इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :
What is an Asteroid Meaning in Hindi : एस्टेरॉयड चट्टानी खनिजों का हिस्सा या फिर झुंड होता है। ये क्षुद्रग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इन्हें छोटा ग्रह भी कह सकते हैं। अगर परिक्रमा करने वाला उल्का पिंड बड़ा हो तो उसे प्लेनेटॉइड कहा जाता है। एस्टेरॉयड एक ही प्रकार की सामग्री से बने होते हैं।
ये किसी ग्रह के चारों तरफ सौर मंडल मे अपनी दुनिया बनाते हैं और ग्रह के चारों तरफ घूमते रहते हैं। इसके बावजूद भी एस्टेरॉयड को तीन कैटेगिरी में रखा जाता है।
C Type- इस प्रकार के एस्टेरॉयड ज्यादातर सिलिकेट और मिट्टी से बने होते हैं। प्राचीन मलबे के इन गुच्छों का रंग काफी गहरा होता है, और ये तीनों प्रकारों में सबसे आम हैं।
S Type- यह उल्कापिंड भी सिलिकेट ही होते हैं। इन एस्टेरॉयड के साथ लौहे और धातु के टुकड़े भी होते हैं। ये एस्टेरॉयड की कैटेगिरी में पांचवे नंबर पर हैं।
M Type- इस श्रेणी के एस्टेरॉयड धातु, निकल और लोहे से बने होते हैं। इनकी चमक से पता चलता है कि यह एस्टेरॉयड सूर्य की गर्मी से पिघलने से टूटते हैं।
अंतरिक्षा में ग्रहों के बनने से पहल धूल और चट्टाने ही थी। कुछ एस्टेरायॅड बहुत पुराने हैं। जो लाखों वर्षों से अंतरिक्ष में हैं। उनमें से कुछ एस्टेरॉयड ग्रह का रूप भी ले चुके हैं। एस्टेरॉयड के बारे में हमें जो जानकारी मिली है वो धरती पर गिरने वाले टुकड़ों का अध्ययन करने से मिली है। वहीं वर्तमान में कई मिशन एस्टेरॉयड की जांच करने के लिए अंतरिक्ष में भेजे ज रहे हैं।
अधिकांश मंगल और बृहस्पति के बीच क्षुद्रग्रह बेल्ट में परिक्रमा करते हुए पाए जा सकते हैं, अकेले हमारे आंतरिक सौर मंडल में संभावित रूप से 150 मिलियन से अधिक क्षुद्रग्रह हैं और इसमें केवल 100 मीटर (लगभग 330 फीट) से बड़ी वस्तुएं शामिल हैं। आधिकारिक तौर पर एस्टेरॉयड को गिना नहीं गया है।
फिर भी आधिकारिक तौर पर 1 मिलियन से ज्यादा एस्टेरॉयड की जानकारी सूचीबद्ध है। उनमें से सबसे चमकीला वेस्टा है, जो 525 किलोमीटर (लगभग 326 मील) चौड़ा है, जो सूर्य से पृथ्वी की कक्षीय दूरी के दोगुने से थोड़ा अधिक परिक्रमा करता है।
अक्सर सोशल मीडिया पर ऐसे मैसेज वायरल होते हैं कि रात को एक बहुत बड़ा उल्का पिंड धरती के पास से गुजरेगा। जो ज्यादातर फेक ही होते हैं, लेकिन इस बार ऐसी ही एक घोषणा अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा ने दी।
नासा के मुताबिक एक बहुत बड़े आकार का एस्टेरॉयड आज रात करीब 3 बजे धरती के काफी नजदीक से गुजरेगा। नासा के मुताबिक यह एस्टेरॉयड दुनिया की सबसे ऊंची इमारत बुर्ज खलीफा से भी बड़ा है।
यह एस्टेरॉयड धरती से तकरीबन 19 लाख किलोमीटर की दूरी से गुजरेगा। अगर इस दूरी का अनुमान लगाना हो तो यह धरती और चांद के बीच की दूरी का लगभग 5 गुना है। आप सोच रहे होंगे कि 19 लाख किलोमीटर दूरी तो बहुत ज्यादा है। इतनी दूरी से अगर कोई एस्टेरॉयड गुजरेगा भी तो उसका धरती पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
लेकिन अगर नासा की माने तो धरती के इतना नजदीक से कोई एस्टेरॉयड 6 लाख साल के बाद गुजर रहा है। आखिरी बार जब कोई इतना बड़ा एस्टेरॉयड धरती के नजदीक से गुजरा था तो उसके कारण धरती पर तापमान में काफी बदलाव आया था। उस बदलाव के कारण ही धरती पर डायनोसोर्स का खात्मा माना जाता है।
नासा (National Aeronautics and Space Administration) ने ट्वीट कर यह जानकारी दी है। अपने ट्वीट में नासा ने लिखा है कि एस्टेरॉयड 1994 PC1 जिसकी लंबाई करीब 1 किलोमीटर यानी 3280 फीट है वो आज रात 18 जनवरी को धरती के पास से गुजरेगा। इस एस्टेरॉयड से धरती को कोई खतरा नहीं है।
हां अगर ये अपना रास्ता बदल लेता है तो धरती के लिए खतरनाक हो सकता है। धरती पर भारी तबाही मच सकती है। इस एस्टेरॉयड की खोज पहली बार 1994 में की गई थी।
एस्टेरॉयड के बारे में नासा ने ट्वीट कर जानकारी दी है। नासा ने ट्वीट के साथ एक फोटो भी शेयर की है। वहीं नासा ने ट्वीट के साथ लिखा है कि एस्टेरॉयड 1994 PC1 (~1 किमी चौड़ा) आज धरती के सबसे निकट रहेगा। नासा के विशेषज्ञ इस एस्टेरॉयड का दशकों से अध्ययन कर रहे हैं। हां किसी को घबराने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह एस्टेरॉयड धरती से 1.2 मिलियन मील दूर से गुजरेगा।
इतना ही नासा ने इस ट्वीट के साथ एस्टेरॉयड को ट्रैक करने का लिंक भी दिया है। नासा के ट्वीट के बाद से लोगों में इस एस्टेरॉयड के बारे में जानने और उसकी लोकेशन देखने के लिए उत्सुकता काफी बढ़ गई है। दुनियाभर में लोग इस एस्टेरॉयड को मॉनिटर कर रहे हैं।
पिछले वर्ष नासा ने एक नया प्रयोग करने की कोशिश की थी। 2021 में भी एक एस्टेरॉयड धरती के पास से गुजर रहा था। जिसके बारे में संभावना जताई जा रही थी कि वो धरती से टकरा जाएगा। ऐसे में नासा ने एक एस्टेरॉयड को मोड़ने का प्रयास किया था। वहीं एक अनुमान यह भी लगाया जा रहा है कि इस वर्ष 26 सितंबर और 1 अक्टूबर के बीच एक छोटा चंद्रमा डिमोफोर्स डार्ट से टकराएगा।
जिससे चांद के प्रक्षेपवक्र (trajectory) में मामूली बदलाव आ सकता है। नासा के अनुसार अगले 100 साल में कोई भी ऐसा एस्टेरॉयड नहीं है जो धरती से टकरा सकता है। नासा के अनुसार एस्टेरॉयड की चमक अन्य तारों की तुलना में काफी कम है। इस एस्टेरॉयड को देखने के लिए 6 इंच या उससे बड़ा टेलीस्कोप मदद कर सकता है। लेकिन उसके लिए मौसम बिल्कुल साफ चाहिए।
एस्टेरॉयड को उल्कापिंड या फिर क्षुद्रग्रह भी कहते हैं। यह उल्कापिंड किसी ग्रह के निर्माण के दौरान छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट जाते हैं। यह सूर्य के चारों तरफ चक्कर लगाने लग जाते हैं। इन्हीं टुकड़ों में से एक टुकड़ा अपनी कक्षा से निकलकर पृथ्वी के नजदीक आ जाता है। ज्यादातर उल्कापिंड तो ग्रहों की कक्षा में जाकर जल जाते हैं। वहीं कुछ ग्रहों से टकरा भी जाते हैं।
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