INDIA (DELHI): सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की आजादी मामले मे मंगलवार को बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा की किसी सांसद, मंत्री या विधायक क्या बोलते है इसकी जिम्मेदारी सरकार की नहीं है।

संविधान पीठ ने कहा है कि एक मंत्री भले ही किसी राज्य या केंद्र के किसी भी मामले के लिए बयान दे ,इसे सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू नहीं किया जा सकता और इसके लिए उस राज्य के सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

पांच जजों की बेंच में से एक जज ने सुनाया अलग निर्णय

पांच जजों की बेंच में से एक जज न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने अपना एक अलग निर्णय सुनाया दिया है। बी वी नागरत्ना ने कहा, बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी एक बहुत आवश्यक अधिकार है, जिससे लोगो को शासन के बारे में अच्छी तरह से सूचित किया जा सके और लोगो को इसके बारे में बताया जा सके।

उन्होंने कहा कि अभद्र भाषा समाज में गंदगी फैलता है। साथ ही विशेष रूप से भारत में विविध विभिन लोगो के अस्तित्व पर हमला करती है। बाकि के चार जज अभी तक किसी फैसले पर नहीं पहुंचे है।

इसके साथ ही न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने कहा की अभिव्यक्ति की आजादी होना हर नागरिक के लिए जरुरी है। लेकिन इसका यह मतब नहीं है की आप कही भी कुछ भी बोल सके। खास कर किसी पड़े पदों पर बैंठे लोगो को इस बात का ज्यादा ध्यान देना चाहिए।

संसद इस मुद्दे पर क्या करे ?

कोई नेता नागरिको के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी न करे इसके लिए संसद को एक कानून बनाना चाहिए। यह सभी राजनीतिक दलों के लिए है कि वे अपने मंत्रियों द्वारा दिए गए भाषणों को नियंत्रित करें।

इस मुद्दे को रोकने के लिए संसद को आचार संहिता बनानी चाहिए। कोई भी नागरिक नेताओ के अभद्र बयान से, भाषणों या सार्वजनिक अधिकारी द्वारा अभद्र भाषा से हमला महसूस करता है।

तो ऐसा कोई नियम हो जिसके तहत वो नागरिक अदालत का रुख कर सकता है और अपने हक़ के लिए अदालत जा सकते। इसके लिए संसद को अचार संहिता लागू करना पड़ेगा।