India News ( इंडिया न्यूज़ ), Bangladesh Election: बांग्लादेश के राजनीतिक दलों में इस समय खुब उठा पटक चल रहा है। वहां की सबसे बड़ी इस्लामिक पार्टी ‘बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी’ को आगामी चुनाव लड़ने को को लेकर सुप्रीम कोर्ट से कोई भी राहत नहीं मिली है। इसमें उच्चतम न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश ओबैदुल हसन की अध्यक्षता वाली 5 सदसीय टीम ने जमात-ए-इस्लामी के खिलाफ फैसला सुनाया। समाचार एजेंसी एपी के अनुसार, अदालत की पीठ ने कहा कि, “जमात-ए-इस्लामी हमारे देश के संविधान और सेक्यूलर स्टेटस को नहीं मानती है।”

वहीं, साल 2013 में देश के शीर्ष न्यायालय ने धर्मनिरपेक्षता का हवाला देते हुए पार्टी को चुनाव में भाग लेने पर रोक लगाई थी। इसके बाद चुनाव आयोग ने तुरंत ही पार्टी का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया था। अदालत ने कहा था कि, पार्टी के चुनाव में भाग लेने और चुनाव चिन्ह के इस्तेमाल पर रोक लगे, हालांकि पार्टी की गतिविधियों पर रोक लगाने को लेकर न्यायालय ने कोई भी फैसला नहीं दिया है।

विपक्षी पार्टियां भी कर सकती हैं चुनाव को बहिष्कार?

बता दें कि, जमात-ए-इस्लामी पर लगे रोक को देखते हुए बांग्लादेश की कई विपक्षी पार्टियां जनवरी साल 2024 में होने वाले चुनाव का बहिष्कार कर सकती हैं। वहीं विपक्ष का कहना है कि, आवामी पार्टी और शेख हसीना के रहते हुए देश में कभी भी निष्पक्ष चुनाव नहीं हो सकते हैं।

जमात-ए-इस्लामी का क्या रहा है इतिहास?

बांग्लादेश की सबसे बड़ी पार्टी जमात-ए-इस्लामी पार्टी है और देश की चौथी बड़ी पार्टी है। ये पार्टी पाकिस्तान से बांग्लादेश के अलगाव की विरोधी थी। सबसे पहली बार पार्टी ने 1978 के आम चुनाव में हिस्सा लिया था। वहीं 1986 में पार्टी के 18 उम्मीदवार संसद तक पहुंचे थे। साल 2001 में पहली बार बीपीएनपी के साथ सरकार में शामिल हुई थी। बता दें कि, पार्टी के कई नेताओं के उपर आरोप लगे हैं कि, उन्होंने 1971 के बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान लोगों पर बहुत अत्याचार किए थे। साल 1990 में सैन्य शासन की समाप्ति के बाद से जमात-ए-इस्लामी के कई नेताओं पर युद्ध-अपराध के आरोप भी लगाए थे। साल 2010 में अदालत की एक सुनवाई में पार्टी के नेताओं को युद्ध अपराध का दोषी पाया गया।

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