India News(इंडिया न्यूज),Bihar Politics: बिहार में दो राज्यसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के राज्यसभा सांसद विवेक ठाकुर नवादा से निर्वाचित हुए हैं, जबकि राजद सांसद मीसा भारती पाटलिपुत्र संसदीय सीट से निर्वाचित हुई हैं। इन दोनों के इस्तीफे से दो सीटें खाली हुई हैं। भाजपा ने अपने कोटे की एक सीट पर राष्ट्रीय लोक मोर्चा प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा को एनडीए उम्मीदवार बनाने का ऐलान किया है।
कोइरी समुदाय से आने वाले उपेंद्र कुशवाहा लव-कुश समीकरण का बड़ा चेहरा रहे हैं। वे लगातार 2019 और 2024 में काराकाट लोकसभा सीट से चुनाव हार चुके हैं। इसके अलावा वे 2018 में एनडीए छोड़कर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से भी इस्तीफा दे चुके हैं। इसके बावजूद भाजपा उन पर मेहरबान है और उन्हें फिर से संसद भेजना चाहती है। कुशवाहा 2014 में एनडीए में शामिल हुए और फिर काराकाट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। फिर उन्हें केंद्र में मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री बनाया गया।
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उपेंद्र कुशवाहा 2018 में एनडीए छोड़कर महागठबंधन में शामिल हो गए, फिर भी वे और उनकी पार्टी के उम्मीदवार लोकसभा चुनाव हार गए. इससे पहले 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव और फिर 2020 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद 2021 में उन्हें अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का जेडीयू में विलय करना पड़ा, लेकिन कभी नीतीश से दूर तो कभी करीब रहने वाले कुशवाहा 2023 में फिर जेडीयू से अलग हो गए और फरवरी में अपनी नई पार्टी (राष्ट्रीय लोक मोर्चा) बना ली. 2024 में वे एनडीए के बैनर तले लड़े लेकिन भोजपुरी स्टार पवन सिंह ने उनका खेल बिगाड़ दिया और वे लगातार दूसरी बार संसद पहुंचने से चूक गए।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों और कैसी मजबूरी बन गए बीजेपी के लिए कुशवाहा कि लगातार हारने के बावजूद बीजेपी उन्हें राज्यसभा भेजना चाहती है. दरअसल, इसका जवाब उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार के बीच खट्टे-मीठे राजनीतिक रिश्तों की कहानी में छिपा है। लव-कुश समीकरण के दूसरे स्तंभ कहे जाने वाले कुशवाहा को भाजपा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ सेफ्टी वाल्व के तौर पर इस्तेमाल कर रही है। इसके अलावा कुशवाहा को अपने खेमे में लाकर भाजपा नीतीश कुमार से सौदेबाजी का रास्ता खोलना चाहती है।
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बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा ने कभी मिलकर लव-कुश समीकरण बनाया था और पटना में लव-कुश रैली का आयोजन किया था। दोनों नेताओं ने मिलकर राज्य में कुर्मी-कोइरी समुदाय को गोलबंद किया था। उस समय उपेंद्र कुशवाहा अपना नाम उपेंद्र सिंह लिखते थे, लेकिन नीतीश के सुझाव पर उन्होंने अपना नाम उपेंद्र सिंह से बदलकर उपेंद्र कुशवाहा रख लिया। धीरे-धीरे कुशवाहा कोइरी समुदाय के नेता के तौर पर उभरने लगे। दोनों ने लालू यादव के खिलाफ समता पार्टी भी बनाई थी, लेकिन नीतीश के मुख्यमंत्री बनते ही दोनों के बीच दरार शुरू हो गई। 2009 में कोइरी समुदाय को अधिकार दिलाने के लिए कुशवाहा ने राष्ट्रीय समता पार्टी बनाई लेकिन जल्द ही उसका नीतीश की पार्टी जेडीयू में विलय कर दिया। बाद में वे फिर अलग हो गए और इस बार राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बनाई और 2014 में बीजेपी के साथ गठबंधन करके संसद पहुंचने में सफल रहे।
बड़ी बात यह है कि उपेंद्र कुशवाहा सभी गठबंधनों में स्वीकार्य हैं। इसकी वजह उनकी जाति है जो बिहार में यादवों के बाद दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाली जाति है। कुछ साल पहले तक कुशवाहा कोइरी समुदाय का सबसे लोकप्रिय चेहरा माना जाता था लेकिन अब सभी पार्टियों ने इसमें सेंध लगाने के लिए कई चेहरे आगे कर दिए हैं। बीजेपी ने सम्राट चौधरी और आरजेडी ने आलोक मेहता को आगे किया। हाल के चुनावों में लालू और तेजस्वी ने कई कुशवाहा चेहरों को टिकट दिया और चुनावों में कोइरी मतदाताओं के बीच सेंध लगाने में कुछ हद तक सफल भी रहे।
64 वर्षीय उपेंद्र कुशवाहा इसलिए भी सभी को स्वीकार्य हैं क्योंकि वे जयप्रकाश नारायण और कर्पूरी ठाकुर जैसे प्रख्यात समाजवादी नेताओं के साथ मिलकर काम करने का दावा करते रहे हैं। इन दोनों समाजवादी नेताओं को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। कुशवाहा को छगन भुजबल और शरद पवार का भी करीबी माना जाता है। भाजपा द्वारा राज्यसभा के लिए मनोनीत किए जाने से पहले तेजस्वी यादव ने भी उन्हें यह ऑफर दिया था, लेकिन माना जा रहा है कि भाजपा ने इसके दूरगामी असर को देखते हुए तुरंत उन्हें राज्यसभा भेजने और उम्मीदवार बनाने का ऐलान कर दिया और एनडीए के घटक दलों ने भी उनका समर्थन किया।
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