महर्षि वाल्मीकि के बारे में..
क्या आप जानते हैं कि वाल्मीकि पहले एक डाकू थे। जी हां लेकिन फिर भी लोग उन्हें क्यों पूजते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि आगे चलकर उनके जीवन में कुछ ऐसा हुआ जिसने उन्हें पूरी तरह बदल दिया। बता दें कि उन्होंने ने ही भगवान श्री राम (Lord Rama) के जीवन पर आधारित रामायण (Ramayan) महाकाव्य लिख दी थी।
महर्षि वाल्मीकि का जीवन बहुत ही संघर्षों से भरा हुआ था। शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) यानि आज के ही दिन महर्षि वाल्मीकि की जयंती मनाई जाती है।
महर्षि वाल्मीकि कौन थे?
महर्षि वाल्मीकि का असली नाम वाल्मीकि नहीं बल्कि रत्नाकर था। मान्यता है कि यह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र प्रचेता के बेटे थे। कुछ जानकार वाल्मीकि जी को महर्षि कश्यप चर्षणी का बेटा भी मानते हैं। कहा जाता है कि एक भीलनी ने बचपन में महर्षि वाल्मीकि का अपहरण कर लिया था। भील समाज में ही उनका पालन पोषण हुआ था। भील लोग जंगल के रास्ते से गुजरने वाले राहगीरों को लूट लिया करते थे और महर्षि वाल्मीकि भी इसी परिवार के साथ डकैत बन गए थे।
एक घटना ने बदली जिंदगी
जानकार बताते हैं कि एक बार नारद मुनि जंगल के रास्ते जाते हुए डाकू रत्नाकर के चंगुल में आ गए थे। उस समय नारद जी ने उनसे कहा कि इसमें कुछ हासिल नहीं होगा। रत्नाकर ने उनसे कहा कि वो ये सब परिवार के लिए करते हैं। तब नारद मुनि ने उनसे सवाल किया कि क्या तुम्हारे घर वाले भी तुम्हारे बुरे कर्मों के साझेदार बनेंगे? इस पर रत्नाकर ने अपने घर वालों के पास जाकर नारद मुनि का सवाल दोहराया, जिस पर उन्होंने इनकार कर दिया। इससे डाकू रत्नाकर को बड़ा झटका लगा और उनका हृदय परिवर्तन हो गया।