India News (इंडिया न्यूज), American Nuclear Weapons: दूसरे विश्व युद्ध के साल 1945 में खत्म होते ही US और USSR के बीच शीत युद्ध शुरू हो गया। वहीं 1990 के दशक में शीत युद्ध के खत्म होने के तीन दशकों के भीतर ही दुनिया पूरी तरह से बदल गई है। सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस महाशक्ति के रूप में काफी कमजोर हो गया है। वहीं अमेरिका की हालत भी पहले से कमजोर हुई है। इस नई वैश्विक व्यवस्था में सबसे तेजी से चीन उभरा है। आज ड्रैगन इतनी तरक्की कर चुका है कि सीधे अमेरिका को चुनौती दे रहा है। दरअसल, पिछले तीन-चार दशकों में चीन ने हर मोर्चे पर खुद को अमेरिका के विकल्प के तौर पर स्थापित किया है। इसी बीच परमाणु हथियारों को लेकर एक ताजा रिपोर्ट सामने आई है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सैन्य दृष्टि से अमेरिका की हालत काफी कमजोर हो गई है। उसके परमाणु हथियार तेजी से कबाड़ बनते जा रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ चीन तेजी से बेहद उन्नत परमाणु हथियार बना रहा है। इस वजह से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका की सारी रणनीतियां चीन के सामने कमजोर पड़ती नजर आ रही हैं। ऐसे में ताइवान को लेकर किसी भी संघर्ष की स्थिति में चीन सब पर भारी पड़ सकता है। वहीं मीडिया रिपोर्ट अमेरिका के सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी (CNAS) के हवाले से प्रकाशित की गई है।
बता दें कि, CNAS का कहना है कि चीन ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका का हर समीकरण बदल दिया है। इस क्षेत्र में अमेरिका के पास ऑस्ट्रेलिया और जापान सैन्य और रणनीतिक साझेदार हैं। चीन अमेरिका के इन साझेदारों को भी निशाना बना सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका के पास इस समय 5044 परमाणु हथियार हैं। लेकिन ये पुराने हो चुके हैं। इन्हें आधुनिक बनाने के लिए अमेरिका को काफी पैसा खर्च करना पड़ेगा। इनमें से 1336 परमाणु हथियार रिटायर हो चुके हैं। इन्हें नष्ट करने के लिए भी अमेरिका को काफी पैसा खर्च करना पड़ेगा।
दरअसल, चीन अपने परमाणु हथियारों का जखीरा बहुत तेजी से बढ़ा रहा है। उसके पास इस समय करीब 500 हथियार हैं। वह 2030 तक इसे बढ़ाकर 1000 कर देगा। तब तक वह पहले परमाणु हथियार न दागने की नीति में भी बदलाव कर सकता है। साथ ही वह इन परमाणु हथियारों को दागने के लिए अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों, पनडुब्बियों, युद्धपोतों आदि का तेजी से विकास और तैनाती कर रहा है। उसका लक्ष्य 2035 तक अमेरिका और उसके सहयोगियों के खिलाफ अजेय ताकत बनना है।
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गौरतलब है कि, अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर परमाणु हमले किए थे। वहीं माना जा रहा है कि आने वाले समय में इस संघर्ष का केंद्र ताइवान बन सकता है। चीन ताइवान को अपना हिस्सा बताता है। लेकिन, अमेरिका ताइवान के साथ है। ऐसे में ताकत में इजाफा होने के साथ ही चीन ने ताइवान पर अपना दावा और मजबूती से ठोकना शुरू कर दिया है। ड्रैगन ने यह भी कहा है कि वह इसके लिए सैन्य विकल्प आजमाने से भी पीछे नहीं हटेगा। ऐसे में इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि भविष्य में ताइवान चीन और अमेरिका के बीच शक्ति प्रदर्शन का केंद्र बन सकता है।
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