इंडिया न्यूज़ (दिल्ली) : कहते हैं कि जो लोग दूसरों के घरों में आग लगाते हैं एक दिन वही आग उनके घरों को भी जला देती है। पाकिस्तान के साथ यही बात एकदम सच साबित हो रही है। पाकिस्तान की अथॉरिटीज इस समय खैबर पख्तूनख्वां के बन्नू में तहरीक-ए-तालिबान (TTP) के साथ वार्ता करके आतंकियों के साथ टकराव को खत्म करने की कोशिशों में लगी हुई हैं। स्थानीय स्कूल बंद हैं और लोग घरों में कैद हैं। एक पुलिस स्टेशन पर बंधक संकट है और टीटीपी के आतंकियों ने इस जगह पर कब्जा कर रखा है। रविवार को टीटीपी के 30 से ज्यादा आतंकियों ने हमला किया और जेलर्स से हथियार छीन लिए। ये आतंकी अफगानिस्तान तक जाने का सुरक्षित रास्ता मांग रहे थे। उन्होंने कहा था कि अगर वो सुरक्षित अफगानिस्तान पहुंच जाते हैं तो आठ पुलिस ऑफिसर्स और मिलिट्री इंटेलीजेंस अधिकारियों को रिहा कर दिया जाएगा। खैबर सरकार के प्रवक्ता की तरफ से यह जानकारी दी गई।
‘गुड तालिबान और बैड तालिबान’ की रणनीति को फॉलो करने वाला पाकिस्तान इस समय बेबस और लाचार है। लेकिन यह भी सच है कि उसने जो बोया है वही काट रहा है। गुड तालिबान यानी वह तालिबान जो पश्चिमी बॉर्डर यानी अफगानिस्तान में इस्लामिक शासन को लागू करने में और उसे आगे बढ़ाने में मददगार है। बैड तालिबान यानी वह तालिबान जो दुश्मन भारत को नियंत्रित कर सकता है।
अब यही बैड तालिबान, पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बन गया है। टीटीपी यानी बैड तालिबान और टीटीपी की बस एक ख्वाहिश है कि पाकिस्तान में सरकार को उखाड़ फेंका जाए और शरिया कानून लगा दिया जाए। यही टीटीपी अब इस देश के लिए बड़ा आतंकी खतरा बन गया है। जब कभी भी यह बैड तालिबान पाकिस्तान को निशाना बनाता है तो यहां की सरकार को लगता है कि अफगानिस्तान और भारत इसमें शामिल हैं
आपको बता दें, इस साल फरवरी में भी टीटीपी ने खैबर में हमला किया। इस हमले में पुलिस और सेना के अधिकारियों को निशाना बनाया गया था। पहली बार था जब पाकिस्तान ने अफगानिस्तान से होने वाले किसी हमले के लिए तालिबान सरकार की आलोचना की थी। तत्कालीन इमरान सरकार ने तालिबान सरकार को चेतावनी दी और कहा कि यह उम्मीद की जाती है कि अफगानिस्तान की अंतरिम सरकार आने वाले दिनों में इस तरह की कार्रवाई को होने नहीं देगी।
पाकिस्तान की शिकायत पर कुछ विशेषज्ञों को हैरानी भी हुई। यह भी विडंबना थी कि पाकिस्तान पहला देश था जिसने इस तरह की शिकायत की थी। जबकि अफगानिस्तान की तरफ से हर बार इस देश पर तालिबान और दूसरे जिहादी संगठनों का समर्थन करने के आरोप लगते रहे। तालिबान ने हालांकि पाकिस्तान की शिकायत को मानने से साफ इनकार कर दिया।
जानकारी दें, बैड तालिबान यानी टीटीपी की शुरुआत साल 2007 में हुई थी और बैतुल्ला मसूद ने इसे शुरू किया था। यह ग्रुप खुद को अफगानिस्तान तालिबान का ही हिस्सा करार देता है। इसका सिर्फ एक मकसद है और वह है देश में इस्लामिक कानून को लागू कराना। टीटीपी इस समय उत्तरी वजीरिस्तान और खैबर में ज्यादा ताकतवर है और ये दोनों ही जगहें अफगानिस्तान बॉर्डर से सटी हुई हैं। टीटीपी की तरफ से पिछले दिनों अपने आतंकियों को निर्देश दिया है कि वो पाकिस्तानी सेना पर हमले जारी रखें। डॉन के मुताबिक अपनी आधिकारिक चिट्ठी में टीटीपी ने कहा है कि जहां भी मौका मिले, वहां हमले करो क्योंकि कई जगहों पर सेना मुजाहिद्दीनों को मार रही है।
जानकारी दें , टीटीपी ने पिछले दिनों पाकिस्तान की सरकार के साथ हुए युद्धविराम समझौते को खत्म कर दिया है। टीटीपी उसी विचारधारा को मानता है जिसे अफगान तालिबान मानता है। पिछले साल जब अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाएं गईं और तालिबान ने सत्ता में वापसी की तो तत्कालीन पीएम इमरान खान का कहना था कि देश गुलामी की जंजीरों से आजाद हो चुका है।
ज्ञात हो, जब से काबुल में तालिबान का शासन हुआ है तब से ही पाकिस्तान में टीटीपी ताकतवर हो गया है। विशेषज्ञों की मानें तो पाकिस्तान के लिए स्थिति बहुत मुश्किल है। साल 2014 में पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल पर हमले के बाद आतंकियों पर कार्रवाई जरूर की गई। मगर यह बात भी सच है कि पाकिस्तान ने कभी इस बात को नहीं माना कि उसकी सरजमीं पर टीटीपी के कई खूंखार आतंकी मौजूद हैं। आज यह देश अपनी उसी गलती का अंजाम भुगत रहा है।
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