India News (इंडिया न्यूज), Chabahar Port: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर अधिकतम दबाव बनाने के लिए प्रतिबंधों में चाबहार पोर्ट को दी गई छूट को खत्म करने का निर्देश देकर भारत को नया झटका दिया है, जबकि पाकिस्तान को राहत दी है। इससे पहले अमेरिका ने अशरफ गनी सरकार के कार्यकाल में भारत को अफगानिस्तान तक व्यापारिक पहुंच देने के लिए इस पोर्ट को छूट दी थी। भारत ने इस पोर्ट के विकास में लाखों डॉलर का निवेश किया था और इसे इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (आईएनएसटीसी) से जोड़ने की योजना बनाई थी।
भारत इस पोर्ट को पाकिस्तान और चीन के ग्वादर पोर्ट के जवाब में विकसित कर रहा था। लेकिन ट्रंप प्रशासन द्वारा छूट खत्म करने से भारत की क्षेत्रीय रणनीति प्रभावित हो सकती है। यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब भारत ने 2024 में 10 साल के लिए चाबहार पोर्ट को संचालित करने के लिए ईरान के साथ समझौता किया था और 250 मिलियन डॉलर (250 मिलियन डॉलर) का निवेश किया है।
Chabahar Port
अमेरिका ने ईरान के खिलाफ अधिकतम दबाव की नीति के तहत यह फैसला लिया है। वाशिंगटन चाहता है कि ईरान अपना परमाणु कार्यक्रम, मिसाइल विकास और कथित आतंकवादी संगठनों को समर्थन देना बंद कर दे। इससे पहले 2018 में ट्रंप प्रशासन ने ही चाबहार पर भारत को छूट दी थी, लेकिन अब उसी नीति को पलट दिया गया है। अमेरिका को डर है कि ईरान-रूस-भारत की बढ़ती साझेदारी और ईरान में चीन की बढ़ती मौजूदगी उसके हितों के खिलाफ जा सकती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव के बीच ईरान परमाणु हथियार विकसित कर सकता है, जिससे अमेरिका की चिंताएं बढ़ गई हैं।
चाबहार पोर्ट भारत के लिए सिर्फ एक बंदरगाह नहीं है, बल्कि एक महत्वपूर्ण व्यापार और रणनीतिक केंद्र है। इसके जरिए भारत पाकिस्तान को दरकिनार कर अफगानिस्तान, मध्य एशिया, रूस और यूरोप तक व्यापार करता है। भारत के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, चाबहार पोर्ट ने मुंबई और यूरेशिया के बीच व्यापार में 43% की बढ़ोतरी की है। अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भारत-ईरान व्यापार में पहले से ही गिरावट आ रही है। ईरान पहले ही भारत के चाबहार पोर्ट प्रोजेक्ट में देरी पर नाराजगी जता चुका है।
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भारत ट्रंप प्रशासन के फ़ैसले की समीक्षा कर रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान इस मुद्दे को उठाए जाने की संभावना है। इस फ़ैसले से चाबहार बंदरगाह के विकास और संचालन पर असर पड़ सकता है, जिससे भारत की व्यापार रणनीति सीमित हो सकती है। साथ ही, यह पाकिस्तान और चीन के लिए अच्छी ख़बर हो सकती है, क्योंकि इससे भारत की क्षेत्रीय पकड़ कमज़ोर हो सकती है।
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