इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
दुनिया भर में आर्थिक मंदी का खतरा मंडरा रहा है। इससे अर्थशास्त्रियों की रातों नींद खराब हो रही है। दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क (Elon Musk) भी इससे चिंतित हैं। कई लोगों का मानना है दुनिया खासकर अमेरिका जैसे विकसित देश मंदी की कगार पर खड़े हैं। जानकारों का मानना है कि एक बार फिर से ग्लोबल इकोनॉमी आर्थिक मंदी की चपेट में आ सकती है।
आर्थिक कंगाली की ओर बढ़ रही दुनिया, जानिए इसके कारण
पहले जानते हैं कि आर्थिक मंदी यानी रिसेशन क्या है? अगर किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी (GDP) में लगातार गिरावट आती है, तो इस दौर को अर्थशास्त्र में आर्थिक मंदी कहा जाता है। दो तिमाही यानी छह महीने को मानक माना जाता है। जीडीपी की ग्रोथ रेट का लगातार घटना इकोनॉमिक स्लोडाउन यानी कि आर्थिक सुस्ती का दौर कहा जाता है। अर्थशास्त्र में इसी तरह का एक टर्म है ‘डिप्रेशन यानी महामंदी’।
रिसेशन यानी मंदी का ही सबसे खराब रूप है। यदि किसी देश की जीडीपी में 10 फीसदी से ज्यादा गिरावट आती है, तो उसे अर्थशास्त्र की भाषा में डिप्रेशन कहा जाता है। सबसे पहले प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1930 के दशक में सबसे भयानक महामंदी आई थी, जिसे The Great Depression के नाम से जाना जाता है.
कोरोना महामारी
वर्ष 2019 पूरी दुनिया में कोरोना महामारी जारी है। महामारी ने दुनिया भर में हेल्थ क्राइसिस के साथ साथ इकोनॉमिक क्राइसिस भी पैदा किया है। चीन कोरोना की नई लहर से जूझ रहा है। शंघाई जो कि एक इंडस्ट्रियल हब है, वह भी कड़े लॉकडाउन से गुजर रहा हैं। जिसके चलते कई कंपनियों के प्लांट फिर से बंद हो चुके हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध
फरवरी 2022 के आखिरी सप्ताह से जारी रूस और यूक्रेन का युद्ध अभी तक जारी है। लम्बे तनाव के बाद रूस ने फरवरी के आखिरी दिनों में यूक्रेन के ऊपर हमला शुरू कर दिया था। विशेषज्ञों ने माना था कि यह युद्ध लंबा नहीं चलेगा और रूस को कुछ ही सप्ताह में जीत हासिल हो जाएगी। लेकिन सारे अनुमान को गलत साबित करते हुए यूक्रेन महीनों बीत जाने के बाद भी झुकने को तैयार नहीं है और युद्ध आज भी जारी है।
दुनियाभर में रूस और यूक्रेन दोनों ही गेहूं और जौ जैसे कई अनाजों के बड़े निर्यातकों में से है। इस युद्ध की वजह से इनका निर्यात प्रभावित हुआ है। मौजूदा स्थिति की बात करें तो कई देशों के सामने फूड क्राइसिस की स्थिति है। हमारा पड़ोसी देश श्रीलंका इसी तरह के संकटों का सामना कर रहा है।
दशकों बाद सबसे ज्यादा महंगाई
भारत में बीते महीने थोक महंगाई और खुदरा महंगाई दोनों ही कई साल के हाई लेवल पर पहुंच चुकी हैं। अप्रैल में कई सालों बाद थोक महंगाई 15 फीसदी के पार पहुंची और नवंबर 1998 के बाद सबसे ज्यादा हुई। खुदरा महंगाई मई 2014 के बाद के सबसे उच्च स्तर पर है। बात करें अमेरिका की तो, अप्रैल में खुदरा महंगाई कुछ कम होकर 8.3 फीसदी पर आई, लेकिन यह अभी भी कई दशकों के उच्च स्तर पर है। मार्च महीने में अमेरिका में महंगाई की दर 8.5 फीसदी थी, जो पिछले 41 साल में सबसे ज्यादा स्तर पर थी।
महंगा होता कर्ज
महंगाई को काबू में करने के लिए दुनिया भर के सेंट्रल बैंक लगातार ब्याज की दरें बढ़ाते जा रहे हैं। भारत में रिजर्व बैंक ने इसी महीने एमपीसी की आपात बैठक की और रेपो रेट को 0.40 फीसदी बढ़ा दिया। भारत में ब्याज दरें दो साल से स्थिर थीं लेकिन 4 साल में पहली बार इसमें इजाफा किया गया है। जानकारों की माने तो, इस फाइनेंशियल ईयर में अभी रेपो रेट को 01 फीसदी और बढ़ाया जा सकता है।
क्रूड ऑयल की कीमतों में लगी आग
दुनिया भर में पिछले कुछ महीने से कच्चे देल के दाम में एक बड़ा उछाल आया है। यह लगातार 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर है। बुधवार को भी ब्रेंट क्रूड 01 फीसदी उछलकर 113.08 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है। वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट 1.4 फीसदी चढ़कर 114.02 डॉलर प्रति बैरल पर चला गया।
क्रूड ऑयल के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक रूस के ऊपर अमेरिका व अन्य कई यूरोपीय देशों ने यूक्रेन पर आक्रमण करने की वजह से कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए हैं। इन प्रतिबंधों में रूसी तेल व गैस भी शामिल हैं। अप्रैल में रूस का कच्चा तेल का प्रोडक्शन करीब 9 फीसदी कम हुआ।
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