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इस ताकतवर देश के साथ मिलकर भारत करने वाला है कुछ बड़ा! पड़ोसी देश में मचा हंगामा…उड़ी ड्रैगन की निंद

India News(इंडिया न्यूज),Olaf Scholz India Visit: जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ 3 दिवसीय भारत दौरे पर हैं, वे 7वें IGC (अंतर-सरकारी परामर्श) के लिए गुरुवार देर शाम दिल्ली पहुंचे। पिछले 2 सालों में यह उनका तीसरा भारत दौरा है। पिछले साल वे दो बार भारत आए थे, फरवरी 2023 में वे भारत की द्विपक्षीय यात्रा पर थे और सितंबर में उन्होंने भारत की अध्यक्षता में आयोजित G20 सम्मेलन में हिस्सा लिया था।

भारत और जर्मनी के बीच राजनयिक संबंध करीब 7 दशक पुराने हैं। भारत द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले पहले देशों में से एक है। दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी मई 2000 में शुरू हुई थी, जिसे 2011 में ‘अंतर-सरकारी परामर्श’ शुरू करके मजबूत किया गया। भारत उन कुछ देशों में से एक है, जिनके साथ जर्मनी का एक स्थापित संवाद तंत्र है।

भारत-जर्मनी संबंध

भारत और जर्मनी के बीच पिछले 7 दशकों से राजनयिक संबंध कायम हैं। दोनों देशों के बीच वर्ष 2000 में मजबूत रणनीतिक और व्यापारिक संबंध शुरू हुए थे और अब जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज की भारत यात्रा से दोनों देशों के बीच संबंधों का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी 2022 में 26 से 28 जून तक जर्मनी के दौरे पर रहे। उन्होंने बर्लिन में आयोजित छठे ‘अंतर सरकारी परामर्श’ में हिस्सा लिया, साथ ही पीएम ने जर्मनी की अध्यक्षता में आयोजित जी7 शिखर सम्मेलन में भी हिस्सा लिया। इसके अलावा पीएम नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2022 में बाली में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन से इतर जर्मन चांसलर के साथ द्विपक्षीय वार्ता की। व्यापारिक संबंधों की बात करें तो 2022-23 में जर्मनी भारत का 12वां व्यापारिक साझेदार था। इस दौरान जर्मनी के कुल विदेशी व्यापार में भारत की हिस्सेदारी एक फीसदी रही।

वहीं, भारत के कुल विदेशी व्यापार में जर्मनी का योगदान 2.24 फीसदी रहा। कोरोना महामारी से पहले दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। 2018-19 में भारत और जर्मनी के बीच रिकॉर्ड 24 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ। कोरोना महामारी के दौरान भी दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़ता रहा, जो 2022-23 में बढ़कर 26 बिलियन डॉलर हो गया। जर्मनी की अर्थव्यवस्था इस समय मंदी की चपेट में है। इससे उबरने के लिए भारत जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का साथ मिलना बेहद जरूरी है।

एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जर्मनी के लिए भारत एक बड़ा साझेदार बनकर उभरा है, जो न सिर्फ आर्थिक विकास बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए भी मददगार साबित होगा। चीन का विकल्प तलाश रहा है जर्मनी इसलिए माना जा रहा है कि भारत दौरे के जरिए जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज न सिर्फ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि चीन का विकल्प भी तलाश रहे हैं। दरअसल, दक्षिण चीन सागर, ताइवान और फिलीपींस के साथ क्षेत्रीय तनाव के मुद्दे को लेकर जर्मनी की अपनी कुछ चिंताएं हैं।

ऐसे में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता के लिए भारत से बेहतर कोई रणनीतिक साझेदार नहीं हो सकता। वर्तमान में चीन जर्मनी का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, लेकिन जर्मनी यूरोपीय संघ और चीन के बीच चल रहे व्यापार विवाद से चिंतित है। वर्ष 2022 में भारत में जर्मनी का प्रत्यक्ष निवेश करीब 2600 करोड़ रुपए था, जो चीन में जर्मन निवेश की तुलना में मात्र 20 प्रतिशत है। जर्मनी को उम्मीद है कि इस दशक के अंत तक वह इसे कम से कम 40 प्रतिशत तक ले जा सकता है। क्योंकि चीन पर अत्यधिक निर्भरता जर्मनी को 2022 की तरह फिर से बड़ा झटका दे सकती है, जब यूक्रेन युद्ध के कारण गैस के लिए रूस पर उसकी निर्भरता को नुकसान हुआ था।

भारतीय बाजार

पिछले सप्ताह ही जर्मनी ने ‘फोकस ऑन इंडिया’ योजना के तहत भारत के साथ कई क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने का रोडमैप सामने रखा है। उन्हें उम्मीद है कि भारत पर फोकस करके वह अपने बड़े बाजार पर पकड़ मजबूत कर सकेगा और चीन पर निर्भरता कम कर सकेगा। माना जा रहा है कि जर्मनी भारत में मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने जा रहा है, इसके तहत आने वाले एक साल में 51 प्रतिशत जर्मन कंपनियां अपना निवेश बढ़ाएंगी। वहीं, उम्मीद है कि अगले 6 सालों में जर्मन कंपनियां भारत में करीब 4.5 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने वाली हैं। अगर ऐसा होता है तो यह मौजूदा निवेश से दोगुना हो जाएगा।

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Divyanshi Singh

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