India News (इंडिया न्यूज़), Success Story Of Haldiram: मैकडॉनल्ड्स, डोमिनोज़, केएफसी जैसे कई फास्ट-फूड आउटलेट्स के मालिक दुनिया में, पारंपरिक स्नैक दिग्गज हल्दीराम का अपना एक फैन बेस है। बीकानेर में एक मामूली मिठाई की दुकान होकर आज करोड़ों रुपये का कारोबार तक हल्दीराम ने अपना नाम बनाया हैं। पारंपरिक मिठाइयों, स्नैक्स और पैकेज्ड फूड से लेकर हल्दीराम सबसे भरोसेमंद ब्रांडों में से एक है। एक छोटी सी दुकान से शुरू हुई हल्दीराम आज दुनिया भर के 80 से ज्यादा देशों में है। पारिवारिक व्यवसाय में छह पीढ़ियों से ज्यादा के साथ, ब्रांड अपने प्रोडक्ट को अलग अलग नामों जैसे हल्दीराम के प्रभुजी, बीकानेरवाला, बीकाजी और बिकानो के तहत बेचता है।
हल्दीराम की कहानी 1919 की है जब एक 12 साल के लड़के ने अपनी चाची से भुजिया बनाना सीखा था। गंगा बिशन अग्रवाल, जिन्हें प्यार से हल्दीराम जी के नाम से जाना जाता है, का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था, जहाँ उनके दादा बाज़ार में भुजिया बेचते थे। हल्दीराम को बचपन से ही बिजनेस से काफी लगाव था। उन्होंने अपने दादाजी के साथ भुजिया बनाकर बेचने की कला सीखनी शुरू की।
चूँकि बाज़ार में हर विक्रेता एक जैसी भुजिया बना रहा था, फर्क था तो सिर्फ पैसे का। हालाँकि, हल्दीराम अपने काम से संतुष्ट नहीं थे और अपने प्रोज्कट को उचाई तक पहुचाना चाहता था। इसे हासिल करने के लिए उन्होंने खुद भुजिया बनाना शुरू किया और कई असफल कोशिशों के बाद उन्हें सफलता मिली।
उन्होंने अपनी भुजिया में जो मुख्य तत्व जोड़ा, वह इसे सामान्य बेसन के बजाय ‘मोठ’ से तैयार करना था। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि उनकी भुजिया पतली और कुरकुरी हो। दूसरा बड़ा बदलाव था बीकानेर के राजा का नाम भुजिया के लिए इस्तेमाल करना और उसे डूंगर सेव के नाम से बेचना। तीसरा, हल्दीराम ने भुजिया को 2 पैसे किलो के बजाय 5 पैसे किलो पर बेचना शुरू किया। इन सभी परिवर्तनों के साथ, लोग यह मानने लगे कि ये भुजिया प्रीमियम था। हल्दीराम की डूंगर सेव देखते ही देखते छा गई और सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।
एक झगड़े के कारण अपने परिवार के बिजनेस से बाहर होने के बाद, गंगा बिशन अग्रवाल ने इसे फिर से शुरू किया। शुरुआत में उन्होंने बीकानेर के बाजार में मूंग की दाल बेची। 1950 के दशक में, एक शादी में लोगों को भुजिया का स्वाद चखने के बाद गंगा बिशन अग्रवाल को उनकी भुजिया के लिए थोक ऑर्डर मिलने लगे। उसी साल, हल्दीराम के सबसे छोटे बेटे, रामेश्वरलाल और उनके पोते, शिव किशन, कोलकाता में व्यवसाय स्थापित करने के लिए निकले। 12 सालों के भीतर, कोलकाता शाखा का काम बढ़ गया और मुनाफा कमाना शुरू कर दिया।
1968 से हल्दीराम के तीनों बेटे इस बिजनेस में जम गए। उनका बड़ा बेटा मूलचंद बीकानेर में कारोबार संभाल रहा था। उनके दूसरे बेटे, सतिदास ने अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया, और रामेश्वरलाल ने कोलकाता शाखा देख करता था। सब कुछ ठीक चल रहा था
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