India News (इंडिया न्यूज), Akhand Bharat: सोशल मीडिया पर एक पुराना नक्शा वायरल हो रहा है, जिसे “न्यू वर्ल्ड ऑर्डर मैप” कहा जा रहा है। हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि, 1942 में यह नक्शा पब्लिश हुआ था। इस नक्शे में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया के संभावित स्वरूप को दर्शाया गया था। इस नक्शे में सिर्फ 15 देश शामिल हैं, जो विभिन्न भू-राजनीतिक परिवर्तनों को दर्शाते हैं। मौरिस गोम्बर्ग नामक व्यक्ति ने इसे पेंसिल्वेनिया के फिलाडेल्फिया शहर में प्रकाशित किया था। उस समय मौरिस ने दावा किया था कि अगर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया में बदलाव होते हैं, तो दुनिया में सिर्फ 15 देश ही रह जाएंगे। यह नक्शा एक बार फिर सोशल मीडिया पर चर्चा में आ गया है, क्योंकि हाल के राजनीतिक घटनाक्रमों ने इस नक्शे के प्रसार को और बढ़ा दिया है।
हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि, मौरिस गोम्बर्ग का यह नक्शा अमेरिका को एक प्रमुख सैन्य शक्ति के रूप में दर्शाता है। उनका दावा था कि भविष्य में अमेरिका का विस्तार होगा और इसमें कनाडा के अलावा मध्य अमेरिका के कई देश जैसे ग्वाटेमाला, पनामा, निकारागुआ, अल साल्वाडोर, कोस्टा रिका, बेलीज़, होंडुरास, डोमिनिकन रिपब्लिक, क्यूबा और कैरिबियन देश भी शामिल होंगे। इसके अतिरिक्त ग्रीनलैंड और आइसलैंड जैसे अटलांटिक द्वीप भी अमेरिका का हिस्सा बन जाएंगे। इसके अलावा मेक्सिको को भी अमेरिका में शामिल किया गया है।
इसके अलावा मौरिस के नक्शे में रूस का प्रतिनिधित्व उस समय के सोवियत संघ (USSR) द्वारा किया गया है। उस समय के USSR में आज के रूस के साथ-साथ ईरान, मंगोलिया, मंचूरिया, फिनलैंड और पूर्वी यूरोप के कई देश शामिल थे। इसके अलावा जर्मनी और ऑस्ट्रिया के बड़े हिस्से को भी सोवियत संघ का हिस्सा माना गया है। मौरिस का मानना था कि सोवियत संघ एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभरेगा और यूरोपीय देशों को अपने अधीन कर लेगा।
इस नक्शे में मौरिस ने दक्षिण अमेरिका के सभी देशों को मिलाकर एक नया देश “यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ साउथ अमेरिका” (USSA) बनाने का प्रस्ताव रखा। इसमें गुयाना, सूरीनाम, फ्रेंच गुयाना और फ़ॉकलैंड द्वीप भी शामिल हैं। यह दक्षिण अमेरिका का सबसे बड़ा और सबसे शक्तिशाली संघ होगा।
मानचित्र में अफ्रीकी देशों के साथ-साथ मध्य पूर्वी देशों को मिलाकर एक नया संघ “अफ्रीकी गणराज्यों का संघ” (UAR) बनाया गया है। इसके अलावा सऊदी अरब, इराक, सीरिया जैसे देशों को मिलाकर “अरब संघ गणराज्य” (AFR) भी बनाया गया है, जो मध्य पूर्व और अफ्रीका की राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है।
इस मानचित्र में भारत को एक बहुत शक्तिशाली और विशाल क्षेत्र के रूप में दिखाया गया है, जिसमें आज का अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार भी शामिल हैं। इसे ‘भारतीय संघ गणराज्य’ के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस समय (1942) भारत अंग्रेजों के कब्जे में था और स्वतंत्र नहीं हुआ था। मौरिस ने भारत को भविष्य में एक मजबूत राजनीतिक और सैन्य शक्ति के रूप में देखा, जिसमें दक्षिण एशिया के अधिकांश देश शामिल होंगे।
मानचित्र में चीन को एक संयुक्त चीनी गणराज्य के रूप में दिखाया गया है। इस मानचित्र के अनुसार, चीन में दक्षिण और उत्तर कोरिया के साथ-साथ वियतनाम, लाओस, कंबोडिया, थाईलैंड और मलाया का बड़ा हिस्सा शामिल होगा। इसका उद्देश्य चीन को एक विशाल और प्रभावशाली शक्ति के रूप में स्थापित करना था। यूरोप के देशों को मिलाकर “यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ यूरोप” (USE) बनाने का प्रस्ताव था, जो जर्मनी, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, पुर्तगाल, इटली, स्पेन और अन्य प्रमुख यूरोपीय देशों को एक साथ लाता। इस संघ का उद्देश्य यूरोप को एक शक्तिशाली और संगठित राजनीतिक इकाई के रूप में स्थापित करना था, जो वैश्विक राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके।
यह मानचित्र इन दिनों सोशल मीडिया पर इसलिए वायरल हो रहा है, क्योंकि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी विस्तारवादी नीतियों के लिए चर्चा में हैं। राष्ट्रपति बनने से पहले ही ट्रंप ने कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने की इच्छा जताई थी और ग्रीनलैंड पर भी कब्जा करना चाहते थे। इन अटकलों के बीच लोग इस पुराने मानचित्र को फिर से देख रहे हैं, जो भविष्य में भू-राजनीतिक बदलावों का संकेत देता है। ट्रंप की विस्तारवादी राजनीति और इस मानचित्र में एक तरह की समानता देखी जा रही है, जिसके कारण यह मानचित्र फिर से वायरल हो गया है।
हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि, यह नक्शा एक काल्पनिक भविष्य का चित्रण है, जिसे मौरिस गोम्बर्ग ने 1942 में प्रकाशित किया था। यह उस समय के वैश्विक राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को दर्शाता है, जिसमें बड़े बदलावों की उम्मीद थी। हालांकि इस नक्शे का कोई वास्तविक प्रभाव नहीं है, लेकिन मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों, खासकर ट्रंप की संभावित योजनाओं के संदर्भ में यह लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। इस नक्शे को भू-राजनीतिक भविष्यवाणी के तौर पर देखा जा सकता है, लेकिन इसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है।
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