India News (इंडिया न्यूज),Armenia- Azerbaijan war:दुनिया भर में जंग का माहौल है। जहां एक तरफ इजरायल ने गाजा पर हमले तेज कर दिए है वहीं दूसरी तरफ तीन साल से चल रहा रूस-यूक्रेन युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है और यूरोप-एशिया से सटे दक्षिण काकेशस क्षेत्र में एक नया युद्ध शुरू होने की कगार पर है। वैसे तो आर्मेनिया और अजरबैजान अपने जन्म से ही एक-दूसरे से लड़ते आ रहे हैं, लेकिन पिछले चार दशकों से चले आ रहे खून-खराबे को रोकने के लिए एक महीने पहले ही गंभीर पहल शुरू की गई थी। शांति का मसौदा भी तैयार हो चुका है, लेकिन अब इस पर हस्ताक्षर करने को लेकर आनाकानी हो रही है।
दोनों पक्ष एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करते और एक-दूसरे पर सीमा पर सैन्य तैयारी करने और अस्थिर सीमा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन करने का आरोप लगा रहे हैं। इस बीच, आर्मेनिया ने ईरान से लगी सीमा पर सैन्य अभ्यास किया है। इससे तनाव चरम पर पहुंच गया है और शांति समझौते पर हस्ताक्षर नहीं होने की स्थिति में फिर से युद्ध शुरू हो सकता है।
Armenia- Azerbaijan war
ये दोनों देश नब्बे के दशक में सोवियत संघ के पतन के बाद उभरे थे। उसके बाद नागोर्नो-काराबाख के सीमावर्ती क्षेत्र पर कब्जे को लेकर दोनों पक्षों के बीच संघर्ष शुरू हो गया। यह संघर्ष करीब चार दशकों से किसी न किसी रूप में चल रहा है। इस कारण उन्हें विभाजित करने वाली सीमा अस्थिर बनी हुई है। दरअसल, इस सीमावर्ती पहाड़ी क्षेत्र में अर्मेनियाई समुदाय बहुसंख्यक है, लेकिन इस क्षेत्र को अज़रबैजानी क्षेत्र के रूप में अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है। इस कारण जातीय संघर्ष होते रहते हैं।
जब एक महीने पहले शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, तब अज़रबैजान ने एक शर्त रखी थी, जिस पर मामला सुलझ नहीं रहा है। उसकी मांग है कि अर्मेनिया को भी अपना संविधान बदलना होगा और कराबाख क्षेत्र पर अपना दावा छोड़ना होगा। दरअसल, अर्मेनिया के संविधान में कराबाख को उसका क्षेत्र बताया गया है। बदले में अर्मेनिया ने कहा है कि वह 2027 में इस मामले पर जनमत संग्रह कराएगा और इस प्रावधान को हटाने का प्रयास किया जाएगा, लेकिन इसकी वजह से शांति समझौते में बाधा नहीं आनी चाहिए। शांति समझौता किया जाना चाहिए और इस खास मुद्दे पर अलग से डील की जानी चाहिए। लेकिन फिलहाल अज़रबैजान इस पर सहमत नहीं दिख रहा है।
दूसरी ओर, युद्ध विराम अवधि के दौरान अर्मेनिया और ईरान की सेनाओं के सैन्य अभ्यास ने आग में घी डालने का काम किया है। गौरतलब है कि काराबाख पर कब्जे को लेकर पिछले चार दशकों में दो युद्ध हो चुके हैं। सितंबर 2023 में अजरबैजान ने 24 घंटे का सैन्य अभियान चलाकर पूरे इलाके पर कब्जा कर लिया था। नतीजतन एक लाख अर्मेनियाई लोगों को इस इलाके से भागना पड़ा था।
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