India News (इंडिया न्यूज),Aurangzeb:अयोध्या में एक कार्यक्रम के दौरान सीएम योगी नेमंदिरों को तोड़े जाने का जिक्र करते हुए कहा, “कभी काशी विश्वनाथ धाम, कभी अयोध्या में तो कभी संभल में कल्कि अवतार की हरिहर भूमि, कभी भोजपुर में, हर समय हिंदुओं के मंदिरों को तोड़ा गया.” उन्होंने कहा कि औरंगजेब के खानदान पता चला कि उनके खानदान के लोग कोलकाता के पास रिक्शा चले रहे थे. अगर उन लोगों ने ईश्वर की दुर्गति नहीं की होती तो उसके औलादों को ये दिन नहीं देखना पड़ता। इसके बाद हर कोई उनके इस बयान की चर्ची कर रहा है। तो चलिए जानते हैं कौन हैं औरंगजेब जिसकी चर्चा आज हर तरफ हो रही है।
औरंगजेब छठा मुगल शासक था। वह एकमात्र ऐसा मुगल बादशाह था, जिसे भारतीयों ने कभी स्वीकार नहीं किया। औरंगजेब ने सत्ता हासिल करने के लिए अपने पिता शाहजहां को जेल में डाल दिया था। इसके बाद औरंगजेब ने अपने भाई दारा शिकोह को देशद्रोह के आरोप में सूली पर चढ़ा दिया। उसने अपने दूसरे भाई मुराद को भी जहर देकर मरवा दिया। उसने अपने परिवार के कई सदस्यों की हत्या करके गद्दी हासिल की थी। औरंगजेब का एक ही लक्ष्य था, पूरे भारत पर राज करना। उसने कई छोटे-बड़े राज्यों का दमन भी किया। लेकिन इस मुगल बादशाह को शिवाजी महाराज से हार का सामना करना पड़ा।
औरंगजेब का साम्राज्य छल, कपट और षडयंत्र के बल पर खड़ा हुआ था। यही कारण था कि औरंगजेब के शासनकाल में उसकी कट्टरता और धार्मिक अतिवाद चरम पर था। इतिहासकारों के अनुसार औरंगजेब एक कट्टर शासक था। उसने अपने शासनकाल में कई हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया। उसने हिंदुओं पर कई प्रतिबंध भी लगाए। कहा जाता है कि औरंगजेब ने गैर-मुसलमानों पर जजिया कर लगाया और लाखों हिंदुओं को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया। औरंगजेब ने देश भर के प्रसिद्ध मंदिरों को निशाना बनाया। उसने बनारस में विश्वनाथ मंदिर और मथुरा में केशव राय मंदिर को ध्वस्त करने की कोशिश की।
औरंगजेब ने शिवाजी महाराज के बड़े बेटे संभाजी महाराज की बेरहमी से हत्या करवा दी। औरंगजेब ने शर्त रखी थी कि अगर संभाजी राजे इस्लाम धर्म अपना लें तो वह उनकी जान बख्श देगा। लेकिन संभाजी ने यह शर्त नहीं मानी। संभाजी को 40 दिनों तक प्रताड़ित किया गया। इसके अलावा उसने अपनी नीतियों का पालन न करने पर 1675 में नौवें सिख गुरु श्री गुरु तेग बहादुर का सिर भी कटवा दिया।
क्रूर मुगल शासक औरंगजेब ने जीवन भर हिंसा की। 3 मार्च 1707 को महाराष्ट्र के अहमदनगर में उसकी मृत्यु हो गई। औरंगाबाद में ही उसकी समाधि बनाई गई। महाराष्ट्र सरकार ने इस औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजी नगर रख दिया है।
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