इंडिया न्यूज, मुंबई, (Uddhav Targets Eknath Shinde And BJP) : उद्धव ने एकनाथ शिंदे और भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि जब वह अस्पताल में हिलने लायक नहीं थे तब उनके पीठ में छुरा घोंपा गया। उन्होंने यह बयान महाराष्ट्र में सरकार गिरने के 26 दिन बाद दी है। उद्धव ने सामना को दिए गए एक इंटरव्यू मे कहा कि उनके साथ विश्वासघात हुआ है। दिल्ली ने महाराष्ट्र की पीठ में छुरा घोंपा है। महाराष्ट्र सरकार गिराने की प्लानिंग तब की गई, जब वे अस्पताल में भर्ती थे और हिल भी नहीं पा रहे थे।
उन्होंने आगे कहा कि अगर मैंने शिंदे को मुख्यमंत्री बना भी दिया होता तो इससे कोई लाभ नहीं होता। उसके इरादे शैतानी हैं। सड़े हुए पत्तों को पेड़ से गिर ही जाना चाहिए। जिन्हें सब कुछ दिया, वे खुद ही पेड़ को छोड़कर जा रहे हैं। जिन्हें सबसे ज्यादा फायदा मिला, वही पार्टी छोड़कर गए। ये वो लोग थे, जो अपनी ही मां (असली शिवसेना) को निगल जाना चाहते हैं, लेकिन मां तो आखिर मां होती है। हम साधारण लोगों में से असाधारण लीडर्स बनाएंगे।
उद्धव ने कहा कि शिंदे गुट पर विश्वास करना ही उनकी सबसे बड़ी गलती थी। उद्धव ने शिंदे गुट से कहा कि वे बालासाहेब के नाम पर वोट न मांगें। ये बातें उन्होंने शिवसेना के मुखपत्र सामना को दिए इंटरव्यू में कहा। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद यह उनका पहला इंटरव्यू है। उन्होंने कहा कि शिवसेना के नाम पर वोट मांग कर शिवसेना की गरिमा को नष्ट न करें।
शिंदे गुट के साथ गठबंधन करने को लेकर उद्धव ने भाजपा पर भी हमला किया। उन्होंने कहा कि अगर भाजपा ने 2019 में मेरी मांगें मान ली होतीं, तो उनके लिए हमारे मन में काफी इज्जत बढ़ जाती। उन्होंने आगे कहा कि भाजपा ने जो अब किया है, वह तब करते तो यह बेहद इज्जतदार तरीके से हो सकता था। उन्होंने इस बार जो करोड़ों रुपए खर्च किए हैं, वे बच जाते। दिल्ली ने महाराष्ट्र की पीठ में छुरा घोंपा है। जिन लोगों को उन्होंने ख्याल रखा, वे ही अब उन्हें खत्म कर देना चाहते हैं।
उद्धव ने कहा कि कुछ लोग हिंदुओं के बीच एकता को खत्म करने की कोशिश करने का प्रयास कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि शिवसेना खत्म हो जाए ताकि वे हिंदुत्व के अकेले ब्रांड बने रहें। वे ठाकरे को शिवसेना से अलग करना चाहते हैं।
शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन महा विकास अघाड़ी के बारे में उद्धव ने कहा कि यह गठबंधन नवंबर 2019 में हुआ था। अगर हमारा यह प्रयोग एक गलती होता तो लोग हमारे खिलाफ विद्रोह कर चुके होते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दूसरी ओर अजीत पवार ने कभी भी मेरी आवाज दबाने की कोशिश नहीं की। हमें अपना काम स्वतंत्र रूप से करने दिया।
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