इंडिया न्यूज,नई दिल्ली, (The toppling of the government against the constitution): महाराष्ट्र सियासी मामला बड़ा पेचीदा होता जा रहा हैं । सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद उद्वव गुट के वकील कपिल सिब्बल ने कहा, राज्य में जिस तरह से सरकार को गिराया गया, वह संविधान के विरुद्ध है। उन्होंने कहा कि अयोग्यता की याचिका लंबित होने के बाद भी शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन किया गया। जबकि, फैसला आने तक इंतजार किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि अगर इस मामले को जाने दिया गया,तो ऐसे हर चुनी हुई सरकार गिर जाएगी। वहीं सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई के लिए बड़ी बेंच गठित कर सकता है। बुधवार को मामले की सुनवाई के दौरान सीजेआई एनवी रमना ने इसके संकेत दिए। उन्होंने कहा कि मामले की सुनवाई के लिए एक बड़ी बेंच की आवश्यकता हो सकती है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि बेंच किस तरह की हो, उस पर विचार कर बेंच का गठन करनें में कुछ समय लग सकता है।
शिंदे गुट के वकील ने जवाब दाखिल करने के लिए मांगा एक सप्ताह
शिंदे गुट के वकील हरीश साल्वे ने उद्धव गुट की याचिकाओं का जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा। इस पर कोर्ट ने कहा कि सभी पक्ष अपनी लिखित दलीलें जमा करें। आपस मे चर्चा कर सुनवाई के बिंदुओं का एक ही संकलन जमा करें। इस मामले में अगली सुनवाई एक अगस्त को होगी। दरअसल, महाराष्ट्र में दोनों खेमे (एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे) अपने-अपने विधायकों की विधायकी बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उद्धव खेमे की ओर से शिंदे गुट के 15 विधायकों को अयोग्यता का नोटिस दिए जाने के बाद शिंदे खेमे के स्पीकर की ओर से उद्धव खेमे के विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही शुरू की गई है। इसके बाद उद्धव खेमा भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। इन्हीं मामलों पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई।
तीन जजों की बेंच कर रही सुनवाई
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और हिमा कोहली की पीठ उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले खेमे और एकनाथ शिंदे खेमे द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इससे पहले 11 जुलाई को शिवसेना के शिंदे गुट को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली थी। सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे गुट के 16 विधायकों की अयोग्यता मामले में सुनवाई को फिलहाल टाल दिया था और कहा था कि इस मामले में बेंच गठित की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महाराष्ट्र विधानसभा स्पीकर अयोग्यता नोटिस पर तब तक फैसला नहीं कर सकते जब तक कि अदालत उस पर फैसला न दे।
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