26 जनवरी का हर साल भारत देश के लोगों को इंतज़ार रहता है। खास तैयारियां की जाती हैं। ऐसे ही पूरा देश आज भी गणतंत्र दिवस के रंग में सराबोर है. गणतंत्र दिवस के मौके पर लोगों को जिस चीज का सबसे ज्यादा इंतजार होता है, वो है परेड. गणतंत्र दिवस और परेड एक दूसरे के पूरक बन चुके हैं. गणतंत्र दिवस नाम लेते ही आंखों के सामने कर्तव्य पथ पर निकलने वाली परेड की ही झलक आती है. इसे देखने के लिए लोगों में गजब का उत्साह रहता है पर जो परेड गणतंत्र दिवस की शान है, वह पहले गणतंत्र दिवस के दौरान आयोजित नहीं की गई थी. यही नहीं, आज जिस कर्तव्य पथ पर पर पीएम तिरंगा फहराते हैं वो जगह पहले गणतंत्र दिवस के मौके पर नहीं थी. तब कहीं और झंडा फहराया गया था. आइए जानते हैं गणतंत्र दिवस के वैन्यू और परेड के बारे में विस्तार से.

इस स्टेडियम में मनाया गया था पहला गणतंत्र दिवस

26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने दिल्ली के पुराना किला के सामने मौजूद इरविन स्टेडियम में पहली बार गणतंत्र दिवस के मौके पर तिरंगा झंडा फहराया. इसके बाद गणतंत्र दिवस पर सार्वजनिक अवकाश का ऐलान भी किया. पहले गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो को बुलाया गया था.

परेड की जगह कितनी बार में हुई तय

भारत ने अपना पहला गणतंत्र दिवस इरविन स्टेडियम में मनाया, लेकिन बाद में यह लाल किला, किंग्स वे कैंप और रामलीला मैदान में आयोजित हुआ. वर्ष 1955 में पहली बार राजपथ को स्थायी रूप से गणतंत्र दिवस के लिए चुना गया और यहां से परेड का आयोजन हुआ. गणतंत्र दिवस परेड का रास्ता 5 किलोमीटर से भी ज्यादा लंबा होता है. परेड राष्ट्रपति भवन के पास रायसीना हिल से शुरू होकर इंडिया गेट से होते हुए लाल किले पर जाकर खत्म होती है.

पहले दी जाती थी 30 तोपों की सलामी

जैसा कि हमने पहले बताया कि पहले गणतंत्र दिवस के मौके पर देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने जब 26 जनवरी 1950 को इरविन स्टेाडियम में राष्ट्रीय ध्वज फहराया था. इस दौरान उन्हें 30 तोपों की सलामी दी गई. हालांकि आगे जाकर यह सलामी 30 की जगह 21 तोपों की कर दी गई और अब 21 तोपों की ही सलामी दी जाती है. यह सलामी जिन 7 खास तोपों से दी जाती है, उन्हें पॉन्डर्स कहा जाता है. यह 1941 में बनी थीं.