India News (इंडिया न्यूज़), Who is Hazrat-e-Islami in Bangladesh: पुलवामा हमले के बाद केंद्र सरकार आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है और एक के बाद एक अहम कदम उठाए जा रहे हैं। इसी क्रम में सरकार ने जम्मू-कश्मीर में काम कर रहे संगठन जमात-ए-इस्लामी (Hazrat-e-Islami) पर 5 साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया है। जी हां, गृह मंत्रालय ने कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी की बैठक के बाद यह फैसला लिया है। ऐसे में यहां जान लें कि जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) क्या है और यह संगठन ऐसा क्या काम करता है कि सरकार को इस पर प्रतिबंध लगाना पड़ गया है।
जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) के बारे में बताने से पहले बता दें कि इसकी नींव कहां रखी गई थी। दरअसल, आजादी से पहले साल 1941 में एक संगठन बनाया गया था, जिसका नाम जमात-ए-इस्लामी था। जमात-ए-इस्लामी का गठन इस्लामिक धर्मशास्त्री मौलाना अबुल अला मौदूदी ने किया था और यह इस्लाम की विचारधारा पर काम करता था।
हालांकि, आज़ादी के बाद यह कई अलग-अलग संगठनों में विभाजित हो गया, जिसमें जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान और जमात-ए-इस्लामी हिंद शामिल हैं। हालांकि, जमात-ए-इस्लामी से प्रभावित होकर कई अन्य संगठन भी बनाए गए, जिनमें प्रमुख हैं जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश, कश्मीर, ब्रिटेन और अफ़गानिस्तान आदि। जमात-ए-इस्लामी पार्टियाँ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अन्य मुस्लिम समूहों के साथ संबंध बनाए रखती हैं।
जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) की घाटी की राजनीति में अहम भूमिका है और इसने साल 1971 में सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया था। पहले चुनाव में एक भी सीट न मिलने के बाद इसने बाद के चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया और जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अहम जगह बनाई। हालांकि, अब इसे जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी विचारधारा और आतंकी मानसिकता फैलाने के लिए मुख्य जिम्मेदार संगठन माना जाता है।
माना जाता है कि यह आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का दाहिना हाथ है और हिजबुल मुजाहिदीन को जमात-ए-इस्लामी जम्मू-कश्मीर ने ही खड़ा किया था। इस संगठन ने हिजबुल मुजाहिदीन की हर तरह से मदद की। आपको बता दें कि इस संगठन पर पहले भी दो बार प्रतिबंध लग चुका है। पहली बार जम्मू-कश्मीर सरकार ने 1975 में इस संगठन पर 2 साल के लिए प्रतिबंध लगाया था, जबकि दूसरी बार केंद्र सरकार ने 1990 में इस पर प्रतिबंध लगाया था। वह प्रतिबंध दिसंबर 1993 तक जारी रहा।
यह जमात-ए-इस्लामी हिंद से बिल्कुल अलग संगठन है। इसका उस संगठन से कोई लेना-देना नहीं है। वर्ष 1953 में जमात-ए-इस्लामी ने अपना संविधान भी बनाया था। जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) घाटी में चुनाव लड़ती है, लेकिन जमात-ए-इस्लामी हिंद एक ऐसा संगठन है, जो कल्याण के लिए काम करता है। जमात-ए-इस्लामी हिंद देश में स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़े कई काम भी करता रहा है।
जमात-ए-इस्लामी जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी विचारधारा और आतंकवादी मानसिकता फैलाने के लिए जिम्मेदार मुख्य संगठन है। गृह मंत्रालय के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, जमात-ए-इस्लामी आतंकवादियों को प्रशिक्षण दे रहा था, उन्हें वित्तपोषित कर रहा था, उन्हें शरण दे रहा था, रसद मुहैया करा रहा था, आदि। इसे जमात-ए-इस्लामी जम्मू-कश्मीर का उग्रवादी विंग माना जाता है। इसे आतंकवादी घटनाओं के लिए भी जिम्मेदार माना जाता है।
यह कश्मीर घाटी में अपनी अलगाववादी विचारधारा और पाकिस्तानी एजेंडे के तहत काम करता है। यह संगठन अलगाववादी और आतंकवादी तत्वों को वैचारिक समर्थन देता है। यह उनकी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को भी पूरा समर्थन देता रहा है। यह भी सामने आया है कि यह भारत से अलग धर्म के आधार पर एक स्वतंत्र इस्लामिक राज्य स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। जमात-ए-इस्लामी की इन गतिविधियों के कारण इसे प्रतिबंधित करने का कदम उठाया गया है।
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