इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
(Tata And Air India) सरकारी विमानन कंपनी एअर इंडिया के लिए सबसे ऊंची बोली टाटा संस ने लगाई है। इसक बाद माना जा रहा है कि एअर इंडिया फिर से टाटा ग्रुप के पास ही आएगी। यदि ऐसा हुआ तो 68 साल बाद एअर इंडिया की घर वापिसी हुई होगी, क्योंकि एअर इंडिया की स्थापना 1932 में जेआडी टाटा ने ही की थी। हालांकि सरकार अब एअर इंडिया में 100% हिस्सेदारी बेचेगी। वहीं एअर इंडिया की दूसरी कंपनी एअर इंडिया सैट्स में सरकार इसी के साथ 50% हिस्सेदारी बेचेगी।
Air India Privatisation And Air India Sale ये है कहानी एयर इंडिया की
आपको बता दें कि एअर इंडिया के लिए बोली लगाने की आखिरी तारीख 15 सितंबर थी और टाटा ने आखिरी दिन ही बोली के लिए आवेदन किया था। इसके बाद ही अनुमान लगाया जा रहा था कि एअर इंडिया का टाटा के पास आना तय है। कहा जा रहा है कि एअर इंडिया का रिजर्व प्राइस 15 से 20 हजार करोड़ रुपए तय किया गया था। टाटा ग्रुप ने स्पाइस जेट के चेयरमैन अजय सिंह से करीबन 3 हजार करोड़ रुपए ज्यादा की बोली लगाई थी। एअर इंडिया के लिए जो कमेटी गठित हुई है उसमें वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण, कॉमर्स मंत्री पियूष गोयल और एविएशन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं।
सरकार एअर इंडिया को कई सालों से बेचने की योजना बना रही थी क्योंकि एअर इंडिया काफी कर्जे में है। सबसे पहले एअर इंडिया को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान बेचने की तैयारी थी। इसे बेचने का फैसला साल 2000 में किया गया था। 27 मई 2000 को सरकार ने एअर इंडिया में 40% हिस्सा बेचने का फैसला किया था। सरकार ने 2018 में 76% हिस्सेदारी बेचने के लिए बोली मंगाई थी। लेकिन तब सरकार मैनेजमेंट कंट्रोल अपने पास रखने की बात कही थी। लेकिन इसमें किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसक बादर सरकार ने मैनेजमेंट कंट्रोल के साथ इसे 100% बेचने का फैसला किया।
एयर इंडिया को पहले टाटा एयरलाइंस के नाम से जाना जाता था। इस कंपनी की स्थापना जेआरडी टाटा ने 1932 में की थी। 1946 में टाटा एयरलाइंस पब्लिक होल्डिंग में कूद पड़ी। कंपनी अच्छे मुनाफे में भी रही और फिर इसका नाम बदलकर एयर इंडिया रख दिया गया। 1947 में आजादी के बाद नेहरू सरकार में कई बैंक और अन्य कंपनियों का राष्ट्रीयकरण हुआ। राष्ट्रीयकरण की पॉलिसी में एयर इंडिया भी आई। 1948 में सरकार ने एयर इंडिया में 49 फीसदी शेयर खरीदे और फिर 1953 में भारत सरकार ने एयर कॉरपोरेशन एक्ट पास किया, जिससे एयर इंडिया समेत 7और प्राइवेट एयरलाइंस सरकारी क्षेत्र की कंपनियां बन गईं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार द्वारा उड्डयन क्षेत्र की कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करने पर जेआरडी टाटा खासे नाराज थे। वे अपनी कंपनी सरकार के हाथ में नहीं सौंपना चाहते थे। यहां तक कि नेहरू के सामने ही कह दिया था कि उनकी सरकार नागरिक उड्डयन क्षेत्र में निजी कंपनियों को दबाना चाहती है। इसके बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने स्वयं जेआरडी टाटा को निजी चिट्ठी लिखकर उन्हें समझाने की भी कोशिश की।
लेकिन जेआरडी ने फिर से नाराजगी जताई और कहा कि बिना किसी विचार विमर्श के कंपनी का निजीकरण करने का फैसला गलत है। उन्होंने यह तर्क भी दिया था कि नई सरकार को एयरलाइंस कंपनी चलाने का कोई अनुभव नहीं था। सरकारी हाथों में जाने से उड़ान सेवाओं में सिर्फ नौकरशाही और सुस्ती दिखाई देगी।
लेकिन सरकार ने उनके विरोध को अनदेखा किया और अपनी पॉलिसी की ओर ही ध्यान दिया। हालांकि नेहरू ने जेआरडी टाटा को एयर इंडिया का चेयरमैन बना दिया था। एयर इंडिया के सरकारी हाथों में जाने के बावजूद जेआरडी टाटा लंबे समय तक इस एयरलाइंस के प्रबंधन का काम देखते रहे।
एयर एंडिया के संस्थापक जेआरडी टाटा 1932 में खुद टाटा एयरलाइंस के पहले सिंगल इंजन विमान हैविललैंड पुस मॉथ को कराची से उड़ाकर मुम्बई के जुहू एयरोड्रोम लाए थे। इसके ठीक 50 साल बाद 1982 में भी जेआरडी टाटा फिर से पुस मॉथ को कराची से उड़ाकर बॉम्बे लाए थे।
एअर इंडिया 2007 में इंडियन एयरलाइंस में विलय के बाद से नुक्सान में रही है। एअर इंडिया पर 31 मार्च 2019 तक कुल 60,074 करोड़ रुपए का कर्ज है। जो भी एअर इंडिया को खरीदेगा, उसे इसमें से 23,286.5 करोड़ रुपए का कर्ज का बोझ उठाना होगा। बाकी का कर्ज एअर इंडिया असेट होल्डिंग को स्पेशल परपज व्हीकल के जरिए ट्रांसफर किया जाएगा।
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