2014 में बलूचिस्तान से आया था और हिंदू होने के कारण उसे वहां परेशान किया गया था। CAA के तहत नागरिकता मिली थी। यदि हां, तो याचिकाकर्ता इससे कैसे प्रभावित होंगे? इंद्रा जयसिंह ने कहा कि उन्हें वोट देने का अधिकार मिलेगा।

7. जस्टिस चंद्रचूड़ ने सॉलिसिटर जनरल मेहता से पूछा कि क्या सीएए के तहत नागरिकता देने के लिए कोई कमेटी आदि बनाई गई है? परिस्थिति क्या है। मेहता ने कहा कि त्रिस्तरीय व्यवस्था है। एक कमेटी गठित कर आवेदन जमा किये जायेंगे। दस्तावेज देखे जायेंगे। वह यह नहीं बता सकते कि पूरी प्रक्रिया में कितना समय लगता है। लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि किसी को नागरिकता देने से याचिकाकर्ताओं पर कोई असर नहीं पड़ता है।

8. AIMIM के वकील पाशा ने कहा कि सिर्फ मुसलमानों को रिहा किया गया है। पहले सीएए और फिर एनआरसी लागू होगा, इससे मुसलमान प्रभावित होंगे। सॉलिसिटर जनरल ने दलीलों का विरोध किया और कहा कि सीएए का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के सामने है और यहां एनआरसी का कोई मुद्दा नहीं है, इसलिए उन्हें यहां ऐसी दलीलें नहीं देनी चाहिए।

9. वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया और कुछ अन्य याचिकाकर्ताओं ने असम और उत्तर पूर्वी राज्यों का मुद्दा उठाया। आदिवासी संगठनों की ओर से पेश हुए हंसारिया ने कहा कि आदिवासी इलाकों को कानून से बाहर रखा गया है, एक तरह से पूरा नॉर्थ ईस्ट अलग है और इसमें कई मुद्दे हैं। कोर्ट ने कहा कि वह असम सेक्शन पर अलग से सुनवाई करेगा।

10. मामले में नोटिस जारी होने के बाद इंद्रा जयसिंह ने कहा कि केंद्र से बयान लिया जाए कि वह इस बीच सीएए के तहत किसी को नागरिकता नहीं देगी। लेकिन मेहता ने ऐसा कोई भी बयान देने से इनकार कर दिया। तब जयसिंह ने कहा कि कोर्ट आदेश दे कि इस बीच अगर किसी को नागरिकता दी जाती है तो वह कोर्ट के आदेश के अधीन होगा। लेकिन कोर्ट ने इस पर कोई आदेश नहीं दिया। तब सिब्बल ने कहा कि अगर इस बीच किसी को नागरिकता दी जाती है तो उन्हें कोर्ट में आने की इजाजत दी जानी चाहिए। पीठ ने कहा ठीक है।

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