India News (इंडिया न्यूज़), Independence Day Special, नई दिल्ली: देश को आजादी दिलाने के लिए कई स्वतंत्रता सैनानी शहीद हो गए। स्वतंत्रता संग्राम की बलि वेदी पर आजादी के अनगिनत दीवानों ने अपने प्राणों तक को न्यौछावर कर दिया। इसके लिए कई महिलाओं का सुहाग उजड़ा, कई मां की गोद सूनी हो गई, कई बहनों से उनके भाई की राखी बांधने वाली कलाई छिन गई। 15 अगस्त 1947 का वो दिन जब आखिरकार एक लंबे संर्घष के बाद हमारा देश ब्रिटिश गुलामी की बेड़ियों से आजाद हुआ था। मगर देश का बंटवारा भी हो गया। मजहब के आधार पर एक देश का बंटवारा हो गया। भारत से अलग होकर एक नया मुल्क पाकिस्तान बन गया था।
भारत के दोनों तरफ पाकिस्तान पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान है जो कि अब बांग्लादेश बन चुका है। भारत के हिस्से वाले इलाकों में करीब 500 से ज्यादा छोटी-बड़ी रियासतें हुआ करती थीं। कुछ ऐसा ही हाल पाकिस्तान वाले हिस्से का भी हुआ करता था। नए-नए आजाद हुए देश के लिए इन सभी देसी रियासतों का विलय एक सबसे बड़ी चुनौती थी। कुछ रियासतें ऐसी भी थीं जहां मुस्लिम शासक था। परंतु ज्यादातर आबादी हिंदू और वहां के शासक पाकिस्तान में विलय चाहते थे।
बता दें कि इन सभी रियासतों का सरदार वल्लभ भाई पटेल ने विलय कराया था। तत्कालीन जवाहरलाल नेहरू सरकार और खासकर तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इन रियासतों का विलय करवाया। मान-मनौव्वल, समझा-बुझाकर और जरूरत पड़ने पर सख्ती दिखाकर उन्होंने इन रियायतों का विलय करा लिया। तिनका-तिनका जोड़कर जैसे चिड़ियां अपना घोंसला बनाती हैं। ठीक उसी तरह एक-एक रियायत जोड़कर आधुनिक भारत की नींव रखी गई। तो आइए इस स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक नजर डालते हैं इन रियासतों में से एक त्रावणकोर रियासत के भारत विलय पर….।
साल 1946 आते-आते ये साफ हो गया था कि भारत अब ब्रिटिश उपनिवेश का हिस्सा नहीं रहेगा। उस समय त्रावणकोर के दीवान सीपी रामास्वामी इस बात पर अड़े हुए थे कि उनके राज्य अंग्रेजों के जाने के बाद स्वतंत्र रहेगा। उन्होंने इसकी घोषणा की थी कि त्रावणकोर के राजा थिरुनल बलराम वर्मा एक अलग देश बनाने के पक्ष में हैं। खनिज संपदा के मामले में ये रियासत खूब समृद्ध था। वहीं मोहम्मद अली जिन्ना त्रावणकोर के दीवान के समर्थन में खुलकर सामने आ गए थे। जिस कारण उनका हौसला और ज्यादा बढ़ गया था।
जिन्ना दक्षिण भारत में अपना एक अलग देश बनाने की कल्पना करके ही बेहद खुश हो रहे थे। वहीं दीवान जिन्ना के बहकावे में आ चुके थे। वहीं दूसरी तरफ उनके इस रुख को देखकर त्रावणकोर की प्रजा में आक्रोश बढ़ता ही जा रहा था।
जगह-जगह सीपी अय्यर के खिलाफ लोग विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे। जुलाई 1947 में उन पर जानलेवा हमला भी हुआ जिसमें वह बाल-बाल बच गए। सच भी है, भय बिनु होई न प्रीत। इसके बाद त्रावणकोर के राजा का दिल बदला और 30 जुलाई 1947 को त्रावणकोर भारत का हिस्सा बन गया।
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