India News (इंडिया न्यूज), Raja Nahar Singh: अंग्रेजों की गुलामी से देश को आजाद कराने की जब भी चर्चा होती है, तो बल्लभगढ़ रियासत के राजा नाहर सिंह और उनके सेनापति गुलाब सिंह व भूरा सिंह का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में राजा नाहर सिंह की भूमिका अद्वितीय और प्रेरणादायक रही। उनके बलिदान की कहानी देशभक्ति और साहस का प्रतीक है।
राजा नाहर सिंह बल्लभगढ़ रियासत के अंतिम राजा थे। उनकी गिनती 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी क्रांतिकारियों में होती है। उन्होंने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के नेतृत्व को स्वीकार किया और अंग्रेजों के खिलाफ खुलकर उनका साथ दिया। उनकी इस क्रांतिकारी भूमिका से अंग्रेज गहरे आहत थे।
अंग्रेजों ने राजा नाहर सिंह की बढ़ती लोकप्रियता और उनकी सैन्य शक्ति को खतरे के रूप में देखा। उन्होंने बहादुर शाह जफर से संधि का बहाना बनाकर राजा नाहर सिंह और उनके सेनापतियों- गुलाब सिंह, भूरा सिंह और खुशयाल सिंह को दिल्ली बुलाया और धोखे से बंदी बना लिया। गिरफ्तारी के बाद उन पर इलाहाबाद कोर्ट में लूट और विद्रोह का झूठा मुकदमा चलाया गया।
अंग्रेजों ने राजा नाहर सिंह और उनके सेनापतियों को दोषी ठहराकर 9 जनवरी 1858 को दिल्ली के चांदनी चौक में फांसी दे दी। महज 36 वर्ष की आयु में राजा नाहर सिंह ने देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उनके सेनापति गुलाब सिंह, भूरा सिंह और खुशयाल सिंह ने भी अपने प्राणों की आहुति दी। यह बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर है।
बल्लभगढ़ रियासत की स्थापना वर्ष 1606 में बलराम सिंह ने की थी। इस रियासत में 210 गांव शामिल थे, और बलराम सिंह को उनके प्रजा “राजा बल्लू” के नाम से पुकारती थी। राजा नाहर सिंह इस रियासत के अंतिम शासक थे। उनकी शादी महाराजा कपूरथला की बेटी किशन कौर से हुई थी। शहीद होने से पहले वे एक बेटी के पिता थे, जिनकी शादी पंजाब की फरीदकोट रियासत के राजा से हुई।
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राजा नाहर सिंह की याद में बल्लभगढ़ में कई स्मारक बनाए गए हैं। उनका महल, जिसे अब हरियाणा राज्य पर्यटन निगम के तहत संरक्षित किया गया है, उनकी शाही विरासत का प्रतीक है। इसके अलावा, सरकार ने रानी की छतरी का जीर्णोद्धार कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। बल्लभगढ़ में स्थित नाहर सिंह पार्क और शहीद राजा नाहर सिंह मेट्रो स्टेशन उनके योगदान को अमर बनाते हैं।
फरीदाबाद में स्थित क्रिकेट स्टेडियम भी उनके नाम पर है। हर साल 9 जनवरी को उनके बलिदान दिवस पर लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। यह दिन उनके साहस और देशभक्ति की भावना को पुनर्जीवित करता है।
राजा नाहर सिंह और उनके सेनापतियों का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय है। उनका जीवन और बलिदान हमें यह सिखाता है कि देशभक्ति और साहस के लिए कोई भी त्याग छोटा नहीं होता। उनकी शहादत को याद रखना और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करना हमारा कर्तव्य है।
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