इंडिया न्यूज़: (Pakistan Gulf Relations) आर्थिक तंगी का सामना कर रहा पाकिस्तान के लिए एक और बुरी खबर सामने आई है। बता दें कि तंगी की वजह से पहले ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन अब इस नए घटनाक्रम के बाद उसके लिए मुश्किलें और भी ज्यादा बढ़ गईं हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक बताया गया कि खाड़ी देशों में काम करने वाले पाकिस्तानी मजदूरों को बेहद ही खराब स्थितियों में काम करना पड़ रहा है। ये मजदूर अपने मालिक की दया पर निर्भर हैं और भेदभाव में जीवन बिता रहें हैं।
- पाकिस्तानी मजदूरों के साथ हो रहा भेदभाव
- खाड़ी देशों में काम करने वाले मजदूरों पर शोषण
- पाकिस्तानी दूतावास की तरफ से नहीं मिलती मदद
इस किताब में किए गए ये दावे
आपको बता दें कि राजधानी इस्लामाबाद में एक किताब को रिलीज़ किया गया है। इस किताब का टाइटल- ‘द कॉस्ट ऑफ लिविंग: माइग्रेंट वर्कर्स एक्सेस टू हेल्थ इन गल्फ’ है। जिसे दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में मौजूद सिविल सोसायटीज ऑर्गनाइजेशंस के साथ मिलकर तैयार किया गया है। इस किताब में उन मजदूरों की स्थिति का जिक्र किया गया है, जो खाड़ी देशों में अलग-अलग सेक्टर में लगे हुए हैं। इस किताब में कहा गया है कि खाड़ी देशों में बुरी हालत में जिंदगी जीने वाले मजदूरों को पाकिस्तानी दूतावास की तरफ से भी जरूरी मदद नहीं मिल रही है। इस कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ के अलावा पाकिस्तानी सरकार के भी कुछ लोग मौजूद थे।
मजदूरों को नहीं मिलती कोई भी मदद
इस किताब के मुताबिक बताया गया कि पाकिस्तानी मजदूरों को ‘मजदूर भर्ती’ प्रक्रिया के बारे में कोई भी जानकारी नहीं है और न ही उन्हें कोई मदद मिलती है। ऐसे में उनके साथ सख्त बर्ताव किया जाता है। शोषण करने वाले कानूनों और पाकिस्तान की तरफ से उनके हितों के लिए बात न करना उनके इस शोषण की सबसे बड़ी वजह बन गया है। ये मुद्दे तब और जटिल हो जाते हैं, जब खाड़ी देशों में मजदूरों को सही स्वास्थ्य सुविधाएं भी नहीं मिल पाती हैं।
स्वास्थ्य सुविधाएं भी नहीं हैं उपलब्ध
बता दें कि ये पहली ऐसी ये रिपोर्ट है जिसमें पाकिस्तानी मजूदरों की स्थिति को सामने लाया गया है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि गल्फ को-ऑपरेटिव काउंसिल (GCC) के 6 देशों में इन मजदूरों को सही स्वास्थ्य सुविधाएं तक नहीं मिली हैं। इन देशों में करीब 30 मिलियन मजदूर काम करते हैं और यह कुल आबादी का 50 फीसदी से भी ज्यादा है। खराब स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ उनकी जीवन पर बुरे प्रभाव की बात भी कही गई है।