इंडिया न्यूज़ (India News),Doha Meeting Afghanistan Taliban: हाल ही में कतर के राधानी दोहा में संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में अफगानिस्तान पर तीसरी बैठक हुई, जिसमें तालिबान समेत कई देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। यह पहली बार था कि तालिबान ने इस बैठक के लिए अपना प्रतिनिधिमंडल भेजा। संयुक्त राष्ट्र ने अफगानिस्तान पर पहली बैठक में तालिबान को आमंत्रित नहीं किया था। वहीं, दूसरी बैठक में तालिबान ने अफगान नागरिक समाज को बाहर रखने और उसे वैध सरकार के रूप में मान्यता देने की शर्त रखी थी, जिसे स्वीकार नहीं किया गया।
इस बैठक में तालिबान के शामिल होने का एकमात्र उद्देश्य उसे दुनिया में मान्यता दिलाना था, लेकिन यह पूरा नहीं हो सका। संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने बैठक के तुरंत बाद स्पष्ट किया कि इसका मतलब मान्यता देना कतई नहीं है। तालिबान को मान्यता देने का मामला सिर्फ संयुक्त राष्ट्र तक सीमित नहीं है। अभी तक किसी भी देश ने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है। भारत और उसके मित्र रूस ने तालिबान के दूसरे शासन के दौरान आगे बढ़कर उसके साथ संबंध तो बनाए, लेकिन मान्यता देने से दूरी बनाए रखी। पड़ोसी चीन ने भी अपने देश में तालिबान का स्वागत किया है, लेकिन तालिबान के मामले में सबसे दिलचस्प रवैया मुस्लिम देशों का है। अफगानिस्तान को वैश्विक बिरादरी में शामिल करने के लिए एक भी मुस्लिम देश आगे नहीं आ रहा है।
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मुस्लिम देशों का सबसे बड़ा संगठन इस्लामिक सहयोग संगठन यानी OIC है। OIC में 57 देश हैं, जो चार महाद्वीपों में फैले हैं। अफगानिस्तान खुद इसका एक सदस्य है, लेकिन अभी तक इनमें से किसी ने भी तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है। OIC ने दोहा बैठक में भी हिस्सा लिया था। सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि मुस्लिम देश भी अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के साथ खड़े नहीं हैं। इसका जवाब आसान है। तालिबान के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह अफगान महिलाओं को मानवीय या प्राकृतिक अधिकारों के मामले में कोई रियायत नहीं देना चाहता है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने साफ तौर पर कहा है कि जब तक महिलाओं की शिक्षा और रोजगार पर प्रतिबंध जारी रहेगा, तब तक तालिबान सरकार को मान्यता देना लगभग असंभव है।
21वीं सदी में कोई भी देश महिलाओं की शिक्षा पर प्रतिबंध लगाने जैसी मध्ययुगीन सोच के साथ खड़ा नहीं हो सकता। OIC के किसी भी मुस्लिम देश में महिलाओं की शिक्षा पर प्रतिबंध नहीं है। सऊदी अरब, जहाँ इस्लाम का जन्म हुआ, वहाँ भी महिलाओं के प्रति उदार रवैया अपनाया जा रहा है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि तालिबान ने खुद को दुनिया के मुसलमानों से अलग क्यों कर लिया? दरअसल, मुस्लिम देश तालिबान का विरोध नहीं करते, उनकी मुख्य चिंता यह है कि तालिबान सरकार संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रमुख सिद्धांतों का पालन करती है या नहीं।
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