India News (इंडिया न्यूज), Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसले में अपने पिछले आदेश को रद्द कर दिया और खनन और खनिज-उपयोग गतिविधियों पर रॉयल्टी लगाने के राज्यों के अधिकार को बरकरार रखा। 8:1 के फैसले में भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने फैसला सुनाया कि ‘रॉयल्टी’ ‘कर’ के समान नहीं है, न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने असहमतिपूर्ण फैसला सुनाया।
“रॉयल्टी कर की प्रकृति में नहीं है…हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि इंडिया सीमेंट्स के फैसले में यह कहा गया है कि रॉयल्टी कर है, जो गलत है। सरकार को किए गए भुगतान को केवल इसलिए कर नहीं माना जा सकता क्योंकि कानून में बकाया राशि की वसूली का प्रावधान है,” मुख्य न्यायाधीश ने कहा।
- न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने असहमतिपूर्ण फैसला सुनाया
- सुप्रीम कोर्ट ने 1989 के अपने फैसले को रद्द करते हुए इसे ‘गलत’ बताया
- राज्यों के पास खनन गतिविधियों पर उपकर लगाने का अधिकार बरकरार
SC ने 1989 के अपने फैसले को रद्द करते हुए इसे ‘गलत’ बताया
पीठ के अधिकांश न्यायाधीशों ने माना कि राज्यों से खनन या संबंधित गतिविधियों पर उपकर लगाने की शक्ति नहीं छीनी जा सकती। बहुमत ने फैसला सुनाया, “खनिज अधिकारों पर कर लगाने की विधायी शक्ति राज्य विधानमंडल के पास है और संसद के पास खनिज अधिकारों पर कर लगाने की विधायी क्षमता नहीं है…चूंकि यह एक सामान्य प्रविष्टि है और संसद इस विषय के संबंध में अपनी अवशिष्ट शक्ति का उपयोग नहीं कर सकती…राज्य विधानमंडल के पास खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने के लिए सूची 2 की प्रविष्टि 49 के साथ अनुच्छेद 246 के तहत विधायी क्षमता है।”
न्यायमूर्ति नागरत्ना दोनों पहलुओं पर असहमत थीं। उन्होंने कहा, “मेरा मानना है कि रॉयल्टी कर की प्रकृति में है। राज्यों के पास खनिज अधिकारों पर कोई कर या शुल्क लगाने की कोई विधायी क्षमता नहीं है…मेरा मानना है कि इंडिया सीमेंट्स का निर्णय सही था।”
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