India News (इंडिया न्यूज), Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने 25 सप्ताह से अधिक समय से गर्भवती एक महिला द्वारा गर्भपात की अनुमति मांगने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। लेकिन उसकी निजता की रक्षा के लिए अपने फैसले के कारणों को सार्वजनिक करने से परहेज किया है। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और सतीश चंद्र शर्मा की अवकाश पीठ ने एम्स दिल्ली द्वारा दायर एक रिपोर्ट का अवलोकन किया। जिसे पिछले सप्ताह शीर्ष अदालत ने महिला और उसके भ्रूण की शारीरिक स्थिति का पता लगाने के लिए कहा था। कोर्ट ने कहा कि हमने एम्स द्वारा प्रस्तुत 24 मई, 2024 की रिपोर्ट का अवलोकन किया है। हम याचिकाकर्ता की निजता की रक्षा के लिए रिपोर्ट में उल्लिखित बातों को उद्धृत नहीं कर रहे हैं।
महिला की याचिका खारिज
बता दें कि पीठ ने 27 मई को पारित अपने आदेश में कहा कि रिपोर्ट देखते हुए हम मामले के तथ्यों के आधार पर गर्भपात की अनुमति नहीं दे सकते। रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में रिकॉर्ड में रहेगी। रिट याचिका खारिज की जाती है। वहीं 21 मई को याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने एम्स को याचिकाकर्ता और भ्रूण के शारीरिक स्वास्थ्य तथा उसके अवांछित गर्भ पर पड़ने वाले प्रभाव के संबंध में 24 मई तक रिपोर्ट पेश करने को कहा था। महिला ने दावा किया था कि उसे अपनी गर्भावस्था के बारे में 17 मई को पता चला।
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गर्भपात की मांगी थी अनुमति
बता दें कि महिला के वकील ने 21 मई को शीर्ष अदालत से कहा था कि वह दुबई से आई है और वर्तमान में यहां एक होटल में रह रही है। वह आर्थिक रूप से इतनी मजबूत नहीं है। उन्होंने पीठ से उसे गर्भपात कराने की अनुमति देने का आग्रह किया था। गर्भ का चिकित्सीय समापन (एमटीपी) अधिनियम के तहत, 24 सप्ताह से अधिक पुराने भ्रूण को गिराने की अनुमति केवल तभी दी जा सकती है। जब भ्रूण में गंभीर असामान्यता का पता मेडिकल बोर्ड द्वारा लगाया गया हो या गर्भवती महिला के जीवन को बचाने के उद्देश्य से सद्भावपूर्वक राय बनाई गई हो।