India News (इंडिया न्यूज), Russia Ukraine War: रूस-यूक्रेन युद्ध में कुछ भारतीय युवा भी लड़े थे। इसमें दिलचस्प बात यह थी कि कुछ तो सिर्फ इंटरमीडिएट यानी 12वीं पास थे। जबकि कुछ ग्रेजुएट थे। कुछ ऐसे युवाओं को छोड़ दें जिनके पास प्रोफेशनल डिग्री/डिप्लोमा थे, तो वे भी सामान्य परिवारों से थे, जिनका जीवन संघर्ष आम भारतीयों जैसा ही था। हालात मुश्किल थे, न पैसे थे और न ही नौकरी। ऐसे में अचानक एक दिन रूस में काम करने का प्रस्ताव आया, तो वे मना नहीं कर पाए। हर महीने लाखों की सैलरी, मुफ्त रहना-खाना। यहां तक ​​कि मुफ्त एयर टिकट का ऑफर भी कमाल का था।

बंदूक थमाकर मोर्चे पर भेज दिया

जब रूस पहुंचे तो कुछ को ग्राउंड स्टाफ बनकर सैनिकों की मदद करने को कहा गया। कुछ को सुरक्षा एजेंसी में गार्ड की नौकरी दिलाने का ऑफर देकर रूस भेजा गया। जब ये लोग रूस पहुंचे तो उन्हें 15 दिन की मिलिट्री ट्रेनिंग देने के बाद हाथ में बंदूक थमाकर मोर्चे पर भेज दिया गया। जाते समय उन्हें निर्देश दिए गए थे कि चाहे जो हो अपने कमांडर के आदेश का पालन करना है और दुश्मन को देखते ही गोली मार देनी है।

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रूस गए लोगों ने क्या बताया?

रूस-यूक्रेन सीमा पर लड़ रहे इन गुमनाम सैनिकों की अलग-अलग कहानियां वायरल हुईं। इन्हीं में से राकेश और ब्रजेश यादव की कहानी आपको सुनाते हैं। उन्होंने बताया कि, कैसे लोगों के घरों में दीवारों पर पेंटिंग करने वाले दो युवा बेहतर भविष्य का सपना लेकर रूस जाते हैं और इस तरह उनकी जिंदगी 360 डिग्री बदल जाती है। राकेश और ब्रजेश यादव घरों में पेंटिंग का काम करते थे। एक पेंटर की दिहाड़ी पर परिवार का गुजारा मुश्किल से होता था। फिर उन्हें एक ऐसी नौकरी का ऑफर मिला जिसे वे मना नहीं कर सके।

मिली मोटी सैलरी तो मना नहीं कर पाए

रूस में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी के लिए दोनों को करीब 2 लाख रुपये प्रति महीने की सैलरी देने का वादा किया गया था। यह इतनी बड़ी और आकर्षक रकम थी जिसके बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था। उन्हें लगा कि इतनी सैलरी से एक साल में उनकी जिंदगी बदल जाएगी। सैलरी के अलावा कुछ भत्तों की बात करें तो सालाना 25 लाख रुपये का सीटीसी पैकेज था जो उनके गांव और शहर के अच्छे-खासे पढ़े-लिखे लोगों को भी नहीं मिलता। फिर क्या, सोचने के लिए कोई और ख्याल मन में नहीं आया। 

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8 महीने बाद लौटे भारत

टीओआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक रूस ने उनकी जिंदगी बदल दी, हालांकि उस तरह नहीं जैसा उन्होंने सोचा था। यूपी के आजमगढ़ के 29 वर्षीय राकेश और पड़ोसी मऊ के 30 वर्षीय ब्रजेश करीब 8 महीने बाद सितंबर 2024 में घर लौटे। अपनी आपबीती सुनाते हुए उन्होंने अपने शरीर पर लगे जख्मों का ब्यौरा दिया कि कैसे मौत ने उन्हें कई बार छुआ। कैसे वे युद्ध में भूखे-प्यासे लड़ने को मजबूर हुए। दोनों मानसिक आघात के शिकार हो गए। राकेश ने बताया कि उन्हें यूक्रेनी सैनिकों से लड़ने के लिए सैन्य ट्रकों में ले जाया गया था। वे कई महीनों तक अस्पताल में रहे।

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