India News(इंडिया न्यूज), Jharkhand Assembly Appointment Case: झारखंड विधानसभा में नियुक्ति अनियमितता मामले में झारखंड हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका पर गुरुवार को सुनवाई पूरी हो गई, जिसके बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। याचिकाकर्ता ने बुधवार को हलफनामे के जरिए राज्य सरकार की ओर से दाखिल जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की रिपोर्ट के कई बिंदुओं पर कोर्ट का ध्यान आकृष्ट कराया। जिसके बाद आज इस मामले में दोनों पक्षों की सुनवाई पूरी हुई और अब कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।
कोर्ट ने दोनों पक्षों को शनिवार तक लिखित दलीलें पेश करने का निर्देश दिया है। सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए महाधिवक्ता राजीव रंजन ने कोर्ट को बताया कि जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की रिपोर्ट को लीगल रिपोर्ट नहीं माना जाएगा। रिपोर्ट को सरकार के समक्ष पेश किया जाना चाहिए था, लेकिन इसे सीधे राज्यपाल को दे दिया गया। राज्यपाल ने जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की रिपोर्ट सरकार को नहीं दी। जिसके कारण कार्रवाई रिपोर्ट के बाद 6 महीने के अंदर इसे विधानसभा के पटल पर नहीं रखा जा सका।
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राजीव रंजन ने आगे कहा कि जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की रिपोर्ट में कई त्रुटियां थीं और उस आयोग की कई सिफारिशें भी अस्पष्ट थीं। जिसके बाद इन त्रुटियों की जांच के लिए जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय का एक आयोग गठित करना पड़ा। जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की रिपोर्ट को राज्य सरकार ने स्वीकार कर लिया है और इसे विधानसभा के पटल पर रख दिया है। जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की रिपोर्ट की यह अंतिम रिपोर्ट है।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता राजीव कुमार ने कोर्ट को बताया कि झारखंड विधानसभा के वर्तमान अध्यक्ष विधानसभा समिति के सदस्य हैं, इस समिति ने विधानसभा नियुक्ति अनियमितता मामले की जांच रिपोर्ट दी थी, उस पर कार्रवाई होनी चाहिए। उनकी ओर से कोर्ट को बताया गया कि जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्हें सिर्फ जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की रिपोर्ट दी गई, रिपोर्ट के साथ कोई दस्तावेज (अनुलग्नक) नहीं दिया गया।
गौरतलब है कि इससे पहले एसजे मुखोपाध्याय आयोग की रिपोर्ट सरकार ने हलफनामे के माध्यम से कोर्ट को सौंपी थी। झारखंड विधानसभा में नियुक्ति अनियमितता मामले में शिवशंकर शर्मा ने जनहित याचिका दायर की है। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार और झारखंड विधानसभा से पूछा था कि जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की रिपोर्ट में क्या त्रुटियां थीं, जिसके कारण दूसरा आयोग गठित करना पड़ा।
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