India News (इंडिया न्यूज),Jalebi in Haryana Politics: हरियाणा की राजनीति में जलेबी चर्चा का विषय है। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने गोहाना की मशहूर जलेबी खाई। मंच से राहुल गांधी ने जलेबी की फैक्ट्री लगाने, रोजगार मुहैया कराने और देश-विदेश में निर्यात करने की बात कही। भाजपा ने इसे मुद्दा बनाकर राहुल गांधी पर कटाक्ष किया। सोशल मीडिया पर जलेबी के मीम्स वायरल होने लगे। इसे खेतों में फसल की तरह उगते हुए दिखाया गया। सोशल मीडिया यूजर्स का कहना है कि जलेबी के बीज तैयार हो गए हैं। अब खेतों में जलेबी की खेती होगी।
भारत में जलेबी का इतिहास काफी पुराना है। इतिहास कहता है कि जलेबी की उत्पत्ति पर्शिया (अब ईरान) में हुई थी। इसका अरब से भी संबंध है जहां खमीर से चीजें बनाने का चलन है। यहां से यह यूरोप, जर्मनी और उत्तरी अमेरिका में फैली और पूरी दुनिया में लोगों तक पहुंची। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि यह भारत कैसे पहुंची।
हालांकि इतिहास इस बात की पुष्टि करता है कि जलेबी पर्शिया (अब ईरान) से आई है, लेकिन भारत में इसे राष्ट्रीय मिठाई का दर्जा दिया गया है। उत्तर भारत में इसे जलेबी, दक्षिण में इसे जेलेबी और उत्तर पूर्व में इसे जिलापी कहते हैं। ईरान में इसे जुलबिया के नाम से जाना जाता है, जिसे खास तौर पर रमजान के महीने में खाया जाता है। मध्य पूर्व के कई देशों में इसे बनाते समय शहद और गुलाब जल का इस्तेमाल किया जाता है।
फारसी जुलबिया का जिक्र 10वीं सदी की शुरुआत में मिलता है। इस व्यंजन की रेसिपी का जिक्र मुहम्मद बिन हसन अल-बगदादी की एक प्राचीन फारसी कुकबुक ‘अल-तबीख’ में मिलता है। किताब में कहा गया है, जलेबी पारंपरिक रूप से रमजान और दूसरे त्योहारों के दौरान लोगों में बांटी जाने वाली मिठाई रही है। इस जलेबी का जिक्र 10वीं सदी की इब्न सयार अल-वर्राक की अरबी कुकबुक में भी मिलता है।
आज ईरान में ज़ुल्बिया लोकप्रिय है, लेकिन यह भारतीय जलेबी से अलग है, क्योंकि दोनों की बनावट में थोड़ा अंतर है। मध्य पूर्व के देशों में इसे बनाने के लिए शहद और गुलाब जल का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन भारत में इसे साधारण चीनी के सिरा में डुबोया जाता है। इतिहासकारों का कहना है कि मध्यकाल में फारसी व्यापारियों, कारीगरों और मध्य पूर्वी आक्रमणकारियों के ज़रिए जलेबी भारत पहुँची।
इसे बनाने की प्रक्रिया इस तरह भारत पहुँची और यहाँ इसे बनाने की प्रथा शुरू हुई। 15वीं सदी के अंत तक जलेबी ने भारत में मनाए जाने वाले त्योहारों, शादी समारोहों और दूसरे आयोजनों में अपनी जगह बना ली। इतना ही नहीं, मंदिरों में इसे प्रसाद के तौर पर भी बांटा जाने लगा।
अपनी किताब इंडियन फ़ूड: ए हिस्टोरिकल कम्पैनियन में खाद्य इतिहासकार केटी आचार्य लिखती हैं – “हॉबसन-जॉबसन के अनुसार जलेबी शब्द ‘साफ़ तौर पर अरबी ज़लाबिया या फ़ारसी ज़लीबिया का अपभ्रंश है।’
भारत में जलेबी को कई चीज़ों के साथ खाया जाता है। उत्तर भारत में इसे दही के साथ खाया जाता है। मध्य भारत में इसे पोहा के साथ खाने की परंपरा है। गुजरात में इसे फाफड़ा के साथ खाने की परंपरा है और देश के कई हिस्सों में इसे दूध में भिगोकर खाया जाता है। इसे रबड़ी के साथ भी खाया जाता है।
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