India News (इंडिया न्यूज़),Pak-Iran Relation: ईरान और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। पिछले 48 घंटों में दोनों देशों की ओर से शुरू हुई वार-पलटवार की जंग पर पूरी दुनिया की नजर है। मंगलवार को ईरान ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में आतंकी संगठन जैश अल-अदल के ठिकानों पर हमला किया, जिसमें कोई आतंकी तो नहीं मारा गया, लेकिन दो बच्चों की मौत हो गई। ईरान के हमले के बाद पाकिस्तान को धमकी दी। पाक विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह हमला अच्छे पड़ोसी की निशानी नहीं है। इसके गंभीर परिणाम होंगे।
पाकिस्तान ने ईरान से अपने राजदूत को भी वापस बुला लिया। ईरान की कार्रवाई तो आतंकियों के खिलाफ थी, लेकिन उन्हें पनाह देने वाला पाकिस्तान बौखला गया। हमले के ठीक 24 घंटे बाद उसने ईरान में हवाई हमला किया। पाक वायुसेना ने पूर्वी ईरान के सारावन शहर में हवाई हमला किया। पाकिस्तान के हमले का जवाब ईरान कब और कैसे देता है, इस पर पूरी दुनिया की नजर रहेगी, लेकिन ये साफ है कि दोनों देशों के रिश्ते यहां से सुधरने वाले नहीं हैं।
पाकिस्तान और ईरान के रिश्ते कैसे रहे हैं ये जानने के लिए हमें कई साल पीछे जाना होगा और शुरुआत दोनों की सीमाओं से करनी होगी। पाकिस्तान की सीमा ईरान से लगती है। ईरान और पाकिस्तान दोनों ही इस्लामिक देश हैं। पाकिस्तान एक सुन्नी बहुसंख्यक देश है, जबकि ईरान एक शिया देश है। पाकिस्तान और ईरान के बीच 904 किलोमीटर की सीमा है। यह क्षेत्र मादक पदार्थों की तस्करी और आतंकवाद का केंद्र है। बलूचिस्तान एक ऐसा इलाका है जो दोनों देशों में फैला हुआ है। सांप्रदायिक मतभेदों और बलूची अलगाववादियों की गतिविधियों ने स्थिति को बदतर बना दिया है।
जैश अल अदल बलूचिस्तान से ही ऑपरेट करता है। यहीं उसके ठिकाने हैं। ईरान में हमलों का एक लंबा इतिहास रहा है। अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशक (डीएनआई) के अनुसार, जैश अल-अदल 2013 से ईरान में नागरिकों और सरकारी अधिकारियों पर घात लगाकर हमला कर रहा है। वह हत्या और अपहरण जैसी घटनाओं में शामिल रहा है। अक्टूबर 2013 में इस संगठन ने 14 ईरानी सुरक्षाकर्मियों की हत्या कर दी थी। 2019 में, इसने ईरान के अर्धसैनिक समूह, इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स पर आत्मघाती हमला किया, जिसमें 27 कर्मी मारे गए। इसी साल उसने 14 ईरानी सुरक्षाकर्मियों का भी अपहरण कर लिया था।
कहने की जरूरत नहीं है कि सुन्नी-शिया सांप्रदायिक विभाजन दोनों देशों के बीच कड़वे संबंधों के मूल में है। ऐसा हाल के दिनों में हुआ है। भले ही जैश-अल-अदल और शिया-सुन्नी की वजह से दोनों देशों के रिश्ते तनाव के दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन इसकी शुरुआत इतनी बुरी नहीं थी।
ईरान पाकिस्तान को मान्यता देने वाला पहला मुस्लिम देश था। 19 फरवरी 1950 को ईरान और पाकिस्तान ने एक संधि पर हस्ताक्षर किये। पाकिस्तान के पहले प्रधान मंत्री लियाकत अली खान ने 1949 में ईरान की राजधानी तेहरान का दौरा किया, जबकि ईरान के शाह ने 1950 में पाकिस्तान का दौरा किया। वह पाकिस्तान का दौरा करने वाले पहले राज्य प्रमुख थे।
इसी तरह, पाकिस्तान और ईरान 1955 में अमेरिका के नेतृत्व वाले बगदाद समझौते का हिस्सा बन गए। ईरान ने 1965 और 1971 में भारत के साथ युद्ध के दौरान पाकिस्तान को पूर्ण राजनीतिक और राजनयिक समर्थन दिया। ईरान ने 1963 में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच राजनयिक संबंधों को बहाल करने में मदद की।
ईरान और पाकिस्तान की दोस्ती मजबूत होती जा रही थी। लेकिन 1979 की इस्लामिक क्रांति ने दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट ला दी। दोनों देशों ने अफगानिस्तान में सोवियत सैन्य हस्तक्षेप की निंदा की। दोनों अफगान गुटों का समर्थन किया। ईरान ने गैर-पश्तून वर्ग का समर्थन किया, जबकि पाकिस्तान ने मुजाहिदीन, मुख्य रूप से पश्तूनों का समर्थन किया। 1989 में अफगानिस्तान से सोवियत संघ की वापसी के बाद भी दोनों देशों के बीच संबंध मधुर नहीं बने। काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान ने मजार शरीफ में कई ईरानी राजनयिकों और शियाओं की हत्या कर दी। इसके चलते तालिबान और ईरान के रिश्ते टूट गए और पाकिस्तान और ईरान के रिश्ते भी ख़राब हो गए।
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