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ना हमला ना बलास्ट…चंद चींटियों की वजह से इस ताकतवर देश में बिजली गुल, इंटरनेट पर गहराया संकट, सदमे में सरकार

वैज्ञानिकों का कहना है कि यह चींटी खास तौर पर बाडेन-वुर्टेमबर्ग और आसपास के इलाकों में तेजी से कॉलोनियां बना रही है। किहल नाम के शहर में इस प्रजाति की वजह से बिजली और इंटरनेट पहले ही बंद हो चुका है।

BY: Divyanshi Singh • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज),Germany:जर्मनी में एक आक्रामक और विदेशी चींटी प्रजाति ने उत्पात मचा रखा है। ये चींटियां ‘टैपिनोमा मैग्नम’ प्रजाति की हैं। भूमध्यसागरीय क्षेत्र से आई ये चींटी अब उत्तरी जर्मनी की ओर तेजी से फैल रही है। इसकी वजह से बिजली और इंटरनेट सेवाएं भी बाधित हो रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रजाति की विशाल कॉलोनियां न केवल तकनीकी ढांचे को नुकसान पहुंचा रही हैं, बल्कि मानव जीवन को भी प्रभावित कर रही हैं।

सुपर कॉलोनियों में लाखों चींटियां

कार्ल्सरूहे के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम से जुड़े कीट विज्ञानी मैनफ्रेड वेरहाग के अनुसार, टैपिनोमा मैग्नम की सुपर कॉलोनियों में लाखों चींटियां हैं। ये पारंपरिक चींटी प्रजातियों से कई गुना बड़ी हैं। ये कॉलोनियां जर्मनी के उत्तरी शहरों कोलोन और हनोवर तक पहुंच गई हैं। इसकी वजह से वहां बिजली आपूर्ति और इंटरनेट नेटवर्क जैसे तकनीकी ढांचे खतरे में हैं।

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वैज्ञानिकों ने क्या कहा?

वैज्ञानिकों का कहना है कि यह चींटी खास तौर पर बाडेन-वुर्टेमबर्ग और आसपास के इलाकों में तेजी से कॉलोनियां बना रही है। किहल नाम के शहर में इस प्रजाति की वजह से बिजली और इंटरनेट पहले ही बंद हो चुका है। इसके अलावा फ्रांस और स्विट्जरलैंड जैसे अन्य यूरोपीय देशों में भी इस चींटी की मौजूदगी दर्ज की गई है। ऐसे में माना जा रहा है कि यह संकट सिर्फ जर्मनी तक सीमित नहीं रहने वाला है।

हालांकि, टैपिनोमा मैग्नम को अभी तक आधिकारिक रूप से आक्रामक प्रजाति घोषित नहीं किया गया है, क्योंकि स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर इसका व्यापक प्रभाव अभी तक साबित नहीं हुआ है। इसके बावजूद, बाडेन-वुर्टेमबर्ग के पर्यावरण सचिव आंद्रे बाउमन ने इसे एक कीट माना है और चेतावनी दी है कि अगर समय रहते इस पर काबू नहीं पाया गया तो यह बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा सकती है।

चींटियों को रोकने के प्रयास

इस खतरे को देखते हुए अब जर्मन वैज्ञानिक और प्रशासनिक एजेंसियां ​​इस चींटी के प्रसार को रोकने के लिए एक संयुक्त परियोजना पर मिलकर काम कर रही हैं। पहली बार इस दिशा में संगठित प्रयास शुरू हुए हैं ताकि समय रहते तकनीकी ढांचे, पर्यावरण और नागरिकों को होने वाले नुकसान को रोका जा सके। यह साफ हो गया है कि अब यह सिर्फ एक कीट नहीं रह गया है, बल्कि राष्ट्रीय चुनौती बनता जा रहा है।

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