ईवीएम या बैलेट
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ज्यादातर वोटिंग बैलेट के जरिए होती है। साल 2000 में जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हुए थे, तब चुनावी प्रक्रिया थोड़ी अलग थी। बैलेट पेपर के साथ-साथ पंच-कार्ड वोटिंग मशीन के जरिए भी वोट डाले गए थे। लेकिन यह चुनाव काफी विवादों में रहा। फ्लोरिडा में चुनाव नतीजों पर सवाल उठे, रिपब्लिकन उम्मीदवार जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने अपने प्रतिद्वंद्वी अल गोर को 537 वोटों के अंतर से हराया। यह चुनाव इतना विवादित रहा कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट को पुनर्मतगणना प्रक्रिया को बीच में ही रोकना पड़ा और बुश को विजेता घोषित करना पड़ा। इसके बाद अमेरिका ने 2002 में मतदान में सुधार के लिए एक विधेयक पारित किया। हेल्प अमेरिका वोट एक्ट पारित होते ही सरकार ने अरबों डॉलर में खरीदी जा रही ‘डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रॉनिक’ (डीआरई) मशीनों को खरीदना बंद कर दिया, क्योंकि इस मशीन के जरिए किए गए मतदान का कोई पेपर ट्रेल नहीं था।
हालांकि, 2006 में पेपरलेस मशीनों से मतदान करने के लिए पंजीकृत मतदाताओं की संख्या में वृद्धि हुई, जबकि हाथ से चिह्नित पेपर बैलेट सबसे लोकप्रिय हो रहे थे, इन बैलेट पेपर को इलेक्ट्रॉनिक टेबुलेटर्स द्वारा स्कैन किया जाता था।एक दशक बाद, कुल वोटों का लगभग एक तिहाई DRE मशीनों (ईवीएम जैसी मशीनें) से डाला गया। BrennanCenter.org के अनुसार, 2014 तक, 25 प्रतिशत मतदाताओं ने पेपरलेस मशीनों का उपयोग किया। लेकिन 2016 में बैलेट की ओर एक बड़ा बदलाव देखा गया।
बैलेट पेपर की ओर लोगो की दिलचस्पी
चुनाव और सरकारी कार्यक्रम परिषद डेरेक टिस्लर ने तब रॉयटर्स को बताया कि हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता त्रुटि का पता लगाना है ताकि हम इसे ठीक कर सकें। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जो परिणाम सामने आया है वह पूरी तरह से सही है। और यही कारण है कि हमने देखा है कि अधिक से अधिक लोग बैलेट पेपर से मतदान करने की ओर लौट रहे हैं।
800 मिलियन डॉलर के संघीय वित्त पोषण के साथ, अमेरिका के कई राज्य पुरानी मतदान प्रणाली से तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और बैलेट पेपर के माध्यम से अपना वोट डाल रहे हैं। 2022 में होने वाले मध्यावधि चुनाव में, लगभग 70 प्रतिशत पंजीकृत मतदाताओं ने हाथ से चिह्नित पेपर बैलेट का उपयोग किया। इनमें से 23 प्रतिशत लोग ऐसे राज्यों में रहते हैं जहाँ इलेक्ट्रॉनिक मशीन या बैलेट के माध्यम से अपने उम्मीदवार को चुनने की स्वतंत्रता है।
मध्यावधि चुनावों में, केवल 7 प्रतिशत मतदाताओं ने DRE मशीनों का उपयोग करके मतदान किया। यह आंकड़ा साल दर साल कम होता जा रहा है। BrennanCenter.org के आंकड़ों के अनुसार, 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में लगभग 98 प्रतिशत लोग बैलेट पेपर का उपयोग करेंगे, जबकि 2020 में यह आंकड़ा 93 प्रतिशत था।
खास बात यह है कि सभी 7 स्विंग स्टेट (कठिन राज्य)- एरिजोना, जॉर्जिया, मिशिगन, नेवादा, नॉर्थ कैरोलिना, पेनसिल्वेनिया और विस्कॉन्सिन- पेपर ट्रेल वोटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं। वहीं, वोटिंग के बाद ऑडिट के लिए बैलेट पेपर मददगार होते हैं, जिसका इस्तेमाल अमेरिका के 48 राज्यों में होता है।
बैलेट पेपर से छेड़छाड़ की संभावना
यूनिवर्सिटी ऑफ आयोवा में कंप्यूटर साइंस के रिटायर्ड प्रोफेसर डगलस जोन्स का कहना है कि वोटिंग के लिए पेपर का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है, ताकि किसी गड़बड़ी की स्थिति में आप सबूतों की जांच कर सकें और गलती को सुधारा जा सके। डगलस ने चुनावों में कंप्यूटर के इस्तेमाल का अध्ययन करने में कई दशक बिताए हैं। उनका कहना है कि वोटों की गिनती के लिए स्कैनर का इस्तेमाल करके कई तरह की संभावित गलतियों को खत्म किया जा सकता है।
यही वजह है कि अमेरिका में मतदान के बाद कई दिनों तक मतगणना और वोटों का मिलान होता है, जिसके कारण नतीजे आने में कई दिन लग जाते हैं। हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रपति का चुनाव सीधे जनता के वोट से नहीं होता, बल्कि राष्ट्रपति का चुनाव प्रत्येक राज्य के नामित इलेक्टर्स द्वारा किया जाता है। जनता के वोट ही तय करते हैं कि किस राज्य में कौन सा उम्मीदवार जीतेगा और फिर जिस राज्य के इलेक्टर्स 270 का आंकड़ा पार कर जाते हैं, वह उम्मीदवार चुनाव जीत जाता है।