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70,000 मुस्लिमों की गई जान! भारत के दुश्मन देश में मौत कर रहा है तांडव, जंग नहीं ये चीज ले रहा पाकिस्तानियों की जान

Divyanshi Singh • LAST UPDATED : October 22, 2024, 3:15 pm IST

India News (इंडिया न्यूज),Pakistan: पाकिस्तान जहां एक ओर खराब आर्थिक स्थिति से गुजर रहा है। वहीं यहां के लोगों को गर्म मौसम की वजह से दोहरी मार झोलनी पड़ सकती है।मौसम विभाग के मुताबिक पाकिस्तान का कराची शहर आने वाले दिनों में काफी गर्म रहने वाला है। शहर का तापमान 3 से 4 डिग्री सेल्सियस बढ़ सकता है। जो 38 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है।लिहाजा अगले कुछ दिनों तक कराची और ग्रामीण सिंध के कई जिलों में भीषण गर्मी पड़ने की संभावना है।सजावल, थट्टा, हैदराबाद, मीरपुर खास, उमरकोट और थारपारकर भी गर्मी की चपेट में रहेंगे। हालांकि कुछ इलाकों में बारिश की संभावना है, लेकिन इससे गर्मी से राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। ऐसे में यह मौसम कई बीमारियों का कारण बन सकता है।

बढ़ रही मरीजों की संख्या

बदलते मौसम और बढ़ते प्रदूषण के कारण कराची में निमोनिया के मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है। स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक हर दिन अस्पतालों में भर्ती होने वाले बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी देखी जा रही है। पाकिस्तान पीडियाट्रिक्स एसोसिएशन के महासचिव डॉ. खालिद शफी का कहना है कि अक्टूबर से दिसंबर के दौरान अक्सर निमोनिया के मामले बढ़ जाते हैं। इस दौरान दो साल से कम उम्र के बच्चों और 65 साल से अधिक उम्र के वयस्कों पर निमोनिया का खतरा बढ़ जाता है।

हर दिन आ रहे हैं इतने मरीज

पाकिस्तान के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ की ओर से 19 अक्टूबर को दी गई जानकारी के मुताबिक कराची में हर दिन निमोनिया के 30 मामले सामने आ रहे हैं। कराची सिविल अस्पताल के डॉ. इमरान सरवर का कहना है कि अस्पताल में हर दिन निमोनिया के 15 से 20 मामले सामने आ रहे हैं।

निमोनिया से हर साल 70,000 मौतें

पाकिस्तान में हर साल निमोनिया से 70,000 से ज़्यादा मौतें होती हैं, ये आंकड़ा अपने आप में काफी हैरान करने वाला है। इस साल जनवरी में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में निमोनिया के 18 हज़ार मामले दर्ज किए गए, जहां इसकी वजह से 300 लोगों की मौत हो गई। आपको बता दें कि पाकिस्तान दुनिया के उन 13 चुनिंदा देशों में से एक है जहां हर साल निमोनिया फैलता है और बच्चों की मौत का मुख्य कारण निमोनिया ही है। हालांकि, निमोनिया से पीड़ित सिर्फ़ 50% बच्चों को ही एंटीबायोटिक मिल पाती है।

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