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ब्रह्मपुत्र नदी पर बन रहे डैम को लेकर भारत ने लगाई लताड़ तो भींगी बिल्ली बन गया चीन, PM Modi के सामने गिड़गिड़ाने लगे Jinping, कहा- निश्चिंत रहें…

India News (इंडिया न्यूज), Brahmaputra River Dam: तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो (ब्रह्मपुत्र) नदी पर चीन द्वारा बनाए जा रहे मेगा हाइड्रोइलेक्ट्रिक बांध पर भारत ने गंभीर चिंता जताई है। भारत का कहना है कि, इस परियोजना से निचले इलाकों के देशों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। खास तौर पर भारत और बांग्लादेश की नदियों को नुकसान पहुंच सकता है। भारत की इस चिंता पर चीन ने शनिवार (4 जनवरी, 2025) को जवाब दिया है। ड्रैगन ने भरोसा दिलाया है कि इस परियोजना का दशकों तक विस्तार से अध्ययन किया गया है। इसका उद्देश्य पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने के साथ ही कोशिश करना है कि इसका कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े। 

भारत ने चीन के समक्ष उठाया मुद्दा

हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि, भारत ने शुक्रवार (3 जनवरी, 2025) को कहा कि उसने चीन के समक्ष यह मुद्दा उठाया है और चीन से आग्रह किया है कि वह किसी भी निर्माण कार्य को आगे बढ़ाने से पहले निचले इलाकों के हितों का ध्यान रखे। भारत ने चिंता जताई है कि बांध के निर्माण से जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण को नुकसान और निचले इलाकों में जल संकट पैदा हो सकता है। इस बीच, शनिवार (4 जनवरी, 2025) को वाशिंगटन से मिली खबरों के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन 5-6 जनवरी को भारत दौरे पर आ रहे हैं। 

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अमेरिकी NSA भारतीय अधिकारियों के समक्ष करेंगे चर्चा

हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि, अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन अपने भारत और के दौरान भारतीय अधिकारियों के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे। यह भी जानकारी सामने आ रही है कि सुलिवन अपनी यात्रा के दौरान भारत-अमेरिका द्विपक्षीय सहयोग की महत्वपूर्ण उपलब्धियों को साझा करेंगे, जिसमें महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर सहयोग भी शामिल है। एक अमेरिकी अधिकारी ने कहा, “हमने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में देखा है कि चीन द्वारा बनाए गए हाइड्रोपावर बांध, जैसे कि मेकांग क्षेत्र में, डाउनस्ट्रीम देशों पर गंभीर पर्यावरणीय और जलवायु प्रभाव डाल सकते हैं।”

चीन ने दिया ये आश्वासन

भारत के विरोध के बाद चीनी दूतावास ने शनिवार को एक बयान जारी किया है। जिसमें कहा गया है कि चीन हमेशा से पारिस्थितिक सुरक्षा के लिए जिम्मेदार रहा है और यारलुंग त्संगपो नदी के निचले इलाकों में जलविद्युत परियोजनाओं का उद्देश्य स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन करने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन और चरम जलवायु आपदाओं से निपटना है। चीन ने यह भी कहा कि परियोजना के लिए सुरक्षा उपायों का दशकों से अध्ययन किया जा रहा है और इसका डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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चीनी विदेश मंत्रालय ने जारी किया बयान

मामला तूल पकड़ता देख चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता यू जिंग को भी अपना बयान जारी करना पड़ा। जिसमें उन्होंने कहा कि, “जलविद्युत विकास के लिए हमारे अध्ययनों में पारिस्थितिक सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया है। परियोजना का उद्देश्य डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालना है।”

क्या है भारत-बांग्लादेश की चिंताएं?

हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि, पिछले महीने ऐसी रिपोर्टें सामने आईं कि चीन ने यारलुंग त्सांगपो नदी पर दुनिया के सबसे बड़े जलविद्युत बांध के निर्माण की योजना को मंजूरी दे दी है। यह बांध ब्रह्मपुत्र नदी की विशाल घाटी में बनाया जाना है, जो भारतीय सीमा के पास अरुणाचल प्रदेश और बांग्लादेश के लिए महत्वपूर्ण है। इससे भारत और बांग्लादेश जैसे निचले इलाकों में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। भारत और बांग्लादेश पहले से ही इस परियोजना को लेकर चिंतित हैं।

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Sohail Rahman

पत्रकारिता में 5 साल का अनुभव है। करियर की शुरुआत इंशॉट्स से की थी, जहां करीब 5 साल काम किया।अब इंडिया न्यूज में कंटेंट राइटर के तौर पर कार्य कर रहा हूं। मेरा पसंदीदा बीट राजनीति, विदेश और खेल है। इसके अलावा मैं मनोरंजन, धर्म, हेल्थ, टेक, एजुकेशन की खबरों को भी लिख सकता हूं।

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