India News (इंडिया न्यूज़), Hindu King Raja Dahir Singh Consider Hero In Pakistan: पंजाब प्रांत के पहले पंजाबी शासक महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा स्थापित होने के बाद अब पाकिस्तान में राजा दाहिर की चर्चा हो रही है। राजा दाहिर सिंध प्रांत के राजा थे और उनके बारे में एक किताब में दावा किया गया है कि उन्होंने राजा बनने के लिए अपनी ही बहन से शादी की थी। हालांकि, कई इतिहासकारों ने हमेशा इस दावे को नकारा है। जानिए क्या है पूरा इतिहास, कौन हैं राजा दाहिर।
राजा दाहिर कश्मीरी ब्राह्मण वंश से थे
एक रिपोर्ट के अनुसार, सिंध प्रांत में राजा दाहिर को आधिकारिक नायक घोषित करने की मांग ने जोर पकड़ लिया है। राजा दाहिर 8वीं सदी में सिंध के शासक थे। वे राजा चच के सबसे छोटे बेटे और कश्मीरी ब्राह्मण वंश के अंतिम शासक थे। रिपोर्ट में सिंधियाना इनसाइक्लोपीडिया का हवाला देते हुए कहा गया है कि कई हजार साल पहले सिंध में कई कश्मीरी ब्राह्मण वंश बस गए थे। वे शिक्षित थे। एक समय ऐसा भी आया जब राजनीतिक प्रभाव हासिल करने के बाद उन्होंने राय परिवार के 184 साल के शासन को खत्म कर दिया। इस तरह चच पहले ब्राह्मण राजा बने।
सिंध में अरब इतिहास की पहली किताब ‘चचनामा’ में इतिहासकारों ने दावा किया है कि राजा दाहिर ज्योतिष में बहुत विश्वास करते थे। वह अपनी बहन की शादी के बारे में ज्योतिषी से सलाह लेने गए थे। तब ज्योतिषी ने उनसे कहा कि जो भी उससे शादी करेगा, वह सिंध का राजा बनेगा। इसीलिए मंत्रियों और ज्योतिषियों की सलाह पर उन्होंने अपनी बहन से शादी कर ली। इतिहासकार यह भी कहते हैं कि उनकी शादी के लिए सभी विवाह रस्में निभाई गईं। बस इस शादी में पति-पत्नी के बीच कोई शारीरिक संबंध नहीं बने।
गर्व की बात
सिंध के बुजुर्ग और सांप्रदायिक नेता जीएम सैयद ने लिखा है कि हर सच्चे सिंधी को राजा दाहिर की वीरता पर गर्व होना चाहिए क्योंकि वह सिंध के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले पहले व्यक्ति थे। उनके बाद सिंध 340 साल तक विदेशियों की गुलामी में रहा, जब तक कि सिंध के सूमरा परिवार ने सत्ता हासिल नहीं कर ली। इतिहासकार कहते हैं कि राजा दाहिर का शासन चारों दिशाओं तक फैला हुआ था। उन दिनों सिंध से ज़मीन और समुद्री व्यापार होता था। मुमताज पठान ने ‘तारीख-ए-सिंध’ में लिखा है कि राजा दाहिर एक न्यायप्रिय राजा थे।
इतिहास पर उठे सवाल
जीएम सैयद इस तथ्य को पूरी तरह से नकारते हैं। उन्होंने लिखा है कि सगी बहन तो छोड़िए, ब्राह्मण चचेरे भाई या ममेरी बहन से भी शादी को नाजायज मानते थे। उनका कहना है कि यह संभव है कि बहन की शादी किसी छोटे राजा से करने के बजाय उसे घर पर ही रखा जाता हो। इसके पीछे वे हिंदुओं में जातिगत भेदभाव को भी कारण मानते हैं।
शोध की रोशनी में
‘शोध की रोशनी में दाहिर का परिवार’ शीर्षक से शोध पत्र में डॉ. आज़ाद काज़ी ने लिखा है कि चचनामा के इतिहासकार ने राजा दाहिर के उन रिश्तेदारों का ज़िक्र किया है जिन्हें एक किले से हिरासत में लिया गया था। इन रिश्तेदारों में राजा की भतीजी भी शामिल थी जिसकी पहचान करब बिन मखरू ने की थी। अगर चचनामा के अनुसार बहन के साथ रस्मी विवाह को सच माना जाए तो सवाल यह है कि लड़की कहाँ से आई?
यह चचनामा सुनी-सुनाई बातों पर आधारित है
कुछ इतिहासकारों और लेखकों ने चचनामा पर संदेह जताया है। डॉ. मुरलीधर जेटली के अनुसार चचनामा अरब पर्यटक अली कोफी ने 1216 में लिखा था, जिसमें हमले के बाद लोगों की सुनी-सुनाई बातें शामिल थीं। इसी तरह पीटर हार्ड, डॉ. मुबारक अली और गंगा राम सम्राट ने भी इसमें दी गई जानकारी की प्रामाणिकता पर संदेह जताया है।
पाकिस्तान में इतिहासकारों और शिक्षाविदों का एक वर्ग अब देश के सच्चे इतिहास के प्रचार-प्रसार की बात कर रहा है। पाकिस्तान के उन व्यक्तित्वों को उचित सम्मान देने की मांग जोर पकड़ रही है, जिन्होंने आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और देश की सुरक्षा के लिए बलिदान दिया। यहां तक कि न्यायप्रिय राजा दाहिर के लिए भी सिंध और पाकिस्तान में एक वर्ग अपने नायक को वह दर्जा देना चाहता है, जिसके वे वास्तव में हकदार थे।