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Ujjain: भजन गाते-गाते गोपाल कृष्ण महाराज को अचानक आया हार्ट अटैक, पलभर में निकल गई जान!

India News (इंडिया न्यूज), Ujjain Gopal Krishna Maharaj Death: उज्जैन शहर में स्थित धार्मिक केंद्र दमदमा में, पंडित गोपाल कृष्ण महाराज ने अपने धार्मिक संवादों और उनकी अमूल्य शिक्षाओं के माध्यम से एक विशेष पहचान बनाई हैं। उन्होंने उज्जैन के साथ ही प्रदेश के अन्य नगरों में भागवत कथा एवं अन्य धार्मिक आयोजनों का आयोजन किया है, जिससे लोग भगवान की भक्ति में समर्पित रहे हैं।

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर, जब वे प्रभु की पूजा और भक्ति के लिए समर्पित थे, उन्हें अचानक भगवान का अंतिम बुलावा प्राप्त हुआ। यह अनोखी घटना इतने अचानक हुई कि सभी के लिए यह असमंजस उत्पन्न कर गया। भगवान की इस अद्वितीय बुलावा ने सभी को अप्रत्याशित कर दिया। यह घटना उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाई, जिसने उन्हें और भी अधिक भक्तिमय बना दिया। उनके शिष्यों और परिवार वालों के लिए भी यह एक अविस्मरणीय पल बना। इस घटना ने उनकी धार्मिक यात्रा को नई दिशा दी और उन्हें भक्ति और सेवा में और भी गहराई तक जाने के लिए प्रेरित किया।

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महाराज जी भगवत कथा के दौरान राधा रानी के मीठे भजन में लीन थे, जब अचानक उन्हें हार्ट अटैक आ गया। वे उसी समय व्यास की गादी पर ही अपने प्राणों को त्याग दिया। उनकी इस अनिर्वाचनीय विदाई ने सभी को अचंभित कर दिया। उनकी मृत्यु ने साफ कर दिया कि भगवान के भक्त जीवन को भक्ति और सेवा में समर्पित करने में ही अपने प्राणों का उद्धार पाते हैं।

महाराज जी की इस अनोखी गति ने सभी को यह सिखाया कि भगवान के समीपता में रहकर ही वास्तविक प्रेम और सम्पूर्ण समर्पण प्राप्त होता है। उनकी यह अद्वितीय जीवन बानी ने सभी को विश्वास दिलाया कि भगवान की पूजा करते-करते ही हम उनसे प्यारे हो जाते हैं और उनके साथी बन जाते हैं।

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अभ्यास की बात सुनाते-सुनाते तोड़ा दम

पंडित गोपाल कृष्ण महाराज राजगढ़ में अपने गुरु जी के समाधि स्थल पर श्रीमद् भागवत कथा कर रहे थे, जबकि आंजना समाज और श्री सद्गुरु सेवा समिति द्वारा इस कथा का आयोजन किया गया था। उन्होंने भक्तों को भगवान की कथा सुनाई रही थीं, जब अचानक महाराज जी की मृत्यु हो गई। इस अनिर्वाचनीय घटना ने सभी को चौंका दिया।

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उनकी मृत्यु का समय बहुत ही अद्वितीय था, जब वे भक्तों को “करत करत अभ्यास से जड़मति होत सुजान” के शब्दों में भगवान की शिक्षा दे रहे थे। यह संदेश उनकी आख़िरी बात बनी और दर्शाया कि जीवन में समर्पण और अभ्यास से ही हम सच्ची ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। वे भक्ति में रत थे और उनकी मृत्यु भी उनके उसी समर्पण और श्रद्धा को प्रतिष्ठित करती है।

Prachi Jain

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