India News (इंडिया न्यूज), Muslim marriage First wife rights: पाकिस्तान की शीर्ष धार्मिक संस्था काउंसिल ऑफ इस्लामिक आइडियोलॉजी (सीआईआई) ने एक अहम फैसले में कहा है कि मुस्लिम पुरुष की पहली पत्नी को अपनी शादी को रद्द करने का अधिकार नहीं है, भले ही उसका पति उसकी सहमति के बिना दूसरी शादी कर ले। बुधवार को सीआईआई की बैठक के बाद यह फैसला जारी किया गया, जिससे देश में बहुविवाह से जुड़ी कानूनी और धार्मिक बहस फिर गरमा गई है। सीआईआई ने पाकिस्तान में इस्लामी सिद्धांतों के अनुरूप कानून बनाने की सिफारिश की है।
संस्था ने क्या कहा?
संस्था ने कहा, पति की दूसरी शादी के आधार पर पहली पत्नी को अपनी शादी को रद्द करने का अधिकार देना इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ है। काउंसिल के मुताबिक, शरिया पुरुषों को चार शादियां करने की इजाजत देता है और इसमें पहली पत्नी की सहमति की कोई शर्त नहीं है। सीआईआई के अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद खान शीरानी ने कहा, शरिया के तहत किसी पुरुष को दूसरी शादी के लिए अपनी पहली पत्नी से इजाजत लेने की जरूरत नहीं है। यह कानून इस्लामी शिक्षाओं के अनुरूप नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
आपको जानकारी के लिए बता दें कि, यह फैसला ऐसे समय में आया है। जब हाल ही में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दूसरी शादी के लिए पहली पत्नी की सहमति या मध्यस्थता परिषद की मंजूरी जरूरी है। सीआईआई ने कोर्ट के इस फैसले की आलोचना करते हुए इसे “गैर-इस्लामी” बताया और सरकार से मुस्लिम फैमिली लॉ ऑर्डिनेंस, 1961 में संशोधन करने की अपील की, जिसमें दूसरी शादी के लिए पहली पत्नी की सहमति अनिवार्य है। सीआईआई ने कहा है कि विवाह अनुबंध में थैलेसीमिया और अन्य संक्रामक रोगों के लिए मेडिकल टेस्ट को शामिल करना अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए।
पाकिस्तान में बहुविवाह को लेकर चल रहा विवाद
पाकिस्तान में बहुविवाह को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। मुस्लिम फैमिली लॉ ऑर्डिनेंस, 1961 के तहत किसी व्यक्ति को दूसरी शादी करने से पहले अपनी पहली पत्नी और मध्यस्थता परिषद से लिखित अनुमति लेनी होती है। इस कानून का उल्लंघन करने पर सजा और जुर्माने का प्रावधान है। हालांकि, सीआईआई का कहना है कि यह शर्त इस्लामी शरिया के खिलाफ है और इसे हटाया जाना चाहिए। दूसरी ओर, महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों और कार्यकर्ताओं ने इस कानून को महिला सशक्तिकरण के लिए जरूरी बताया है।