इंडिया न्यूज, नई दिल्ली।
Yadadri Temple: देश के तेलंगाना में आंध्रप्रदेश के तिरुपति बालाजी मंदिर की तरह श्री लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी का भव्य मंदिर ‘यदाद्री’ निर्माण पूरा हो गया है। नए साल से यदाद्री मंदिर भक्तों के लिए खुल गया है। बताया जा रहा है अभी मंदिर में दर्शन के लिए हर रोज तकरीबन 6 से 7 हजार ही लोग पहुंच रहे हैं। शनिवार और रविवार को भक्तों की संख्या 30 से 35 हजार तक पहुंच जाती है। नया मंदिर तैयार होने के बाद यहां आने वाले भक्तों की संख्या तीन गुना तक बढ़ने का अनुमान है।
the budget is more than that of Ram temple: आपको बता दें कि इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसका निर्माण सनातनी शास्त्रों के अनुसार किया गया है। अयोध्या में बन रहे भगवान श्री राम के मंदिर में सरकार 1100 करोड़ रुपए खर्च कर रही है जबकि यदाद्रि मंदिर के निर्माण में 1200 करोड़ रुपए खर्च होने हैं जिनमें से 1000 करोड़ रुपए पहले से ही खर्च हो चुके हैं। बिना सीमेंट-ईंट के पहाड़ पर बना राम मंदिर से भी ज्यादा बजट वाला यदाद्री मंदिर का 1000 साल तक कुछ नहीं बिगड़ेगा। 125 किलो सोना तो सिर्फ गुंबद में लगा है। मंदिर में 140 किलो सोना लग रहा है। (125 kg of gold is felt only in the dome)
तेलंगाना के यदाद्री भुवनगिरी जिले में भवगान नृसिंह का यह मंदिर 1000 साल से भी अधिक पुराना है। गुफा में ज्वाला नृसिंह, गंधभिरंदा नृसिंह और योगानंदा नृसिंह की मूर्तिया स्थापित की गई हैं। बताया जाता है कि 510 फीट की ऊंचाई पर यदाद्रीगुट्टा पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर की 12 फीट ऊंची और 30 फीट लंबी गुफा है।
मंदिर की पहचान बनाने के लिए तय किया गया कि पूरा मंदिर कृष्णशिला (काला पत्थर) से तैयार होगा। मंदिर का निर्माण आगम, वस्तु और पंचस्थ शास्त्रों के मुताबिक होगा। क्योंकि यह वैष्णव पंथ का मंदिर है। यह बीते 100 साल में कृष्णशिला (ब्लैक ग्रेनाइट स्टोन) से बनने वाला दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर है।
इस मंदिर को बनाने के लिए दक्षिण में बने वैष्णव संप्रदाय के छह मंदिरों (तिरूपति बालाजी सहित) की एक रिपोर्ट तैयार की गई, जिसमें मंदिर की बनावट जानने के बाद यदाद्री के लिए कॉन्सेप्ट प्लान तैयार करना शुरू किया गया। साल 2015 से आर्ट डायरेक्टर आनंद सार्इं ने डिजाइन तैयार करना शुरू किया था। बताया जाता है कि डायरेक्टर आनंद सार्इं के पास ट्रेडिशनल मैथेड को अपनाते हुए बेहद खूबसूरत मंदिर बनाने का टास्क था। मंदिर के डिजाइन, कॉस्ट, मटेरियल जैसे फैक्टर्स पर एक साल रिसर्च के बाद कॉन्सेप्ट फाइनल हुआ।
मंदिर बनने से पहले तय हुआ था कि मंदिर के गर्भगृह को टच भी किया जाएगा । बाकि मंदिर के पूरे एरिया को बदला जाएगा। कृष्णशिला के चयन के लिए एक कमेटी बनी। वो 6-7 माइंस पर भी गई। कमेटी ने माइंस से पत्थरों की सस्टेनेबिलिटी जांचने के लिए उनके सैम्पल भी लिए। कहते हैं कि राजस्थान और हैदराबाद की एक-एक लैब में रॉक टेस्टिंग की गई थी। फिर खरीदी के के लिए आंध्र प्रदेश के एक जिले की माइन सिलेक्ट की गई। क्योंकि टेस्टिंग में यहां के पत्थर की सस्टेनेबिलिटी सबसे अच्छी निकली।
कहते हैं कि 2016 में मंदिर का पहला पिलर डाला गया था। क्रेन के जरिए भारी-भरकम पत्थरों को ऊपर पहुंचाना शुरू हुआ था। मंदिर के चारों तरफ रिटेनिंग वॉल खड़ी की गई थी। तत्कालीन सीएम ने मंदिर को पूरा करने के लिए टीम को पांच साल का टारगेट दिया था।
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